हरियाणा की यूनिवर्सिटियों में गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की पदोन्नति के नियम मनमाने तरीके से लागू
डॉ. राजीव शर्मा…….. सहायक प्रोफेसर, समाजसेवी

भिवानी, 14 फरवरी 2025 – हरियाणा की विश्वविद्यालय प्रणाली में गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति को लेकर गंभीर अनियमितताएँ देखने को मिल रही हैं। जहाँ एक ओर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के दिशा-निर्देशों के अनुसार वेतनमान को अपनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर पदोन्नति से जुड़े अनिवार्य नियमों की अनदेखी की जा रही है। हर विश्वविद्यालय अपने मनमाने नियम लागू कर रहा है, जिससे भर्ती और पदोन्नति की प्रक्रिया में भ्रम, पक्षपात और असमानता बढ़ रही है।
गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की पदोन्नति में मनमानी
सबसे गंभीर समस्या गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की पदोन्नति नीति से जुड़ी है। कुछ नवस्थापित विश्वविद्यालयों ने वरिष्ठता-सह-योग्यता के आधार पर पदोन्नति की प्रक्रिया अपनाई है, लेकिन इसमें किसी पद पर न्यूनतम सेवा अवधि को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। परिणामस्वरूप, कुछ मामलों में सिर्फ एक दिन के अनुभव वाले कर्मचारी को उच्च पद पर पदोन्नत किया जा सकता है।
उदाहरण:
कई विश्वविद्यालयों में सहायक कुलसचिव (Assistant Registrar – लेवल 10) को मात्र एक दिन के अनुभव के बाद सीधे उप कुलसचिव (Deputy Registrar – लेवल 12) के पद पर पदोन्नत कर दिया जाता है, वह भी लेवल 11 को पूरी तरह छोड़कर।
यह स्थिति शिक्षकों की पदोन्नति नीति के बिल्कुल विपरीत है। एक सहायक प्रोफेसर को लेवल 12 तक पहुँचने के लिए कम से कम 9 से 11 साल लगते हैं। UGC और AICTE द्वारा शिक्षकों की पदोन्नति के लिए कड़े मानक तय किए गए हैं, जिनमें अनुसंधान, परीक्षा, मूल्यांकन और अन्य शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है। इसके बावजूद, हरियाणा के विश्वविद्यालयों में गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों को सिर्फ वरिष्ठता-सह-योग्यता के आधार पर पदोन्नति दी जा रही है, बिना किसी परीक्षा या मूल्यांकन के।
UGC नियमों की अनदेखी: सहायक कुलसचिव से उप कुलसचिव पदोन्नति में हेरफेर
UGC के नियमों के अनुसार, सहायक कुलसचिव (Assistant Registrar – लेवल 10) की पदोन्नति चरणबद्ध तरीके से होनी चाहिए:
केवल 50% सहायक कुलसचिव ही लेवल 11 तक पदोन्नति पा सकते हैं।
इसके बाद, लेवल 11 से केवल 50% कर्मचारियों को ही उप कुलसचिव (Deputy Registrar – लेवल 12) के रूप में पदोन्नति दी जानी चाहिए।
लेकिन, कई विश्वविद्यालय इन नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। कुछ मामलों में, पूरी प्रक्रिया को नजरअंदाज कर सीधे लेवल 10 से लेवल 12 पर पदोन्नति दी जा रही है। इससे न केवल आंतरिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय भी हो रहा है।
नियमों की अनदेखी: सहायक, अधीक्षक और सहायक कुलसचिव पदोन्नति में हेरफेर
यह समस्या केवल सहायक कुलसचिव (Assistant Registrar) की पदोन्नति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विश्वविद्यालयों में सहायक (Assistant), सहायक अधीक्षक (Deputy Superintendent), अधीक्षक (Superintendent) और सहायक कुलसचिव (Assistant Registrar) की पदोन्नति प्रक्रिया में भी इसी तरह की अनियमितताएँ पाई जा रही हैं।
नियमों के अनुसार:
सहायक (Assistant) से पहले सहायक अधीक्षक (Deputy Superintendent) और फिर अधीक्षक (Superintendent) के पद पर पदोन्नति होनी चाहिए।
अधीक्षक (Superintendent) से सहायक कुलसचिव (Assistant Registrar) की पदोन्नति केवल 50% आंतरिक पदोन्नति और 50% सीधी भर्ती के आधार पर होनी चाहिए।
लेकिन वास्तविकता क्या है?
कुछ विश्वविद्यालय बिना किसी चरणबद्ध प्रक्रिया के सहायक (Assistant) को सीधे अधीक्षक (Superintendent) बना रहे हैं।
डिप्टी सुपरिटेंडेंट (Deputy Superintendent) का पद समाप्त होता जा रहा है, जिससे कर्मचारियों की स्वाभाविक पदोन्नति बाधित हो रही है।
अनुभवहीन कर्मचारियों की उच्च पदों पर नियुक्ति से प्रशासनिक कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
पदोन्नति में धांधली और बाहरी उम्मीदवारों के लिए अवसरों की समाप्ति
जो कर्मचारी शुरुआत में विश्वविद्यालयों में नियुक्त होते हैं, वे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल कर उच्च पदों को सीधी भर्ती से भरने से रोकने का दबाव बनाते हैं। उनका मानना है कि इन पदों पर केवल उन्हीं का अधिकार होना चाहिए, और इसलिए वे विश्वविद्यालय प्रशासन को बाध्य करते हैं कि ऊपरी पदों को बाहरी भर्ती से न भरा जाए।
इसके क्या दुष्परिणाम हैं?
योग्य उम्मीदवारों को अवसर नहीं मिलते।
पूरी भर्ती प्रक्रिया भ्रष्टाचार और पक्षपात का शिकार हो जाती है।
न्यायिक विवादों में फँसी भर्तियाँ
इन अनियमितताओं के कारण कई भर्तियाँ कानूनी विवादों में फँस गई हैं।
विश्वविद्यालयों के कर्मचारी और बाहरी उम्मीदवार, जो इन पदों के लिए आवेदन करते हैं, न्यायालय में मुकदमे दायर करने को मजबूर हो रहे हैं।
वर्षों तक रिक्तियाँ भरी नहीं जातीं, जिससे प्रशासनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए
हरियाणा सरकार और माननीय राज्यपाल को इन अनियमितताओं पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए।
कार्यकारी परिषद (Executive Council) को दिए गए अधिकारों का दुरुपयोग रोकना आवश्यक है।
UGC और AICTE के नियमों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, ताकि विश्वविद्यालयों में पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही बनी रहे।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
जब शिक्षकों को पदोन्नति के लिए सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है, तो गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों को ढील क्यों दी जा रही है?
क्या सरकार इन अनियमितताओं को रोकने के लिए कोई कड़ा कदम उठाएगी?
क्या न्यायालय में लंबित मामलों को तेजी से निपटाने के लिए कोई ठोस योजना बनाई जाएगी?
हरियाणा के उच्च शिक्षा तंत्र की निष्पक्षता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।