कांग्रेस प्रत्याशियों ने नहीं दिखाई दिलचस्पी, कई वार्डों में उम्मीदवार तक नहीं मिले
गुरुग्राम में वार्ड 22 के कांग्रेस प्रत्याशी ने नाम वापिस लेकर बीजेपी उम्मीदवार को दिलाई निर्विरोध जीत
वार्ड 15 की कांग्रेस प्रत्याशी वोटिंग से पहले ही विदेश रवाना
प्रचार में भी कांग्रेस बीजेपी से कोसों दूर, जनता ने उम्मीदवारों को बताया नाकारा

गुरुग्राम। हरियाणा में नगर निगम चुनावों में कांग्रेस की रणनीति पूरी तरह ढीली और दिशाहीन नजर आई। पार्टी ने कई वार्डों में उम्मीदवार उतारने की जहमत तक नहीं उठाई, और जहां उम्मीदवार थे, वहां भी वे चुनाव को गंभीरता से नहीं ले रहे थे। वार्ड 22 के कांग्रेस प्रत्याशी हरविंदर सिंह ने नाम वापिस लेकर बीजेपी प्रत्याशी को निर्विरोध जीत दिला दी, जबकि वार्ड 15 की महिला पार्षद प्रत्याशी नेहा यादव मतदान से छह दिन पहले ही विदेश चली गईं।
कांग्रेस की निष्क्रियता से भाजपा को मिली बढ़त
निकाय चुनाव में कांग्रेस की निष्क्रियता ने बीजेपी के लिए राह आसान कर दी। गुरुग्राम और मानेसर में कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन निराशाजनक रहा।
- गुरुग्राम में 36 वार्डों में से कांग्रेस को केवल 31 प्रत्याशी ही मिले।
- मानेसर में सिर्फ मेयर पद के लिए प्रत्याशी उतारा गया, 20 वार्डों में पार्षद उम्मीदवार ही नहीं दिए।
- वार्ड 15 की कांग्रेस प्रत्याशी नेहा यादव चुनाव प्रचार करने के बाद अचानक विदेश चली गईं, मतदान के दिन बूथ पर कांग्रेस की ओर से कोई प्रतिनिधि तक नहीं दिखा।
- वार्ड 22 में कांग्रेस उम्मीदवार ने बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में नामांकन वापिस लेकर पार्टी की किरकिरी करवा दी।
कांग्रेस में अंतर्कलह, गलत उम्मीदवार चयन बना हार की बड़ी वजह
कांग्रेस में अंतर्कलह और कमजोर रणनीति पार्टी की हार की सबसे बड़ी वजह बनी। जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर ऐसे लोगों को टिकट दिए गए, जो जनता के बीच कभी सक्रिय नहीं रहे। नतीजा यह हुआ कि जनता ने इन्हें पूरी तरह नकार दिया।
- वार्ड 22 के कांग्रेस उम्मीदवार हरविंदर सिंह ने ऐन मौके पर नाम वापिस लेकर बीजेपी उम्मीदवार को निर्विरोध जीत दिला दी, जिसके बाद कांग्रेस ने उन्हें 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया।
- कई उम्मीदवार ऐसे थे, जो नामांकन के बाद प्रचार में भी नहीं दिखे, नतीजा यह हुआ कि मतदाता उनके नाम तक नहीं जान पाए।
- जनता में यह सवाल गूंज रहा है कि कांग्रेस की उम्मीदवार सूची आखिर बनी किसके कहने पर?
- कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि काबिल और सक्रिय नेताओं को क्यों नजरअंदाज किया गया?
प्रचार में बीजेपी से कोसों दूर रही कांग्रेस
भाजपा जहां दो केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्री, सांसदों और विधायकों को प्रचार में उतारकर दमदार अभियान चला रही थी, वहीं कांग्रेस की ओर से प्रचार बेहद सुस्त रहा।
- पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने केवल घोषणा पत्र जारी किया, लेकिन कोई सक्रिय चुनाव प्रचार नहीं किया।
- उनके सांसद बेटे ने चुनाव से एक दिन पहले कुछ जनसभाएं की, लेकिन वह भी नाकाफी साबित हुईं।
- प्रदेश अध्यक्ष और अन्य नेता भी चुनाव प्रचार में कोई खास ऊर्जा नहीं दिखा सके।
बूथ पर नहीं दिखी कांग्रेस की मौजूदगी
कांग्रेस की निष्क्रियता मतदान के दिन भी साफ नजर आई।
- वार्ड 15 में कांग्रेस की उम्मीदवार के बूथ पर कोई कार्यकर्ता तक मौजूद नहीं था।
- मतदाता पर्चियां बांटने तक के लिए कांग्रेस के लोग नजर नहीं आए।
- बीजेपी कार्यकर्ताओं की मौजूदगी बूथों पर प्रभावी रही, जिससे कांग्रेस की रणनीतिक असफलता और अधिक स्पष्ट हो गई।
क्या कांग्रेस ऐसे बीजेपी से मुकाबला कर पाएगी?
हरियाणा निकाय चुनावों में कांग्रेस की निष्क्रियता ने पार्टी की भविष्य की संभावनाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
- कमजोर उम्मीदवार चयन, गुटबाजी और निष्क्रिय प्रचार ने बीजेपी को खुला मैदान दे दिया।
- कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़कर बाहरी उम्मीदवारों को टिकट देने की रणनीति पार्टी के लिए घातक साबित हुई।
- अगर कांग्रेस को हरियाणा में भविष्य में मजबूती से खड़ा होना है, तो उसे अपनी संगठनात्मक कमजोरियों को दूर करना होगा और जमीनी कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देनी होगी।
वरना, बीजेपी के खिलाफ लड़ाई से पहले ही हार मान लेने वाली कांग्रेस खुद को भविष्य के चुनावों में भी अप्रासंगिक बना लेगी।