गुरिंदरजीत सिंह बोले – “कमीशनखोरी और लापरवाही की गठजोड़ से पिस रहे अभिभावक”, शिक्षा मंत्री की चेतावनियां साबित हो रहीं कागजी

भारत सारथी

गुरुग्राम। हरियाणा में शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक बार फिर से गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। गुरुग्राम के समाजसेवी इंजीनियर गुरिंदरजीत सिंह ने निजी स्कूलों की ओर से महंगे निजी प्रकाशकों की किताबें थोपने और शिक्षा विभाग की उदासीनता को लेकर तीखा सवाल उठाया है।

उन्होंने बताया कि राज्य में सत्र 2025–26 की शुरुआत के साथ ही निजी स्कूलों ने एनसीईआरटी के स्थान पर निजी पब्लिशर की महंगी किताबें छात्रों पर थोपनी शुरू कर दी हैं। हालाँकि शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा बार-बार चेतावनी जारी कर चुके हैं कि निजी स्कूल एनसीईआरटी की किताबें ही अनिवार्य रूप से लागू करें, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके उलट है।

???? क्या कहती हैं शिकायतें?

गुरिंदरजीत सिंह के अनुसार, शिक्षा निदेशालय के पास इस सत्र में अब तक प्रदेश भर से 57 शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं, लेकिन वास्तविक आंकड़ा इससे कई गुना अधिक है।
अभिभावकों को पर्चियों के माध्यम से विशेष बुकसेलरों से किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। कई शिकायतें मौखिक रूप से दी गईं जो कभी फाइलों तक नहीं पहुंचीं।

कमीशन का खेल और शिक्षा के साथ खिलवाड़

गुरिंदरजीत सिंह ने इसे कमीशनबाज़ी का सुनियोजित खेल करार देते हुए कहा,
“स्कूलों और प्रकाशकों के बीच की सांठगांठ के कारण अभिभावकों से मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। स्कूलों में दाखिले और किताबों की बिक्री, सब कुछ पहले से तय ‘पैकेज’ में शामिल होता है।”

उन्होंने कहा कि स्कूल सालाना परिणाम वाले दिन ही अगली कक्षा की किताबें और फीस वसूलने लगते हैं, जिससे अभिभावकों को कोई विकल्प ही नहीं मिलता।

प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल

सवाल उठता है कि जब सरकार को स्पष्ट रूप से समस्या का पता है, तो फिर निजी स्कूलों में छापेमारी और सख्त कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
गुरिंदरजीत सिंह का कहना है कि ब्लॉक लेवल पर शिक्षा विभाग के पास हर निजी स्कूल की सूची मौजूद है, फिर भी ना छापेमारी होती है, ना सीलिंग की प्रक्रिया।
उन्होंने पूछा –
“क्या सरकार सिर्फ मीडिया बाइट्स देने के लिए चेतावनी देती है? जब कार्रवाई नहीं होगी तो चेतावनी का क्या मतलब?”

बुनियादी सुविधाओं की कमी से मजबूरी में निजी स्कूल

उन्होंने बताया कि कई सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी, खराब इन्फ्रास्ट्रक्चर, और डिजिटल सुविधाओं का अभाव है। यही कारण है कि गरीब अभिभावक भी मजबूरी में निजी स्कूलों की ओर रुख करते हैं, जहां वे लूटे जाते हैं।

गुरिंदरजीत सिंह ने सवाल उठाया कि शिक्षा को लेकर यदि सरकार वास्तव में गंभीर है तो –

खाली पड़े शिक्षकों के पद क्यों नहीं भरे जा रहे?

सरकारी स्कूलों में आधुनिक सुविधाएं कब तक नजरअंदाज होंगी?

शिक्षा मंत्री की घोषणाएं ज़मीन पर कब उतरेंगी?


भारत सारथी विशेष टिप्पणी:

निजी स्कूलों की मनमानी और शिक्षा विभाग की लापरवाही मिलकर प्रदेश के शिक्षा तंत्र को कमजोर कर रही है। अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह सिर्फ शिक्षा का ही नहीं, समाज के भविष्य का भी संकट बन जाएगा।

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