भाजपा, कांग्रेस, आप, इनेलो, जजपा बेशक कोई निर्णय लें परन्तु हरियाणा नगर निकाय कानूनों में राजनीतिक दलों के पार्टी सिम्बल्स पर चुनाव कराने का प्रावधान ही नहीं – एडवोकेट

हरियाणा म्युनिसिपल एक्ट, 1973 और हरियाणा नगर निगम कानून, 1994 और उनके अंतर्गत बने निर्वाचन नियमों में आज तक राजनीतिक दल का उल्लेख तक नहीं

अप्रैल, 2022 में प्रदेश सरकार ने कानून में संशोधन करने हेतु राज्य निर्वाचन आयोग का प्रस्ताव कर दिया था नामंजूर

वर्षो से राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आदेश मात्र से उम्मीदवारों को आबंटित हो रहे राजनीतिक दलों के चुनाव-चिन्ह

हालांकि आयोग चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को आबंटित कर सकता है केवल फ्री-सिम्बल्स सूची में से चुनाव-चिन्ह — एडवोकेट हेमंत कुमार

चंडीगढ़ – हरियाणा में कुल 33 नगर निकायों ( 8 नगर निगमों, 4 नगरपालिका परिषदों एवं 21 नगरपालिका समितियों ) के आम चुनाव एवं अम्बाला और सोनीपत नगर निगमों के मेयर पद उपचुनाव, सोहना नगर परिषद, इस्माईलाबाद और असंध नगर पालिका समितियों के अध्यक्ष पद उपचुनाव की घोषणा गत मंगलवार 4 फरवरी को राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा की गई जिसके लिए मतदान अगले माह 2 मार्च 2025 ( पानीपत नगर निगम के लिए 9 मार्च) जबकि मतगणना 12 मार्च 2025 को होगी.

हरियाणा में गत 10 वर्षों से सत्तासीन भाजपा द्वारा लिए निर्णय अनुसार पार्टी द्वारा नगर निगमों और नगरपालिका परिषदों के मेयर /अध्यक्ष पद और उनके सभी वार्डों में जबकि नगरपालिका समितियों के केवल अध्यक्ष पद का चुनाव अपने चुनाव-चिन्ह कमल के फूल पर लड़े जायेंगे जबकि प्रमुख विपक्षी दल‌ कांग्रेस पार्टी द्वारा नगर निगमों के मेयर एवं वार्डों के चुनाव तो अपने पार्टी सिंबल अर्थात हाथ/पंजे पर लड़ने का फैसला लिया गया हालांकि नगरपालिका परिषदों और नगरपालिका समितियों में पार्टी द्वारा अपने चिन्ह पर चुनाव लड़ने बारे निर्णय लिया जाना लंबित है. प्रदेश के दो क्षेत्रीय दलों- जजपा और इनेलो, जिनके पार्टी सिंबल क्रमशः चाबी और चश्मा है और आम आदमी पार्टी ( आप) जिसे वर्ष 2023 में‌ राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हुआ था एवं जिसका चुनाव-चिन्ह झाड़ू है इन तीनो राजनीतिक दलों की इस सम्बन्ध में रणनीति भी देखने लायक होगी.

इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और म्युनिसिपल कानून के जानकार हेमंत कुमार (9416887788) ने बताया कि बेशक हरियाणा में पाँचों प्रमुख राजनीतिक दल नगर निकायों के चुनाव पार्टी सिम्बल्स पर लड़ने या न लड़ने बारे कुछ भी निर्णय लें, परन्तु प्रदेश विधानसभा द्वारा बनाये गए हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973, जो सभी नगरपालिका परिषदों और नगरपालिका समित्यों पर लागू होता है और हरियाणा नगर निगम कानून, 1994, जो प्रदेश की सभी नगर निगमों पर लागू होता है एवं उक्त दोनों कानूनों के अंतर्गत प्रदेश सरकार द्वारा बनाये गए हरियाणा म्युनिसिपल निर्वाचन नियमों, 1978 और हरियाणा नगर निगम निर्वाचन नियमो, 1994 में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के पार्टी सिम्बल्स (चुनाव चिन्हों ) पर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव करवाने का प्रावधान या उल्लेख ही नहीं है.

