गुरुग्राम। “स्कूल संचालकों और शासन-प्रशासन की मिलीभगत से वर्षों से चल रहे हैं गैर मान्यता प्राप्त स्कूल”, यह कहना है गुरुग्राम के सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर गुरिंदरजीत सिंह का। उन्होंने आरोप लगाया कि जिन स्कूलों को मान्यता नहीं मिली है, वे शिक्षा विभाग और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से अब भी बेरोकटोक चल रहे हैं।

गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त स्कूल एक-दूसरे के पूरक बन चुके हैं, जहाँ एक तरफ गैर मान्यता प्राप्त स्कूल बच्चों की पढ़ाई करवाते हैं, वहीं उनकी बोर्ड परीक्षाएं मान्यता प्राप्त स्कूलों से दिलाई जाती हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब कोई स्कूल मान्यता प्राप्त ही नहीं है, तो वे बोर्ड की कक्षाएं कैसे चला सकते हैं?

कोर्ट की फटकार, लेकिन सरकार मौन

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में हरियाणा सरकार से गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर की गई कार्रवाई की स्थिति रिपोर्ट तलब की है। गुरिंदरजीत सिंह ने तंज कसते हुए कहा कि पिछले दस वर्षों में सरकार इस रिपोर्ट को कोर्ट में पेश नहीं कर सकी। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अधिकारी जानबूझकर रिपोर्ट नहीं बना रहे? क्या यह सरकार और अधिकारियों की मिलीभगत का प्रमाण नहीं है?

भ्रष्टाचार का गढ़ बन चुका है शिक्षा विभाग

गुरिंदरजीत सिंह ने शिक्षा विभाग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यह विभाग अब एक भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। डीईओ (जिला शिक्षा अधिकारी) जैसे पदों पर नियुक्ति के लिए लाखों की रिश्वत देनी पड़ती है, और पद मिलने के बाद प्रतिमाह ‘पैकेज’ की अपेक्षा की जाती है। उन्होंने आरोप लगाया कि इन पदों से होने वाली मोटी कमाई का बड़ा हिस्सा निजी स्कूलों से वसूला जाता है – खासकर गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों से।

शिक्षा के नाम पर व्यवसाय

इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं तक मौजूद नहीं होतीं। न तो पर्याप्त शौचालय, न ही दिव्यांगों के लिए रैंप, न खेल के मैदान, और न ही सभी विषयों के योग्य शिक्षक। फिर भी ये स्कूल अभिभावकों से भारी फीस वसूलते हैं। शिक्षा विभाग इन खामियों के बावजूद इन्हें छूट देता है, क्योंकि इसके पीछे हर महीने लाखों की ‘ऊपरी कमाई’ की व्यवस्था है।

मान्यता प्राप्त स्कूल भी दे रहे संरक्षण

गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि मान्यता प्राप्त स्कूल, गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को संरक्षण और बढ़ावा दे रहे हैं। वजह यह है कि इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को आगे की कक्षाओं में यहीं दाखिला दिया जाता है, जिससे दोनों स्कूलों को लाभ होता है। अब तो इन स्कूल संचालकों ने मिलकर स्थानीय नेताओं और विधायकों पर दबाव बनाने के लिए ज्ञापन देने शुरू कर दिए हैं, ताकि ऐसे स्कूल बंद न किए जाएं।

समाधान क्या है?

गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि यदि सरकार वास्तव में शिक्षा व्यवस्था को सुधारना चाहती है, तो उसे कड़े कदम उठाने होंगे।

  • हर क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण सरकारी स्कूल खोलने होंगे।
  • योग्य शिक्षकों की नियमित भर्ती करनी होगी।
  • उच्च न्यायालय को भी इस दिशा में सरकार को आदेश देने चाहिए कि हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा मिल सके।

उन्होंने कहा कि यदि ऐसा किया गया, तो निजी शिक्षा माफिया की दुकानें खुद-ब-खुद बंद हो जाएंगी। आज जो लूट चल रही है—किताब, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी और शुल्क के नाम पर—वह तभी रुकेगी जब सरकार और अदालतें ईमानदारी से कदम उठाएं।

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