स्थान – गायत्री दुर्गा शिव शक्ति मंदिर, नई अनाज मंडी, लाडवा रोड, पिपली (कुरुक्षेत्र)

कुरुक्षेत्र – पूज्य स्वामी वासुदेवानंद जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कलियुग के संत स्वरूप की गहरी समीक्षा करते हुए कहा कि आज का समाज उस दिशा में बह रहा है, जहाँ आचरण नहीं, आडंबर ही संतत्व का प्रमाण बन गया है। उन्होंने संत तुलसीदास जी के उन अमर शब्दों को स्मरण किया, जिनमें कलियुग के संतों की पहचान बताई गई थी – वह संत नहीं, जो सेवा, त्याग और विनम्रता से युक्त हो, बल्कि वह जो बाहरी वेशभूषा और छलावा लिए फिरता है।
स्वामी जी ने दुख प्रकट करते हुए कहा,
“आजकल संत वही माने जाते हैं जिनके नाखून बड़े हैं, जिनकी जटाएं लंबी हैं, जिनके पास बड़े-बड़े आश्रम, महलनुमा भवन, आलीशान गाड़ियाँ और राजनीतिक पहुँच है।”
उन्होंने कहा कि ये तथाकथित साधु वैराग्य के मार्ग से भटककर भौतिकता की चकाचौंध में खो चुके हैं। उनके जीवन का उद्देश्य लोकहित नहीं, अपितु लोकरंजन और धन संग्रह बन गया है।
स्वामी जी ने तीखा प्रहार करते हुए कहा,
“आजकल जो जितना बड़ा मिथ्याचारी, जितना बड़ा पाखंडी, उतना ही बड़ा संत कहलाता है। समाज ने अब संतत्व को संपत्ति, प्रसिद्धि और प्रभाव से जोड़ दिया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”
उन्होंने कहा कि तपस्वियों की तपस्या अब आत्मकल्याण के लिए नहीं, अपितु लोभवश हो रही है।
“तपस्वी धनवान होते जा रहे हैं और गृहस्थ दरिद्र। सत्य का स्थान अब बकवाद ने ले लिया है, और लोककल्याण की जगह स्वहित की राजनीति हावी हो गई है।”
परंतु स्वामी वासुदेवानंद जी ने आशा की किरण भी दिखाई। उन्होंने सच्चे संत के लक्षण बताते हुए कहा:
“संत वही है जिसके हृदय में छल-कपट न हो, जो सहज, सरल और समदर्शी हो, जिसका हर विचार, हर कर्म, समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए हो। संत अपने स्वभाव की ऊर्जा से वातावरण को पवित्र करता है, वह जहां जाता है, वहां सत्संग स्वतः प्रकट होता है।”
उन्होंने कहा कि सच्चे संत के सान्निध्य में आने से व्यक्ति क्षुद्रता से ऊपर उठकर शाश्वत सत्य के निकट पहुँचता है। वह आत्मा की पुकार सुनने लगता है, जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने लगता है और मोहमाया की जकड़नों से मुक्त होकर सद्मार्ग पर अग्रसर होता है।
“संत का मन गंगा की तरह पावन होता है, वह गिरे हुए को उठाता है, छोटे को भी आदर देता है, और किसी से भेद नहीं रखता – यही है सच्चा संतत्व।”
स्वामी जी का यह संदेश वर्तमान समाज के लिए एक चेतावनी भी है और आत्मचिंतन का अवसर भी। उन्होंने सभी श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि वे बाहरी आडंबर से प्रभावित न होकर, आचरण और सच्चाई के आधार पर संत की पहचान करें।