“7 साल पहले टूटा अस्पताल, अब तक सिर्फ वादे!”
“गुरुग्राम बना मेडिकल हब, पर जनता लाइन में ग़ायब इलाज के लिए”
“जनता पूछे – दवाई कहाँ है? अधिकारी बोले – टेंडर में फंसी है!”
“नेता बोले – हम प्रयासरत हैं… जनता बोले – कब तक?”
“महिलाएं कतार में, सरकार विचार में!”
“निजी अस्पताल मस्त, सरकारी अस्पताल पस्त!”
गुरुग्राम, 0 7अप्रैल। गुरुग्राम जैसे देश के अग्रणी और विकसित शहर में एक ऐसा सरकारी अस्पताल, जिसे सात साल पहले तोड़ दिया गया था, आज तक दोबारा शुरू नहीं हो सका। हर साल सरकार की घोषणाएं स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर होती तो बहुत हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई बेहद दर्दनाक है।
घोषणाएं बहुत, काम शून्य
विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) के अवसर पर जहां सरकार और सत्ताधारी दल के नेता शुभकामनाएं दे रहे हैं, वहीं ज़मीनी हालात पर कोई चर्चा नहीं हो रही। अर्जुन नगर निवासी और समाजसेवी इंजीनियर गुरिंदरजीत सिंह ने सवाल उठाया कि सात साल पहले जो सरकारी अस्पताल तोड़ा गया था, वह अब तक बनकर तैयार क्यों नहीं हुआ?
उन्होंने पूछा — क्या हरियाणा सरकार वास्तव में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने में सक्षम है? गुरुग्राम से छह बार सांसद रहे राव इंद्रजीत सिंह और वर्तमान में राज्य की स्वास्थ्य मंत्री आरती राव होने के बावजूद गुरुग्राम में यह अधूरा प्रोजेक्ट क्यों पड़ा है?
बड़े-बड़े वादे, मगर हकीकत?
गुरिंदरजीत सिंह ने साफ शब्दों में कहा कि बीजेपी सरकार की घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी होती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर काम नगण्य है। गुरुग्राम के सेक्टर 10ए स्थित सरकारी अस्पताल की हालत यह है कि वहाँ बिस्तरों की भारी कमी है। डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार प्रति 1000 लोगों पर कम से कम 5 बेड होने चाहिए, लेकिन यहां स्थिति ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसी है।
महिलाओं के लिए कोई विशेष अस्पताल नहीं
उन्होंने यह भी बताया कि गुरुग्राम को भले ही ‘मेडिकल हब’ कहा जाता हो, लेकिन यहां आज तक कोई महिला विशेष अस्पताल नहीं है। प्राइवेट अस्पतालों में तो विदेशों से लोग इलाज के लिए आते हैं, लेकिन आम महिलाओं को सरकारी सुविधाओं में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्त्री रोग विशेषज्ञों के बाहर लंबी कतारें आम दृश्य हैं। लोगों की मांग है कि कम से कम 100 बेड वाला एक महिला अस्पताल तुरंत बनाया जाए, लेकिन इस दिशा में सरकार और स्वास्थ्य मंत्री आरती राव ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की भारी किल्लत
गुरिंदरजीत सिंह ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को दवाएं भी पूरी नहीं मिल पा रहीं। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि स्किन की बीमारी के इलाज के लिए जब वे सेक्टर 10 स्थित सरकारी अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें न तो अस्पताल से दवा मिली, न ही जन औषधि केंद्र से। अंततः उन्हें बाहर की मेडिकल शॉप से दवा खरीदनी पड़ी।
उन्होंने सवाल उठाया — “जब डॉक्टर सरकारी अस्पताल में दवा लिख रहा है, तो वही दवा अस्पताल स्टॉक में क्यों नहीं है? और बाहर की दुकान पर वही दवा उपलब्ध कैसे है?”
निष्कर्ष: क्या यह सब जानबूझकर हो रहा है?
गुरिंदरजीत सिंह ने यह गंभीर आरोप लगाया कि क्या जानबूझकर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, ताकि निजी अस्पतालों का कारोबार फलता-फूलता रहे? उन्होंने सवाल उठाया कि बिना मान्यता, बिना एनओसी चल रहे क्लीनिक, नर्सिंग होम्स, लैब्स और मेडिकल स्टोर्स पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
गुरुग्राम जैसे शहर में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर यह लापरवाही बेहद चिंताजनक है। क्या सरकार पर निजी अस्पताल लॉबी या मेडिकल माफिया का दबाव है? अगर नहीं, तो फिर ज़िम्मेदार अधिकारी, सांसद और मंत्री इन सवालों से बच क्यों रहे हैं?
जनहित में यही सवाल उठाना जरूरी है – क्या गुरुग्राम की जनता को स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा के लिए अब भी तरसते रहना पड़ेगा?