पर्ल चौधरी

आज मैं आप सभी के सामने एक अत्यंत भावनात्मक, प्रेरणास्पद और सशक्त संदेश लेकर खड़ी हूँ। यह सिर्फ़ एक मंतव्य नहीं है, यह एक आह्वान है — एक घोषणा है उस परिवर्तन की जो भारत की बेटियों ने लाकर दिखाया है।

जब कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमाण्डर व्योमिका सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर पर प्रेस ब्रीफिंग दी, तो यह केवल एक सैन्य कार्रवाई की जानकारी नहीं थी। यह उन लाखों करोड़ों नारियों की तरफ़ से एक ऐतिहासिक उत्तर था — उन आतंकवादियों को, उन कट्टरपंथियों को, और उन सोचों को जो आज भी स्त्री को दुर्बल मानते हैं।

पहलगाम की घटना को हम कभी नहीं भूल सकते — जब निहत्थे पर्यटकों को, उनके धर्म पूछकर, उनके परिवारों के सामने मार डाला गया। जब उनकी पत्नियों के सामने उनका सिंदूर मिटा दिया गया — तब एक ज़ख्म सिर्फ़ एक परिवार का नहीं, पूरे भारतवर्ष की आत्मा का हुआ।
और उसी ज़ख्म का उत्तर था — ऑपरेशन सिंदूर

यह ऑपरेशन कोई युद्ध नहीं था, यह सम्मान की पुनर्प्राप्ति थी। यह भारत की बेटियों की वह पुकार थी जो अब आदेश बन चुकी है — कि अब हर सिंदूर की रक्षा होगी। अब हर माँ की गोद और हर बहन की मांग सुरक्षित रहेगी, चाहे उसके लिए सीमा लांघनी पड़े या आसमान।

लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ। इस दिन तक आने के लिए सदियों की तपस्या, बलिदान और संघर्ष लगे हैं।

मैं यहाँ सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले को कोटिशः नमन करती हूँ — जिन्होंने उस दौर में पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला, जब स्त्री शिक्षा को पाप समझा जाता था।
आज जब “फुले” फ़िल्म देशभर में चल रही है, तो वो हर भारतीय को याद दिला रही है कि जिस कलम से आज बेटियाँ भविष्य लिख रही हैं, वो किसी ने अपने खून-पसीने से भिगोई थी।

सावित्रीबाई फुले की संतानें ही हैं जो आज सेना में हैं, अंतरिक्ष में हैं, और संसद में हैं।

याद कीजिए रानी लक्ष्मीबाई को — जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में अंग्रेज़ों की फौज को चौंका दिया था। तलवार थामकर कहा था — “मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी।”
आज भारत की हर बेटी के भीतर वही ज्वाला है — अब वो कह रही है, “मैं अपने भारत में आतंकवाद को नहीं पनपने दूँगी।”

किरण बेदी, जिन्होंने पुलिस विभाग की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनकर लाखों बेटियों को यह विश्वास दिलाया कि वर्दी सिर्फ़ मर्दों का अधिकार नहीं है।

कल्पना चावला, जो हरियाणा के एक छोटे से कस्बे से निकलकर अंतरिक्ष की ऊँचाइयों तक पहुँचीं। उनके सपनों की ऊँचाई ने भारत की बेटियों को सिखाया कि सीमाएँ सिर्फ़ शरीर की होती हैं, सपनों की नहीं।

आज उसी प्रेरणा की कड़ी हैं हमारी सेनाओं की बेटियाँ — जो दुश्मनों के अड्डों को ध्वस्त करने के मुहिम का हिस्सा बनी हैं, और माँ भारती के माथे का तिलक बन रही हैं।

लेकिन इस महान यात्रा के बीच एक काली सच्चाई अब भी छुपी हुई है — और वो है भ्रूण हत्या।

कैसी विडंबना है!
एक ओर हमारी बेटियाँ सेना में नेतृत्व कर रही हैं, वैज्ञानिक बन रही हैं, न्यायालय चला रही हैं, राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।
और दूसरी ओर, उसी देश में हर साल लाखों कन्याएँ गर्भ में मार दी जाती हैं, सिर्फ़ इसलिए कि वे लड़की हैं।

क्या आपको नहीं लगता कि यह भारत माता के आँचल को खरोंचने जैसा अपराध है?

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता, और उसमें बेटियों की भूमिका आज उन सभी को आइना दिखा रही है —

“जो बेटियाँ देश की सीमा बचा सकती हैं, क्या उन्हें माँ के गर्भ में रहने का अधिकार नहीं?”

मैं आज इस मंतव्य से स्पष्ट कहना चाहती हूँ —
अब जो भी भ्रूण हत्या करेगा, वो सिर्फ़ एक हत्या नहीं करेगा, वो शायद किसी कल्पना चावला को, किसी रानी लक्ष्मीबाई को, किसी सावित्रीबाई को मार रहा होगा।

कांग्रेस पार्टी, और मैं स्वयं — एक शिक्षित महिला होने के नाते — इस राष्ट्र से वचन लेती हूँ कि हर बेटी को जीने, पढ़ने, उड़ने और लड़ने का हक़ मिलेगा।
हम नारी को देवी कहते हैं, शक्ति कहते हैं — अब वक्त है कि उन्हें भारत के संविधान के तहत समानता का, बराबरी का भी हक मिले।

आज का भारत बदल रहा है —
यहाँ बेटियाँ सिर्फ़ राखी नहीं बाँधतीं, बंदूक भी थामती हैं।
यहाँ बेटियाँ सिर्फ़ अंजलि नहीं सजातीं, आकाश को छूती हैं।
और अब बेटियाँ सिर्फ़ घर नहीं चलातीं, सरकारें और सेनाएँ भी चलाती हैं।

मैं उन माताओं को भी प्रणाम करती हूँ — जिन्होंने अपनी बेटियों को सीमाओं पर भेजा, उन्हें शिक्षा दी, सपनों की उड़ान दी।

आज हमारी बेटियाँ कह रही हैं:

“हम वो आग हैं जो दीप भी बन सकती है, और ज्वाला भी।

हमें प्रेम दो तो जीवन सजाएँगे, और युद्ध करना पड़े तो भारत की सीमाएँ बचाएँगे।”

तो आइए — इस ऑपरेशन सिंदूर को एक प्रतीक बनाइए —

एक-एक बेटी को पढ़ाइए, बचाइए और विश्वास दीजिए।

क्योंकि अब भारत की रक्षा केवल बेटों की जिम्मेदारी नहीं —
बेटियाँ भी अब सरहद पर हैं, और सत्ताधार पर भी।

जय हिंद! जय भारत!
नारी शक्ति अमर रहे!

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