— गुरुग्राम में तिरंगा यात्रा की सफलता पर उठे सवाल

गुरुग्राम, 18 मई | संवाददाता – गुरुग्राम की धरती रविवार को देशभक्ति के रंग में रंगी दिखाई दी जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता और वीर सैनिकों के सम्मान में एक भव्य तिरंगा यात्रा निकाली गई। लेकिन इस आयोजन की भव्यता के बीच एक अहम सवाल भी हवा में तैरता रहा — क्या यह आयोजन सचमुच सैनिकों को समर्पित था, या फिर यह एक राजनीतिक मंचन बनकर रह गया?

तिरंगा यात्रा का आरंभ कंपनी बाग से हुआ और इसका समापन जॉन हॉल स्थित शहीद स्मारक पर किया गया। भाजपा के संगठन महामंत्री फणींद्रनाथ शर्मा, गुरुग्राम विधायक मुकेश शर्मा, जिला अध्यक्ष सर्वप्रिय त्यागी, प्रदेश सचिव गार्गी कक्कड़, महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्षा ऊषा प्रियदर्शी, और कुछ पार्षद और कुछ पदाधिकारीगण इस आयोजन में उपस्थित रहे। युवाओं, महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों ने हाथों में तिरंगा लेकर ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ जैसे नारों से माहौल को देशभक्ति से सराबोर कर दिया।

???? विधायक मुकेश शर्मा का भावुक संबोधन

विधायक मुकेश शर्मा ने कहा,
“ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि राष्ट्र की अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। चार दिन में पाकिस्तान को घुटनों पर लाने वाले हमारे सैनिकों को हम शत-शत नमन करते हैं। यह तिरंगा यात्रा उनके सम्मान में हमारा सामूहिक नमन है।”

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए भारत की सैन्य ताकत और आत्मनिर्भरता को रेखांकित किया।

लेकिन क्या सैनिकों को सच में सम्मान मिला?

इस तिरंगा यात्रा का मुख्य उद्देश्य वीर सैनिकों और शहीदों को श्रद्धांजलि देना बताया गया था। लेकिन गहराई से देखें तो कुछ सवाल खुद-ब-खुद खड़े हो जाते हैं:

  • क्या किसी भी शहीद सैनिक या उनके परिजन को आमंत्रित किया गया?
  • क्या मंच पर किसी वीर सैनिक को सम्मानित किया गया?
  • क्या आयोजन स्थल पर मौजूद देशभक्त सैनिक परिवारों को धन्यवाद दिया गया?

गुरुग्राम जैसे शहर में जहां कई शहीद सैनिकों के परिवार रहते हैं, उनमें से किसी को मंच पर स्थान न मिलना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि आयोजन की मंशा पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

???? देशहित की बात तिरंगे के साथ जुड़ी है, पर तिरंगा तभी सार्थक है जब नीयत सच्ची हो

देश के सैनिकों के नाम पर जब आयोजन होते हैं, तो जनता की उम्मीद यही होती है कि वे सच्ची श्रद्धा और भावनात्मक समर्पण से भरे हों, न कि केवल राजनीतिक उपस्थिति और शक्ति-प्रदर्शन का माध्यम बनें। यदि सैनिकों का नाम लेकर केवल राजनीतिक छवि को चमकाया जाए, तो यह न केवल सैनिकों का अपमान है, बल्कि तिरंगे की गरिमा को भी आहत करता है।

???? एक सार्थक तिरंगा यात्रा की शपथ

इस अवसर पर आयोजकों को सबसे पहले स्वयं यह शपथ लेनी चाहिए कि वे देशहित में कार्य करेंगे। जहां कहीं भी अनुशासनहीनता या नीति का उल्लंघन हो, वहां वे पार्टी या व्यक्तिगत संबंधों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में खड़े होंगे। तभी यह यात्रा महज़ शोभा यात्रा न बनकर देशभक्ति की सच्ची अभिव्यक्ति बनेगी।

“शहीदों को याद करना हमारा कर्तव्य है, धर्म है और अस्तित्व है। पर याद सच्चे मन से होनी चाहिए — केवल नारों और फोटो खिंचवाने के लिए नहीं। तिरंगे की शान तब ही है जब वो आत्मा से लहराया जाए।”

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