ऋषि प्रकाश कौशिक
तिरंगा: केवल ध्वज नहीं, राष्ट्रीय आत्मा का प्रतीक
तिरंगा हमारे देश की आत्मा है, जो देशभक्ति, बलिदान, और एकता का संदेश देता है। यह सिर्फ तीन रंगों वाला झंडा नहीं, बल्कि संविधान और लोकतंत्र की पहचान है।
तिरंगा यात्रा: क्या यह केवल एक रैली बनकर रह गई है?
जब राजनीतिक दलों द्वारा तिरंगा यात्रा निकाली जाती है, तो सवाल उठता है – क्या इसका उद्देश्य मात्र दिखावा है या यह राष्ट्रप्रेम का सच्चा उदाहरण?
क्या भाग लेने वालों को शपथ नहीं लेनी चाहिए?
जो लोग तिरंगा लेकर यात्रा में शामिल होते हैं, क्या उन्हें यह प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिए कि वे देश के संविधान की रक्षा करेंगे, भ्रष्टाचार से दूर रहेंगे, और जनसेवा को प्राथमिकता देंगे?
तिरंगा यात्रा बनाम व्यवहारिक देशभक्ति
देशभक्ति का प्रमाण केवल नारों या झंडों में नहीं, बल्कि आचरण में होता है। यदि तिरंगे के नीचे खड़ा व्यक्ति संविधान का उल्लंघन करता है, तो वह तिरंगे का अपमान करता है।
तिरंगे के नाम पर ‘खर्ची-पर्ची’ की राजनीति क्यों?
वर्तमान राजनीति में चुनावी लाभ के लिए तिरंगे का उपयोग करना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह यात्रा तब तक सार्थक नहीं जब तक यह नेताओं को ईमानदारी और पारदर्शिता की राह पर न ले जाए।
अंधभक्ति नहीं, आत्मनिरीक्षण की जरूरत
तिरंगा यात्रा को आत्मावलोकन का मंच बनाया जाना चाहिए। क्या हम अपने कर्तव्यों के प्रति सजग हैं? क्या हम तिरंगे के मूल्यों के अनुरूप चल रहे हैं?
सार्थक यात्रा: संकल्प और शपथ के साथ
तिरंगा यात्रा की शुरुआत एक सार्वजनिक शपथ से हो – जिसमें संविधान की रक्षा, जनसेवा और ईमानदारी का संकल्प लिया जाए। तभी यह यात्रा एक राष्ट्र निर्माण की दिशा में सार्थक पहल मानी जाएगी।
निष्कर्ष: तिरंगा लहराना आसान है, उसे जीना कठिन
तिरंगे को लेकर चलना आसान है, पर उसके मूल्यों को अपने जीवन में उतारना ही सच्ची देशभक्ति है। अगर तिरंगा यात्रा में यह भावना नहीं, तो वह केवल एक ‘दिखावा’ बनकर रह जाएगी।