कुरुक्षेत्र, 18 मई: गीता ज्ञान संस्थानम में रविवार को गंगा समग्र हरियाणा प्रांत की योजना बैठक का आयोजन हुआ। इस अवसर पर उपस्थित संत-महापुरुषों और सामाजिक संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने गंगा सहित सभी जल तीर्थों की अविरलता और निर्मलता को लेकर व्यापक चिंतन और जनजागरण पर बल दिया।
बैठक का शुभारंभ संत ज्ञानानंद जी महाराज एवं अन्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ। इसके पश्चात राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामाशीष जी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा,
“गंगा समग्र एक समर्पित जन अभियान है, जो नदियों की स्वच्छता, पवित्रता और प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रहा है। गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि समस्त जल-तीर्थों की प्रतिनिधि और जीवनदायिनी है। कोरोना काल में जिन लोगों ने गंगा जल का सेवन किया, उनमें इसके औषधीय गुणों के कारण संक्रमण की तीव्रता अपेक्षाकृत कम रही। इसलिए गंगा की निर्मलता और अविरलता पूरे देश के जल संसाधनों की चिंता से जुड़ी हुई है।”
गीता ज्ञान मनीषी संत ज्ञानानंद जी ने अपने आशीर्वचन में कहा,
“हरियाणा में सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन जब तक समाज में श्रद्धा और आस्था का जागरण नहीं होगा, तब तक ऐसी नदियाँ अपने प्राकट्य से वंचित रहेंगी। गंगा समग्र जिस प्रकार से जनमानस में श्रद्धा और संरक्षण की चेतना जगा रहा है, उससे सभी नदियों की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन संभव है। मेरा पूर्ण आशीर्वाद गंगा समग्र के साथ है।”
विश्व हिन्दू परिषद के उत्तर क्षेत्र संगठन मंत्री मुकेश जी ने कहा,
“आज देशभर में गंगाजल की मांग सबसे अधिक है, और यह तभी संभव होगा जब गंगा स्वयं निर्मल और अविरल रहे। इसके लिए जनसहयोग अत्यंत आवश्यक है। गंगा समग्र द्वारा जल-तीर्थों की रक्षा का जो कार्य हो रहा है, उसमें हम सभी को सहभागी बनना चाहिए।”
इस अवसर पर राष्ट्रीय सह संपर्क प्रमुख गिरीश नारायण चतुर्वेदी ने प्रस्तावना प्रस्तुत की और अतिथियों का परिचय व सम्मान किया। गंगा बाहिनी हरियाणा के प्रांत प्रमुख अतीन्द्र जी ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया।
मंच पर उपस्थित प्रमुख जनों में
- राष्ट्रीय मंत्री पवन चौहान
- हरियाणा प्रांत के संरक्षक संजय वशिष्ठ
- संयोजक सतपाल शर्मा
- कुरुक्षेत्र विभाग कार्यवाह संजीव धीमान
- प्रचारक संजय जी
- विहिप विभाग प्रमुख राकेश जी
सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ता, संतजन और सैकड़ों की संख्या में उपस्थित कार्यकर्ताओं ने सहभागिता की।
गंगा समग्र का यह आयोजन न केवल नदी संरक्षण का आह्वान था, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक प्रेरणास्पद प्रयास भी था।