ऋषि प्रकाश कौशिक | भारत सारथी

गुरुग्राम | आज पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है। हमारे देश और प्रदेश में भी इसकी धूम है, लेकिन जब हम गुरुग्राम में आयोजित महिला दिवस कार्यक्रमों पर नजर डालते हैं, तो कई सवाल खड़े होते हैं। क्या ये आयोजन वास्तव में महिला सशक्तिकरण के लिए थे, या फिर सिर्फ राजनीतिक आत्मप्रशंसा और प्रचार का माध्यम बनकर रह गए?

भाजपा का राज्य स्तरीय महिला दिवस आयोजन: बड़ी बातें, छोटे कदम

गुरुग्राम के गुरुकमल में भाजपा महिला मोर्चा द्वारा राज्य स्तरीय महिला दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा प्रदेश महिला अध्यक्ष ऊषा प्रियदर्शी ने की, जबकि मुख्य अतिथि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मोहनलाल बडौली रहे।

कार्यक्रम में भाजपा नेताओं ने महिलाओं के उत्थान और विकास के लिए पार्टी की प्रतिबद्धता जताते हुए कई बड़ी घोषणाएँ और उपलब्धियाँ गिनवाईं। लेकिन जब इस कार्यक्रम की वास्तविकता पर गौर किया गया, तो कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े हुए:

1. महिला आरक्षण बिल: पास होने के बाद भी ठंडे बस्ते में क्यों?

लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पास होने के बावजूद इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। यह बिल भाजपा सरकार द्वारा ही प्रस्तावित किया गया था, तो फिर पार्टी ने खुद इसे अपने स्तर पर क्यों नहीं लागू किया? पंचायतों, नगर निगमों और सरकारी नौकरियों में 50% महिला आरक्षण लागू क्यों नहीं किया गया?

2. महिला दिवस के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पुरुष?

गौर करने वाली बात यह है कि महिला दिवस के अधिकतर आयोजनों में मुख्य अतिथि के रूप में पुरुषों की उपस्थिति ज्यादा रही। महिलाओं के लिए बने इस मंच पर खुद महिलाओं को ही हाशिए पर रखा गया।

3. भाजपा संगठन में महिलाओं की हिस्सेदारी नगण्य

गुरुग्राम जिले में 25 भाजपा मंडल अध्यक्षों में से केवल 1 महिला मंडल अध्यक्ष हैं। क्या यह भाजपा के महिला सशक्तिकरण के दावे पर सवाल नहीं उठाता?

4. महिला आरक्षित सीटों पर परिवारवाद का बोलबाला

गुरुग्राम नगर निगम चुनाव में महिला आरक्षित सीटों पर उन्हीं महिलाओं को टिकट दिया गया, जिनका पहले राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। दरअसल, इन सीटों पर नाम तो महिलाओं का इस्तेमाल किया गया, लेकिन असली फैसले पर्दे के पीछे पुरुष ही लेते नजर आए

महिला मजदूरों का आंदोलन: सत्ता की बेरुखी

महिला दिवस के दिन गुरुग्राम में ही आंगनवाड़ी वर्कर, आशा वर्कर, मिड-डे मील वर्कर, सीटू, सर्व कर्मचारी संघ आदि की सैकड़ों महिलाएं कमला नेहरू पार्क में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रही थीं

भाजपा नेताओं ने कोई सुध नहीं ली

ये महिलाएं डीसी कार्यालय तक मार्च निकालकर अपनी मांगों के लिए संघर्ष कर रही थीं, लेकिन भाजपा के किसी भी बड़े नेता या महिला पदाधिकारी ने उन्हें समर्थन देना तो दूर, सांत्वना तक देना जरूरी नहीं समझा

क्या महिला दिवस सिर्फ एक दिखावा है?

जब सत्ता पक्ष के नेता महिलाओं के अधिकारों की बात करते हैं, तब यह सवाल उठता है कि जमीनी हकीकत पर वे महिलाओं के साथ क्यों नहीं खड़े होते? क्या महिला दिवस केवल भाषणों और आयोजनों तक ही सीमित रह गया है?

 वरिष्ठ भाजपा महिला नेताओं की अनुपस्थिति पर भी सवाल

इस कार्यक्रम में भाजपा की वरिष्ठ महिला नेत्रियों की अनुपस्थिति भी चर्चा का विषय रही। सुधा यादव, रश्मि भूषण, अजीत बैनीवाल, सुंदरी खत्री जैसी जानी-मानी भाजपा महिला कार्यकर्ताओं की गैर-मौजूदगी ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या यह कार्यक्रम सच में महिला सशक्तिकरण के लिए था या सिर्फ प्रदेश सरकार और पार्टी की वाहवाही के लिए आयोजित किया गया था?

महिला सशक्तिकरण का असली मतलब क्या?

महिला दिवस का असली उद्देश्य है महिलाओं को समान अवसर, सुरक्षा, सम्मान और निर्णय लेने का अधिकार दिलाना। लेकिन जब हम देखते हैं कि:

  • महिलाओं को फैसले लेने से दूर रखा जाता है
  • महिला दिवस पर भी पुरुषों का दबदबा रहता है
  • महिलाओं की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता
    तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या ये आयोजन वास्तव में महिलाओं के लिए किए जा रहे हैं, या सिर्फ आत्मप्रचार के लिए?

निष्कर्ष: सच्चा सशक्तिकरण कब होगा?

महिला दिवस का आयोजन तभी सार्थक होगा जब:

  • महिला आरक्षण कानून को लागू किया जाए
  • राजनीति में महिलाओं को समान भागीदारी मिले
  • महिला मजदूरों और कर्मियों की आवाज सुनी जाए
  • महिला दिवस पर सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाए जाएं

गुरुग्राम में हुए आयोजनों से यह स्पष्ट हो गया कि महिला दिवस को सिर्फ एक औपचारिकता बना दिया गया है। महिलाओं को सशक्त करने के लिए सिर्फ बड़ी-बड़ी घोषणाएँ काफी नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर ठोस बदलाव की जरूरत है

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