क्या पार्टी के बाहरियो को टिकट देना पड़ा भारी : गुरिंदरजीत सिंह

कब पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को एहमियत देगी : गुरिंदरजीत सिंह

क्या स्थानीय नेताओं का एकजुट ना होना है बड़ा कारण।

कब होगी एकजुट कांग्रेस।

कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए नही बुलाया।

गुरुग्राम : गुरुग्राम के समाजसेवी गुरिंदरजीत सिंह अर्जुन नगर ने कहा कि गुरुग्राम कांग्रेस की राजनीति इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। पहले लोकसभा, फिर विधानसभा और अब निकाय निगम चुनाव में मिली करारी हार को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। क्या पार्टी के दिग्गज हार की समीक्षा करने में जुटेंगे? मंथन किया जायेगा कि आखिर हार की क्या वजह रही। गुरुग्राम कांग्रेस की राजनीति दिशाहीन और बिखरी हुई नजर आई। नेता लोग बिना रणनीति के तहत दिशाहीन में काम करते नजर आए। जिसका परिणाम हुआ कि गुरुग्राम में लोकसभा, विधानसभा और निकाय निगम चुनाव कांग्रेस हार गई। नेताओ में तालमेल की कमी साफ दिखी। जिसका परिणाम कांग्रेस को तीनों चुनाव में हार के रूप में भुगतना पड़ा।

लोकसभा में भी चुनौती नहीं दे सकी कांग्रेस:

गुरिंदरजीत सिंह ने बताया कि विधानसभा के बाद लोकसभा 2024 चुनाव में भी दमखम के साथ कांग्रेस जीत का दावा करती रही। कई सीटों पर दिग्गजों को भी उतारा गया। गुरुग्राम लोकसभा से कांग्रेस ने राज बब्बर को उतारा।

उन्होंने कहा कि यहाँ ज़मीनी स्तर पर कांग्रेस के दिग्गज नेता व कांग्रेस ओबीसी सेल के राष्ट्रीय चेयरमैन कैप्टन अजय यादव ने काफी काम किया था। सभी को आशा थी कि अहीरवाल होने के कारण टिकट कैप्टन अजय यादव को मिलेगी। पर चुनाव के समय राज बब्बर को उतारा गया। स्थानीय लोगो में इस बात की नाराज़गी भी देखी गयी। और गुरुग्राम, बादशाहपुर, पटौदी जैसे विधानसभा क्षेत्रों से वोट कम मिलने के कारण हार मिली। उस समय भी कांग्रेस के दिग्गजों का हाल ये रहा कि उसे देखकर यही लगा कि पार्टी ने एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ा। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ये दावा करती रही कि परिणाम चौंकाने वाले होंगे। लेकिन जब रिजल्ट आए तो कांग्रेस गुरुग्राम सीट हार गयी थी।

विधानसभा चुनाव में हुआ बड़ा उलटफेर:

आपको बता दें कि साल 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में 10 साल के वनवास के बाद कांग्रेस सत्ता पर आने को थी। गुरिंदरजीत सिंह ने बताया कि इस चुनाव में कांग्रेस ने एक तरफा जीत हो सकती थी। और 10 साल सत्ता पर काबिज रहने वाली बीजेपी महज 15 सीटों पर सिमट सकती थी। राज्य के किसान, मजदूर, कर्मचारी, आशा वर्कर, आंगडवाडी, सफाई कर्मचारियों के साथ साथ आम जन भी बदलाव चाह रहे थे। कांग्रेस की सरकार बनने की चर्चा थी। सभी को लग रहा था कि इस बार कांग्रेस सरकार बनेगी। लेकिन कांग्रेस नेताओ का तालमेल न होना। गुरुग्राम जैसे विधानसभा से ऐसे उम्मीदवार बनाना जो चुनाव से पहले कभी भी कांग्रेस में दिखा नही। और न ही पिछले कुछ सालों से लोगो के बीच दिखा। कांग्रेस ने गुरुग्राम से टिकट के 32 आवेदको को छोड़ मोहित ग्रोवर को टिकट दी। ऐसे में कुछ एका दुका को छोड़ बाकी वरिष्ठ नेता से चुनाव में कम ही दिखाई दिए। ऐसा लगा कि लोगो ने ऐसे उम्मीदवार को टिकट देने पर नाराज़गी जताते हुए, कांग्रेस को वोट नही की।

गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि गुरुग्राम विधानसभा में कई मुद्दे थे, जिनको कांग्रेस पिछले पाँच सालों से उठा रही थी। पर उम्मीदवार चयन की गलती के कारण गुरुग्राम में कांग्रेस की हार हुई। और उम्मीदवार चुनाव में तीसरे नंबर पर रहा। वही बीजेपी ने नई रणनीति के तहत काम किया। जिसमें जो माहौल कांग्रेस के पक्ष में बना था, वो बीजेपी के पक्ष में हो गया। जिसका नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस को विधानसभा में हार मिली।

निकाय निगम चुनाव में चुनौती नहीं दे सकी कांग्रेस:

गुरिंदरजीत सिंह ने बताया कि इस चुनाव से पहले हर बार निकाय निगम चुनाव में अच्छा परफॉर्म करने वाली कांग्रेस पर लोगों की नजर थी। गुरुग्राम में विधानसभा से पहले आम आदमी पार्टी दिख रही थी। पर विधान सभा चुनाव आते आते गुरुग्राम से आम आदमी पार्टी लुप्त होती दिखाई दी। अब गुरुग्राम निगम चुनाव में गुरुग्राम की जनता के पास एक मात्र दूसरा विकल्प था, कांग्रेस। लेकिन निकाय निगम चुनाव में भी कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर चली गई।

उन्होंने कहा कि यहाँ भी कांग्रेस के पास मुद्दों की कमी नही थी, और गुरुग्राम की जनता भी बदलाव चाहती थी। पर पिछले दोनों चुनाव की तरह कांग्रेस ने अपने कांग्रेसी कार्यकर्ताओ को दरकिनार कर बहारियो को टिकट दी। मेयर के लिए सीमा पाहुजा जिस ने विधान सभा चुनाव से पहले बीजेपी छोड़ी और निर्दलीये उम्मीदवार का साथ दिया। और बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ प्रचार किया। उन्होंने कहा कि पार्षद उम्मीदवारो में ज्यादातर कुछ चेहरे थे जो जनता ने निगम चुनाव से पहले कभी नही देखे थे। और कुछ तो बीजेपी से निकले हुए कांग्रेस में आते ही रातों रात टिकट ले गए। ऐसे में कई बड़े नेता भी चुनाव से दूरी बनाए रखी। नगर निगम गुरुग्राम चुनाव में कांग्रेस का सिर्फ एक पार्षद बना।

निकाय निगम चुनाव में बड़े नेताओ को प्रचार में न बुलाना:

गुरिंदरजीत सिंह ने बताया कि जहाँ बीजेपी अपने दिग्गज और बड़े नेताओ के साथ गुरुग्राम में रोड शो किया, सभाएँ की। वही कांग्रेस की तरफ से गुरुग्राम में प्रचार में कमी साफ दिखी। गुरुग्राम के अनेको स्थानीय मुद्दों के बावजूद भी बीजेपी का जीतना, कांग्रेस के ढीले प्रचार को साफ दर्शाता है। आम जन तक कांग्रेस अपना मेनिफेस्टो पहुंचाने में भी पीछे रही। ऐसे कई इलाके रहे, जहाँ कांग्रेस का पार्षद और मेयर उम्मीदवार पहुंचे ही नही। बात अगर बड़े नेताओ की की जाए तो उम्मीदवारो ने किसी बड़े नेता को प्रचार के लिए गुरुग्राम में नही बुलाया। उन्होंने कहा कि दलित समाज ने समाज की आरक्षित 6 सीटो को 3 करने के कारण रोष था, और बीजेपी के बहिष्कार की बात भी की थी। ऐसे में दलित समाज सिद्दे सिद्दे कांग्रेस को वोट करती। पर कांग्रेस पिछले कई सालों से गुरुग्राम में कुमारी शैलजा की एक भी रैली नही करवा सकी। अगर इस चुनाव में कुमारी शैलजा की एक भी रैली गुरुग्राम में हो जाती तो चुनावी नतीज़े कुछ ओर होते।

निष्कर्ष:

अब तीनों चुनाव में मिली हार पर कांग्रेस समीक्षा की बात कह रही है। इसके लिए कई कारण गिनाए जा रहे हैं। लेकिन अब भी एक ही बात राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है कि गुटो में बटी कांग्रेस कब एकजुट होगी?

कब वे अपने कार्यकर्ताओ को एहमियत देगी? कब जनता की नब्ज़ समझेगी? कब ज़मीनी स्तर पर काम करते पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं को टिकटे देगी?

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