गुरुग्राम, 6 मई 2025 – कल शाम अतिक्रमण मुक्त गुड़गांव अभियान की शुरुआत करने वाले नगर निगम कमिश्नर श्री अशोक गर्ग का देर रात तबादला कर देना केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संदेश माना जा रहा है। महज पाँच महीने के कार्यकाल में, जिसमें दो महीने तो चुनावी व्यस्तताओं में निकल गए, अशोक गर्ग ने जिस तरह शहर की अव्यवस्था पर सख्त रवैया अपनाया, उससे लगता है सत्ता को असहजता होने लगी थी।
सवाल यह है कि आखिर गर्ग को हटाया क्यों गया?

क्या यह महज संयोग है कि जब-जब कोई अफ़सर गुड़गांव या मानेसर में सिस्टम से टकराता है, तब-तब उसे ‘ट्रांसफर’ की गाड़ी में बिठा दिया जाता है? याद दिलाना जरूरी है कि पिछले हफ्ते ही मानेसर नगर निगम की कमिश्नर श्रीमती रेणु सोगान का भी कुछ इसी अंदाज में तबादला कर दिया गया था।
अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि अशोक गर्ग के इस असामयिक ट्रांसफर के पीछे असली वजह क्या है:
- मेयर श्रीमती राजरानी मल्होत्रा के पति श्री तिलकराज मल्होत्रा को 21 अप्रैल को मेयर का सलाहकार नियुक्त किया गया था। क्या यह नियुक्ति और
- 29 अप्रैल को उसी पद से उनकी बर्खास्तगी से जुड़ा टकराव इसका कारण बना?
- या फिर पिछले सप्ताह हुई अचानक बारिश से उजागर हुई गुड़गांव की सीवर व्यवस्था की नाकामी प्रशासन की पोल खोलने लगी थी?
- बंधवाड़ी के कूड़े के पहाड़ में लगी आग ने शीतला माता और बाबा खाटू श्याम जी के भक्तों के सामने साँस लेने तक की चुनौती खड़ी कर दी। क्या ये प्रदूषण की बढ़ती राजनीति में अशोक गर्ग का सख्त प्रशासन खलने लगा?
- या फिर किसी रसूखदार की प्रॉपर्टी पर निगम की कार्रवाई इस कदर चुभ गई कि अतिक्रमण हटाने वाला कमिश्नर ही हटा दिया गया?
“ट्रिपल इंजन की सरकार में डर और तबादलों की राजनीति चरम पर”
हरियाणा में भाजपा की ‘ट्रिपल इंजन’ की सरकार का असल मतलब अब जनता बखूबी समझने लगी है —
एक इंजन जुमलेबाज़ी और भ्रष्टाचार का,
दूसरा इंजन डर और दमन का,
तीसरा इंजन तबादला-राजनीति का।
जहाँ प्रशासनिक अफ़सर फील्ड में सख्ती दिखाते हैं, वहीं सत्ता के गलियारों में बैठे चंद रसूखदारों को यह रास नहीं आता। अशोक गर्ग का तबादला इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि गुड़गांव की व्यवस्था सिस्टम से नहीं, सत्ता से चल रही है।
अब जनता पूछ रही है – क्या भाजपा की सरकार गुड़गांव को वाकई स्मार्ट और साफ़ बनाना चाहती है, या सिर्फ अपने चहेतों के हितों की रखवाली में व्यस्त है?