हेमंत ने बताया कि उनके द्वारा बीते कई वर्षों से राज्य निर्वाचन आयोग को बार बार लिखा गया कि हरियाणा में पार्टी सिम्बल्स पर नगर निकाय चुनाव नहीं करवाए जा सकते हैं क्योंकि प्रदेश के दोनों म्युनिसिपल कानूनों और निर्वाचन नियमों में ऐसा प्रावधान एवं उल्लेख नहीं है जिसके बाद आयोग ने 28 फरवरी 2022 को प्रदेश सरकार को इस सम्बन्ध में कानून और नियमों में संशोधन कर उनमें राजनीतिक दल की परिभाषा डालने और निर्वाचित प्रतिनिधियों पर दल-बदल विरोधी प्रावधान लागू करने का प्रस्ताव भेजा गया था जिस पर प्रदेश सरकार ने विचार -विमर्श करने के बाद निर्णय लेकर उसे नामंजूर दिया था और लिखा कि हरियाणा म्युनिसिपल कानूनों में इस आशय में संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है.

हेमंत ने बताया कि जब तक प्रदेश विधानसभा द्वारा हरियाणा के दोनों नगर निकाय कानूनों में राजनीतिक दलों के चुनाव-चिन्हों पर चुनाव करवाने बारे स्पष्ट प्रावधान नहीं किया जाता, तब तक आयोग द्वारा जारी चुनाव -चिन्ह (आरक्षण एवं आबंटन ) आदेश मात्र से प्रदेश में पार्टी सिम्बल्स पर कानून नगर निकाय चुनाव करवाने पर गंभीर प्रश्न-चिन्ह उठना स्वाभाविक है.

हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग नगर निकाय चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को गैर-राजनीतिक दलों के अर्थात फ्री सिम्बल्स (मुक्त चुनाव चिन्ह ) की सूची में से चुनाव चिन्ह आबंटित करने देने हेतु कानूनन सक्षम हैं.

हेमंत का इस बारे में यह भी कानूनन मत है कि बेशक भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 जेड.ए. में राज्य निर्वाचन आयोग के पास नगर निकाय चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण का अधिकार है परन्तु आयोग प्रदेश विधानसभा द्वारा बनाये नगर निकाय कानूनों के प्रावधानों अनुसार ही ऐसे चुनाव करवा सकता है.

अगर मात्र निर्वाचन आयोग के आदेश से राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह आबंटित करना कानून संभव होता, जैसा हरियाणा में आज तक होता रहा है, तो वर्ष 2021 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा को अपने सम्बंधित कानूनी संशोधन करने की क्या आवश्यकता थी ?

मार्च, 2021 में हिमाचल प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा विधानसभा मार्फ़त हिमाचल प्रदेश नगर निगम कानून, 1994 में उपयुक्त संशोधन कर प्रदेश में नगर निगमों के चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों पर करवाने और चुनावों बाद निर्वाचित सदस्यों (पार्षदों) को पार्टी छोड़ पाला-खेमा बदलने पर अंकुश लगाने हेतू दल-बदल विरोधी संबंधी प्रावधान डाले गए थे जिसके पश्चात ही प्रदेश की 4 नगर निगमों – मंडी, धर्मशाला, सोलन और पालमपुर में हिमाचल राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव करवाए गये थे. हरियाणा को भी हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973 में संशोधन करना होगा जिसके बाद ही कानूनन प्रदेश में पार्टी सिम्बल्स पर नगर निकाय चुनाव करवाए जा सकते हैं.

हेमंत ने आगे बताया कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची में जो दल बदल विरोधी कानून हैं, वह केवल संसद और राज्य विधानमंडलों पर लागू होता है, नगर निकायों जैसे नगर निगमों/नगरपालिका परिषदों/नगरपालिका समितियों पर नहीं इसलिए निकाय चुनावों में निर्वाचित मेयर/अध्यक्ष/सदस्य कभी भी दल बदल कर दूसरी पार्टी में बे-रोक-टोक आ-जा सकते है जो शहरी मतदाताओ के साथ‌ एक प्रकार का धोखा एवं मज़ाक होता है. इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि जब भी हरियाणा में राजनीतिक दलों के पार्टी-सिम्बल्स पर नगर निकाय चुनाव करने का कानूनी प्रावधान किया जाता है, तो उसके साथ साथ दल-बदल विरोधी प्रावधान भी दोनों नगर निकाय कानून में डाले जाएँ.

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