किसी भी तरह का भेद भाव स्वीकार नही। गुरिंदरजीत सिंह

जाति धर्म के नाम पर नफ़रत पैदा करना देश के लिए आतंक से बड़ा खतरा। गुरिंदरजीत सिंह

आज हमे सम्राट अशोक से सीखने की जरूरत। गुरिंदरजीत सिंह

गुरुग्राम : आज देश भर में कश्मीर हमले को ले कर रोष है और भारत के कई इलाको में कश्मीरियों से भेद भाव की खबरे आ रही है। गुरुग्राम के समाजसेवी इंजीनियर गुरिंदरजीत सिंह अर्जुन नगर ने कहा कि पहलगाम आतंकी हिंसा बहुत निंदनीय है पर उस घटना के बाद कश्मीरियों के साथ भेद भाव करना गलत है। क्योंकि घटना को कुछ आतंकियों ने अंजाम दिया था। पर सभी कश्मीरियों से नफ़रत करना गलत। हम चाहते है कि जल्द आतंकियो का साफाया हो।

अनेकता में एकता ही पहचान।

 गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि भारत देश की पहचान ही अनेकता में एकता है। हमारा भारत पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। एकता शब्द स्वयं यह प्रकट करता है कि भारत में जाति, रंग, रूप, वेशभूषा अलग होने के बावजूद भी यह एक सूत्र में बंधा है। जिस प्रकार अनेक वाद्य यंत्र मिलकर संगीत की एक लय, एक गति एक लक्ष्य और एक भाव बना देते हैं और मनमोहक संगीत का जन्म होता है। भारत में भी विभिन्न जातियां, धर्म, भाषाएं, बोलियां एवं वेशभूषा हैं, फिर भी हम सब एक हैं। भारत की एकता आज से नहीं बल्कि प्राचीनकाल से प्रसिद्ध है। समय-समय पर विभिन्न ताकतों ने इस एकता को खंडित करने के प्रयास किए हैं, परंतु उन्हें भी हमारी एकता के सामने शीश झुकाकर नमन करना पड़ा। मनुष्य समाज का एक भावनात्मक प्राणी है और अंतर्मन की भावनाओं के कारण ही वह समाज के अन्य प्राणियों से जुड़ा होता है।

किसी भी तरह का भेद भाव स्वीकार नही। 

गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि किसी जाति, समुदाय व राष्ट्र के व्यक्तियों के बीच जब भावात्मक एकता समाप्त होने लगती है, तो सामाजिक अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और सारे बंधन शिथिल पड़ने लगते हैं। जिस प्रकार एक परिवार एकता के अभाव में बिखर जाता है, उसी प्रकार सामाजिक एकता व समरसता के बिना धरा निष्प्राण सी दिखती है। सामाजिक एकता समरसता पूर्ण सृष्टि का एक मजबूत स्तंभ है। आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा औी बेरोजगारी है। देश की प्रगति के लिए हम सबको मिलकर इन चुनौतियों का समाधान करना चाहिए। परन्तु कुछ असामाजिक तत्व छोटी-छोटी बातों को लेकर आपसी भाई-चारे में दरार डालने का काम करते हैं। इन लोगों के मनसूबों को जानकर हमें उनका सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए और समरसता को बनाए रखना चाहिए। *हमारी पुरातन संस्कृति में कभी भी किसी के साथ किसी भी तरह के भेदभाव को स्वीकार नहीं किया गया।* 

हमारे वेदों में भी जाति व वर्ण के आधार पर किसी प्रकार के भेद-भाव का वर्णन नहीं दिखाई पड़ता। परंतु समाज के कुछ तुच्छ प्राणियों की मिथ्या बातों के कारण ही समरसता फीकी पड़ने लगी है। हमें विशेषकर युवाओं को दिग्भ्रमित होने से बचाना चाहिए और उनमें इस प्रकार के संस्कार विकसित करने चाहिए जिससे सामाजिक एकता व समरसता का माहौल कायम रहे। हम सबको मिलकर सामाजिक एकता, जुटता व समरसता का संकल्प लेना चाहिए ताकि फिर से हमारा बिखरता समाज एक ही माला में गुंथकर समरसता की अनूठी मिसाल बन जाए।

अशोक जब राजा बनता है, इस राष्ट्र पहचान तब से अनेकता में एकता की रही। 

गुरिंदरजीत सिंह ने बताया कि आज हिंदू मुसलमान और ईसाइयों के बीच तकरार देखने को मिलती है। सम्राट अशोक के समय भी समाज में तकरार थी। तब बौद्ध जैन और ब्राह्मणों के बीच में तकरार था। 

उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक को यह बात मालूम थी कि अगर समाज में तकरार होगी व राष्ट्र में अंदरूनी तकरार होगी तो राष्ट्र व समाज आगे बढ़ नही पायेगा। तो वह *”धामा की नीति”* लेकर आए। और सबसे कहा कि सबको एक दूसरे के धर्म की आम बातें जानी चाहिए। ताकि आप एक दूसरे के धर्म का सम्मान कर सके। सम्राट अशोक के समय आम जन खुशहाल था। देश सोने की चिड़िया था। 

उन्होंने कहा कि ऐसी ही नीति मुगल बादशाह अकबर अपने शासनकाल में लेकर आया। क्योंकि उसका भारतीय उप महादीप कब्जा था।

जाति धर्म के नाम पर नफ़रत पैदा करना देश के लिए आतंक से बड़ा खतरा। 

गुरिंदरजीत सिंह ने जा कि जाति धर्म के नाम पर नफ़रत पैदा करना देश के लिए आतंक से बड़ा खतरा। उन्होंने कहा कि अब जो हमने अशोक को पढ़ा, अकबर को पढ़ा । एक बात यहां पर साफ़ होगी कि भारत में तब भी भारत विभिन्ताओ का देश था और आज भी विभिन्ताओ का देश है। तो आज सरकार को ऐसा एक सिद्धांत लाना चाहिए जो हमारे विभिन्तावादी भारत को एक सूत्र में जोड़ सके। और धर्म जाति बाकी नाम पीफ पनप रही नफ़रत को जड़ से खत्म कर सके।

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