भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक
गुरुग्राम। बॉन्ड पॉलिसी का विरोध मेडिकल स्टूडेंट, डॉक्टर्स, जनता और विपक्षी दल तो कर ही रहे हैं लेकिन ज्ञात हुआ है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल को पत्र लिखा है कि इस पॉलिसी एक साल के लिए स्थगित कर दी जाए। यह भी ज्ञात हुआ है कि जब पॉलिसी बनी थी तब भी स्वास्थ मंत्री ने फाइल पर लिखा था कि इससे प्रदेश की प्रतिभाओं का पलायन होगा और मेडिकल की सीट खाली रह जाएंगी।
वर्तमान में सामने तो कोई नहीं बोलता लेकिन वैसे भाजपा के वरिष्ठों में चर्चा है कि जो मुख्यमंत्री को ठीक लगे वही ठीक। मुख्यमंत्री सभी विभागों पर नजर रखते हैं। चर्चा में यह भी है कि पिछले दिनों मंत्रीमंडल परिवर्तन या विभागों के परिवर्तन की जो बात चली थी उसमें भी यह प्रचारित हुआ कि मुख्यमंत्री कुछ विभागों के कार्य से संतुष्ट नहीं हैं। अत: उन्हें मंत्री पद से हटाया जा सकता है या उनके विभाग बदले जा सकते हैं।
यह बात भी सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि भाजपा के मंत्रियों को पसंद नहीं आई। उनका विचार यह है कि यदि मुख्यमंत्री को कुछ कहना ही था तो हमसे कहते। वह बात प्रेस में नहीं जानी चाहिए थी। इससे सारे समाज में हमारी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं और फिर यह बात भी सुनने में आ रही है कि उनके विचार में हमारी कार्यशैली में कमी या खूबी तो तब होगी, जब मुख्यमंत्री हमें स्वतंत्र रूप से कार्य करने देंगे।
वर्तमान समय में भाजपा शायद संकट के दौर से गुजर रही है। जिला परिषद और पंचायत चुनाव में दिखाई दे रहा है कि उनका जनाधार घट रहा है। वर्तमान में हिमाचल और गुजरात के परिणाम भी शीघ्र ही आने हैं। ऐसे में राजनैतिक चर्चाकारों के अनुमान यह हैं कि दिसंबर माह में भाजपा सरकार और संगठन में अप्रत्याशित निर्णय दिखाई दे सकते हैं।
संभव है कि अनिल विज का यह पत्र औरों के लिए भी राह खोल दे परंतु हमें इस बात पर संदेह है, क्योंकि अनिल विज और मुख्यमंत्री मनोहर लाल की पिछले 3 वर्ष में कई बार विचारों में मतभेद की बातें सामने आ चुकी हैं लेकिन उसका असर माननीय मंत्रियों पर दिखाई दिया नहीं।
बहरहाल हम कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन कहीं इन चर्चाओं में कुछ सच्चाई अवश्य नजर आती है कि गठबंधन सरकार और भाजपा संगठन में कुछ अप्रत्याशित देखने को मिल सकता है। फिलहाल सब समय के गर्भ में है। समय आने पर नजर आएगा।