वोटर की हर इच्छा के मुताबिक पूरी हो रही उसके मन की मुराद

वोट और परिणाम से पहले उम्मीदवारों को मिल रहे नोट ही नोट

चर्चा गरम मनपसंद शराब की होने लगी डिमांड और बढ़ गए रेट

फतह सिंह उजाला

गुरुग्राम / पटौदी  ।  आने वाले समय में अंग्रेजी और हिंदी शराब के ठेके  की बोली भी आबकारी विभाग के द्वारा लगाया जाना निश्चित है। लेकिन इससे पहले ही चुनाव का चाव और चुनाव का चस्का सहित इलेक्शन मैजिक जोर पकड़ने लगा है । कितना ही प्रचार प्रसार किया जाए, बिना किसी लालच अथवा प्रलोभन के ही मतदान प्रक्रिया पूरी हो तथा इसमें पारदर्शिता भी बनी रहे । चुनाव लड़ने के दावेदार उम्मीदवार चुनाव को प्रतियोगिता के मुकाबले अपनी मूंछ का सवाल या प्रतिष्ठा बनकर ही चुनाव में एक दूसरे को हराने की हर रणनीति पर गंभीरता से अमल करते हैं । इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं प्रत्येक उम्मीदवार को अपने चुनाव परिणाम सहित चुनाव समीकरण का पूर्वाभास बना रहता है। “लेकिन दिल है कि मानता ही नहीं”।

इलेक्शन फेस्टिवल के 10 – 12 दिन के दौरान एक-एक मतदाता बेहद महत्वपूर्ण और जरूरी हो जाता है। निकाय चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें उम्मीदवार और मतदाता के बीच सीधा संपर्क बना रहता है । एक दूसरे से भली भांति परिचित होते हैं,

 फिर दावेदार उम्मीदवार पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़े या फिर आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव के मैदान में प्रतिद्वंदी को चुनौती दे रहे हो, लक्ष्य एक ही होता है केवल और केवल इलेक्शन में विक्ट्री और प्रतिद्वंद्वी को पराजित करना। इसके लिए सही मायने में इलेक्शन के दावेदार उम्मीदवारों के पास एक तरह से “अलादीन का चिराग” भी कहीं ना कहीं से हाथ लग जाता है । अब इस अलादीन के चिराग की लाल परी, माया, रोकड़ा या अलग-अलग प्रकार से व्याख्या भी की जा सकती है। यह वह चमत्कारी चिराग बन जाता है, जो की प्रत्येक मतदाता के मन की इच्छा को समझते हुए पूरा करने में पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम करता रहता है।

चुनाव में सुचिता और पारदर्शिता के लिए ही निर्वाचन विभाग के द्वारा नियम और नियमावली भी बनाई गई है । जानकारी के मुताबिक इसमें नगदी लेनदेन के लिए भी आवश्यक दिशा निर्देश है । कितनी राशि नगद उम्मीदवार द्वारा स्वीकार की जा सकती है या फिर कितनी राशि समर्थकों के द्वारा उम्मीदवार को नकद भेंट की जा सकती है। लेकिन चुनाव आरंभ होते ही वोट और चुनाव परिणाम से पहले उम्मीदवारों पर नोट ही नोट बरसते हुए भी दिखाई देने लगे हैं । नोटों की माला पहने या फिर नकदी देने का या फिर लेने का सिलसिला चुनाव प्रचार समाप्त होने तक बना ही रहता है।

अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं को रिझाने और अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए चर्चा के मुताबिक सबसे अधिक कथित रूप से शराब को प्राथमिकता दी जाती है । सूत्रों एवं चर्चाओं के मुताबिक चुनाव की घोषणा होने के साथ ही देसी और अंग्रेजी विभिन्न मार्क की शराब की डिमांड अचानक बढ़ते जाना बताया जा रहा है । दावेदार उम्मीदवारों के बनाए गए चुनाव कार्यालय या फिर अन्य विश्वसनीय स्थानीय ठिकानों के आसपास दिन ढलते ही अलग ही प्रकार की चहल-पहल महसूस की जा सकती है । चर्चा तो यहां तक है कि देसी और अंग्रेजी विभिन्न मार्क की शराब की खपत बढ़ने के साथ-साथ शराब के रेट में भी उछाल आ चुका है। अपने-अपने तरीके से समर्थकों के पास तक आपूर्ति की व्यवस्था भी बनी रहती है । 

इसी कड़ी में मतदान होने वाले दिन तक अलग-अलग तिथि पर विवाह शादी के कार्यक्रम भी निर्धारित हैं। चर्चाओं के मुताबिक इस प्रकार के आयोजन की खुशी को कई गुना बढ़ाने के लिए भी आयोजन से जुड़े हुए लोगों तक मनपसंद शराब की आपूर्ति बनी हुई है। बहरहाल यह चुनाव का मौसम है। कोई मानसून तो है नहीं, की मानसून समय से पहले या समय के बाद आए। इलेक्शन है और इलेक्शन 5 साल के बाद आएंगे। ऐसे में चुनाव के अपने ही अलग अंदाज के रंग उम्मीदवारों और मतदाताओं के बीच में होली से पहले माहौल को रंगीन बनाते चले जा रहे हैं।

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