बजट सत्र के पहले दिन की कार्यसूची में शोक प्रस्ताव की लिस्ट में दिवंगत प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम के समक्ष पदम् विभूषण का उल्लेख

दिसम्बर,1995 के सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच निर्णय अनुसार राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्तकर्ता के नाम के आगे या पीछे नहीं किया जा सकता ऐसा उल्लेख – एडवोकेट हेमंत कुमार

इसी वर्ष 31 जनवरी 2025 से आरम्भ संसद के बजट सत्र में लोकसभा के पहले दिन की कार्यसूची में हालांकि शोक प्रस्ताव की लिस्ट में डॉ. मनमोहन सिंह के नाम के आगे पदम् विभूषण का नहीं किया गया था उल्लेख

चंडीगढ़- आज 7 मार्च 2025 से हरियाणा विधानसभा का बजट सत्र आरम्भ हो रहा है जिसके लिए न केवल विधानसभा की आधिकारिक वेबसाइट पर बल्कि नेवा (नेशनल ई-विधानसभा एप्लीकेशन) पोर्टल पर भी इस सत्र के पहले दिन की कार्यसूची (लिस्ट ऑफ़ बिज़नस) को अपलोड किया गया है. मौजूदा कैलेंडर वर्ष 2025 का प्रथम सत्र होने के कारण सत्र में सर्वप्रथम प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय का अभिभाषण होगा.

इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट‌ में एडवोकेट एवं कानूनी-विधायी मामलों के जानकार हेमंत कुमार ने आज 7 मार्च 2025 की हरियाणा विधानसभा की आधिकारिक कार्यसूची में शोक प्रस्ताव की लिस्ट में देश के पूर्व प्रधानमन्त्री दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह, जिनका गत वर्ष 26 दिसम्बर 2024 को निधन हो गया था, के नाम के समक्ष पदम् विभूषण का उल्लेख किए जाने पर इसे सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेच के निर्णय की अवहेलना बताया है. इस विषय पर उन्होंने बताया कि बेशक दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह को 38 वर्ष पूर्व 1987 में देश के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा पदम् विभूषण से अलंकृत किया गया था हालांकि ध्यान देने योग्य है कि 29 वर्ष पूर्व 15 दिसम्बर 1995 को सुप्रीम कोर्ट के एक संवैधानिक बेंच ने “बालाजी राघवन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया सरकार” नामक केस में निर्णय दिया था कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किये जाने वाले चारों राष्ट्रीय अवार्ड नामत: भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण एवं पद्मश्री को किसी भी प्रकार से नाम के साथ उपाधि (टाइटल) के तौर पर प्रयोग नहीं किया जा सकता है. इन्हे प्राप्त करने वाला अर्थात इनसे अलंकृत व्यक्ति इन्हें अपने नाम के आगे या पीछे नहीं लगा सकता. अगर वो ऐसा करता है, तो एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए उस व्यक्ति को प्रदान किया गया सम्बंधित राष्ट्रीय अवार्ड को भारत सरकार द्वारा वापस भी लिया जा सकता है.

अब क्या हरियाणा विधानसभा सचिवालय के उच्च अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त निर्णय के सम्बन्ध में जानकारी ही नहीं है या फिर 7 मार्च 2025 के दिन के सत्र की कार्यसूची में शोक प्रस्ताव की लिस्ट में पूर्व प्रधानमन्त्री दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह के नाम के समक्ष पदम् विभूषण का उल्लेख भूलवश अथवा लापरवाही से किया गया गया है, यह जांच करने योग्य है. हेमंत ने बताया कि इसी वर्ष 31 जनवरी 2025 से जब संसद का मौजूदा बजट सत्र आरम्भ हुआ, उसमें लोकसभा के पहले दिन की कार्यसूची में शामिल शोक प्रस्ताव की लिस्ट में देश के पूर्व प्रधानमन्त्री दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह के नाम के समक्ष हालांकि पदम् विभूषण का उल्लेख नहीं किया गया था.

इसी विषय पर हेमंत ने एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि 18 वर्ष पूर्व वर्ष 2007 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.टी.) दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में तत्कालीन सत्तासीन एन.सी.टी. दिल्ली सरकार द्वारा विधानसभा से भारत रत्न डॉ. बी.आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय अधिनियम, 2007 बनाया गया था जिसके नाम में डॉ. अम्बेडकर के नाम के समक्ष भारत रत्न का उल्लेख मौजूद था हालांकि वर्ष 2016 में अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में तत्कालीन एन.सी.टी. दिल्ली सरकार सरकार ने उसमें विधानसभा मार्फ़त संशोधन कराकर उक्त विश्वविद्यालय अधिनियम के नाम में से दोनों शब्द भारत रत्न हटा दिए थे. इससे स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त संवैधानिक बेंच के निर्णय को कितनी गंभीरता से लिया जाता है.

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