प्राचीन भारत के समाज में युद्ध का मुख्य औचित्य आत्म-संरक्षण, स्त्री से अभद्र व्यवहार, क्षेत्रीय आक्रमण, राष्ट्रीय सम्मान, शक्ति संतुलन, मित्र का उत्पीड़न और हत्या की रोकथाम था। उस समय दो प्रकार के युद्ध होते थे। धर्मयुद्ध और कूट युद्ध। धर्मयुद्ध धर्म के सिद्धांतों पर किया गया युद्ध होता था, यह एक प्रकार का न्यायपूर्ण युद्ध था जिसे सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती थी। कूटयुद्ध गुप्त योजना, कूटनीति और षड्यंत्र की सहायता से किया गया युद्ध होता था। इस प्रकार के युद्ध में वैदिक मंत्रों के प्रयोग भरपूर रुप से होता था। इसी कारण कुछ प्राचीन वैदिक ज्ञानी इसे मंत्र-युद्ध के नाम से संबोधित करते हैं। इन दो प्रकार के युद्धों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों, महाकाव्यों और अर्थशास्त्र ग्रंथ में किया गया है।
सुशील कुमार ‘नवीन ‘

पहलगाम हादसा हर किसी को झकझोरने वाला रहा है। आतंकियों द्वारा केवल हिंदुओं को टारगेट करना भारत के प्रत्येक हिन्दू की अस्मिता पर सीधी चोट से कम नहीं था। बांग्लादेश के बाद इस तरह से हिंदुओं को निशाना बनाना हर किसी को अखर रहा था। सरकार से भी पहले ही दिन से इस पर कड़ा एक्शन लेने की मांग लगातार उठाई गई। देशभर में प्रदर्शन भी हुए। सत्ता का गलियारा भी एकजुट दिखा। केंद्र सरकार भी इस मामले में शुरुआत से ही अपने रुख को स्पष्ट किए हुए थी। मंगलवार रात को आतंकियों के ठिकाने ध्वस्त करने की कार्रवाई ने गुस्साए कलेजों को ठंडक देने का काम किया है। जवाबी कार्रवाई का आगाज अच्छा हुआ है, उम्मीद है अंजाम भी उम्मीदों से परे होगा। कुछ ऐसा हो कि सदियां याद रखें।
भारत शुरुआत से ही शांतिप्रिय देश रहा है। प्राचीन काल से ही अहिंसा परमो धर्म : को ध्येय वाक्य मानने वाले भारत को अहिंसा का पुजारी भी कहा जाता है। अहिंसा को हमने अपने जीवन में महत्वपूर्ण मूल्य के रूप में स्वीकार किया हुआ है। इतिहास गवाह है कि बल शक्ति ने सदैव अपने बल का दुरुपयोग कर अनैतिकता का बढ़ावा दिया है। पर भारत ने कभी भी किसी को दबाने या उस पर कब्जा करने की नीति नहीं रखी। प्राचीन भारत से आधुनिक भारत तक जब-जब भारत की अखंडता को प्रभावित करने का प्रयास किया है, भारत ने सदैव वसुधैवकुटुम्भकम् को आत्मसात करते हुए प्रत्येक मामले को शांति और सौहार्द के साथ निपटाने का प्रयास किया है। कहा भी जाता है कि महान व्यक्ति और धार्मिक परंपराएं सदा अहिंसा का पालन करते हैं। हां कई बार अहिंसा को कुछ लोग अलग अर्थ निकाल कर भारत को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं। उनको जवाब ऐसे ही देना जरूरी हो जाता है।
अहिंसा का सीधा सा भाव है दूसरों को शारीरिक या मानसिक नुकसान न पहुंचाना। हिन्दू धर्म में अहिंसा को जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा माना गया है। हम तो सुबह उठते ही सबसे पहले प्रार्थना करते हैं कि धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो। प्राणियों में सद्भावना हो विश्व का कल्याण हो। हर धार्मिक कार्यक्रम, स्कूल प्रार्थना समय इसे दोहराकर अपने मन को संबल प्रदान करते हैं। हम अपने कल्याण की बात न कर विश्व के कल्याण की बात कर अपनी प्राचीन संस्कृति की अवधारणा को सबके सामने प्रस्तुत करते हैं। पर कई बार हमारी इसी भावना को कुछ लोग हमारी कमजोरी समझ लेते हैं। उनके लिए हम अहिंसक न होकर हिंसा से घबराने वाले दब्बू किस्म के व्यक्तित्व हो जाते हैं। उन्हीं के लिए अहिंसा परमो धर्म: श्लोक के अगले हिस्से को याद कराना पड़ता है। इस पूरे श्लोक को फिर हमें इस तरह से दोहराना पड़ता है कि
अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
अर्थ है कि अहिंसा परम धर्म है, लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी उचित है। जो धर्म का नाश करता है, धर्म उसका नाश करता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
पुराने समय से ही राजा का पहला और सबसे महत्वपूर्ण धर्म प्रजा की सुरक्षा और संरक्षण माना गया है। इसके तहत राजा को प्रजा के लिए आंतरिक कुचेष्टाओं के साथ-साथ किसी भी प्रकार की ऐसी गतिविधि जिससे देश की अस्मिता को नुकसान पहुंचे, उससे खुले रूप में निर्भीक होकर अस्त्र और शस्त्र से मुकाबला करें। युद्ध की नैतिकता पर भी चर्चाएं लगातार हुई है। वैदिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में युद्ध के सिद्धांतों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया हैI परिस्थितियों को ध्यान में रखकर उचित युद्ध को आवश्यक माना गया है। ऐसा नहीं है कि हम अगले को अवसर नहीं देते। सनातन संस्कृति अहिंसा और संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान को प्रमुखता देती है। सशस्त्र बल का सहारा लेने से पहले शांतिपूर्ण समाधान हमारी प्राचीन सोच रही है। लेकिन इसे कोई कमजोरी समझे, यह उसकी सबसे बड़ी भूल है। हमारे आराध्य प्रभु श्रीराम है। रावण को खूब समझाया कि वो अपनी भूल स्वीकार कर शरण में आ जाए। नहीं माना तो उसके साथ जो हुआ, उससे हम सब परिचित हैं। कौरव अधर्म पर अड़े रहे तो स्वयं विष्णु अवतार कृष्ण को धर्म की लड़ाई में अग्रणी होना पड़ा।
रामायण, महाभारत, और मनुस्मृति जैसे कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों में युद्ध के बारे में कई नैतिक उपदेशों का भी hउल्लेख है। मनुस्मृति में कहा गया है कि
अनित्यो विजयो यस्माद् दृश्यते युध्यमानयोः ।
पराजयश्च संग्रामे तस्माद् युद्धं विवर्जयेत् ।।
इस श्लोक के अनुसार युद्ध में जय तथा पराजय अनिश्चित होती है। जहां तक हो सके युद्ध से बचने का प्रयास करना चाहिये। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए यह भी कहा गया है कि जब कोई उपाय शेष न रहे तो –
साम्रा दानेन भेदेन समस्तैरथवा पृथक्।
विजेतृः प्रयतेतारीन्न युद्धेन कदाचन्।
इस श्लोक के अनुसार जीत की इच्छा करने वाले राजा को साम, दाम तथा भेद की रणनीति का सहारा लेना चाहिये। किसी भी विधि से शत्रु को अपने अनुकूल बनाने के प्रयास में असफल होने पर युद्ध का विचार करना चाहिये। पहलगाम हादसे के जवाब में भारत द्वारा पड़ोसी को सबक सिखाने की शुरुआत कर दी गई है। भारत ने शुरुआत नहीं की है। जब कोई घर में घुसकर हमला करेगा तो जवाब तो देना ही होगा। चर्चित हरियाणवी गायक कलाकार मासूम शर्मा का खटोला गीत आज के समय में सही बैठता है।
तख्ती-तख्ती पोत दी जागी, सबकी गोभी खोद दी जागी।
पिछले गेड़े छोड़ दिए थे, इबके सीधी मौत दी जागी।