
कुरुक्षेत्र, 12 मई। षड्दर्शन साधुसमाज श्री गोविंदानंद आश्रम पिहोवा के संगठन सचिव वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने कहा है कि वैशाख पूर्णिमा, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, अध्यात्म और साधना का एक अत्यंत पवित्र अवसर होता है। इस बार यह पर्व 12 मई सोमवार को एक दुर्लभ योग के साथ मनाया जा रहा है, जो वर्षों बाद संयोगवश आया है।
पण्डित कौशिक के अनुसार इस विशेष दिन पर पीपल के वृक्ष का पूजन मानसिक तनाव, रोगों और कुंडली दोषों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। उन्होंने कहा—
“जो व्यक्ति प्रतिदिन या विशेषतः बुद्ध पूर्णिमा पर श्रद्धा और नियमपूर्वक पीपल का पूजन करता है, उसकी जन्मकुंडली के दोष शांत होते हैं और दिव्य आत्मबल जागृत होता है।”
पीपल – त्रिदेवों का वास और चौबीसों घंटे जीवनदायी प्राणवायु देने वाला वृक्ष
प्राचीन शास्त्रों और पुराणों में पीपल के वृक्ष को सर्वाधिक पवित्र माना गया है। वैद्य कौशिक ने बताया कि—
- पीपल वृक्ष के निचले भाग में ब्रह्मा,
- मध्य में विष्णु,
- और शीर्ष पर भगवान शिव का वास होता है।
साथ ही, इसके हर पत्ते में सभी देवताओं का निवास माना गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—
“वृक्षों में मैं पीपल हूं।”
बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे मिला था ज्ञान
बिहार स्थित गया धाम में महात्मा बुद्ध को इसी पवित्र पीपल वृक्ष के नीचे तपस्या कर दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। आज भी वह अति प्राचीन बोधिवृक्ष वहाँ विद्यमान है।
इस दिन करें ये विशेष उपाय
पण्डित कौशिक ने बताया कि बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर निम्न उपाय अत्यंत फलदायक सिद्ध होते हैं:
- पीपल को जल अर्पित करें, सरसों के तेल का दीपक जलाएं और कम से कम सात परिक्रमा करें।
- जिनकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो, वे गाय के दूध से भगवान शिव का अभिषेक करें।
- जिनके बृहस्पति ग्रह या कारोबार में रुकावट हो, वे गन्ने के रस से अभिषेक करें।
- अपने शरीर के वजन के बराबर हरी घास गौशाला में गऊओं को खिलाएं — यह पितृ दोष और आर्थिक कष्ट से मुक्ति दिलाता है।
पीपल : पर्यावरण का भी वरदान
वैद्य कौशिक ने बताया कि पीपल एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देता है।
वैशाख मास में वृक्षों को जल अर्पण और पशु-पक्षियों को जल पिलाना भी बड़ा पुण्यफल देने वाला कार्य है। इससे न केवल आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है, बल्कि मनुष्य का आत्मबल, मनोबल और अधूरे कार्य भी पूर्ण होने लगते हैं।
“बुद्ध पूर्णिमा का यह दुर्लभ संयोग केवल पूजन का नहीं, बल्कि आत्मिक उत्थान का अवसर है। आइए, इस बार पीपल के नीचे ध्यान कर, प्रकृति और देवत्व से सच्चा संवाद करें।”