
गुरुग्राम, 22 मई 2025 – गुरुग्राम की जमीनी हकीकत को लेकर अर्जुन नगर निवासी समाजसेवी गुरिंदरजीत सिंह ने एक बार फिर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि गुरुग्राम जैसे वैश्विक पहचान रखने वाले शहर में जलभराव, गंदगी और अव्यवस्था अब आम बात हो चुकी है, परंतु जवाबदेह कोई नहीं।
“गुरुग्राम के खस्ता हालात के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है — अधिकारी, सांसद, विधायक या पार्षद?”
गुरिंदरजीत सिंह ने दो टूक शब्दों में कहा कि बजट और संसाधनों की कोई कमी नहीं है, लेकिन इच्छाशक्ति और नीयत की भारी कमी है। उन्होंने सीधे-सीधे गुरुग्राम के सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर उन्हें शहर की चिंता होती, तो बरसात से ऐन पहले नहीं, बल्कि महीनों पहले ही जल निकासी की तैयारियां कर ली जातीं।
“जब सांसद महोदय खुद यह मानते हैं कि जलभराव से शहर की अंतरराष्ट्रीय फजीहत होती है, तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि यह फजीहत होती किसकी वजह से है?”
गुरिंदरजीत सिंह ने याद दिलाया कि राव इंद्रजीत सिंह पिछले 20 वर्षों से गुरुग्राम से सांसद हैं और एमसीजी (नगर निगम गुरुग्राम) के गठन के समय से ही उनका दबदबा रहा है। ऐसे में यह कहना कि जलभराव केवल अधिकारियों की लापरवाही से होता है, बेहद आसान लेकिन अधूरा जवाब है।
“अधिकारियों की तैनाती से लेकर कार्यशैली तक में सांसद का प्रभाव रहा है। तो फिर जिम्मेदारी सिर्फ अधिकारियों की कैसे मानी जाए?” गुरिंदरजीत ने कहा।
“बजट की नहीं, नीयत की कमी है”
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि गुरुग्राम राज्य के सबसे अधिक राजस्व देने वाले जिलों में से एक है। यहाँ एमसीजी का बजट हाल ही में लगभग 1500 करोड़ रुपये और जीएमडीए का बजट लगभग 3000 करोड़ रुपये पास किया गया है।
“जब पैसा इतना है, तो विकास क्यों नहीं? वजह साफ है – नीयत में खोट है। अगर सांसद, विधायक और पार्षद ईमानदारी से चाहें, तो गुरुग्राम की तस्वीर बदल सकती है,” गुरिंदरजीत सिंह ने तंज कसते हुए कहा।
उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 10 वर्षों से गुरुग्राम विकास के नाम पर ठहरा हुआ है। जो योजनाएं कागजों पर हैं, वे जमीन पर नहीं उतरतीं, और जो समस्याएं दशकों से हैं, उनके स्थायी समाधान की कोई योजना नहीं बनती।
“नए नाले बनें, पर पुराने जल स्रोतों से कब्जे हटाएं”
गुरिंदरजीत सिंह ने राव इंद्रजीत सिंह द्वारा बुधवार को की गई मीटिंग को लेकर कहा कि ऐसी बैठकें यदि समय पर होतीं और उनमें लिए गए निर्णयों को तुरंत अमल में लाया जाता, तो आज गुरुग्राम को जलभराव जैसी समस्या से जूझना न पड़ता।
उन्होंने यह भी कहा कि केवल नई सीवर लाइनें और नाले बनाने से समस्या का समाधान नहीं होगा।
“शहर में जो पुराने नाले, तालाब और जलाशय हैं, उन्हें पुनर्जीवित करना होगा। उन पर किए गए अवैध कब्जों को हटाना होगा, तभी हम सस्ती और टिकाऊ समाधान की दिशा में बढ़ सकेंगे।”
उन्होंने प्रशासन से पूछा –
“पुराने जल निकासी के प्राकृतिक साधनों पर कब कार्रवाई होगी? आखिर क्यों अब तक उन पर से कब्जे नहीं हटाए गए?”
“फजीहत से बचना है तो सिर्फ बैठक नहीं, एक्शन चाहिए”
गुरिंदरजीत सिंह ने दो टूक कहा कि केवल मीटिंग करने से समस्या हल नहीं होगी।
“यदि इंटरनेशनल फजीहत से बचना है तो जल्द से जल्द जमीन पर काम शुरू होना चाहिए।”
उन्होंने मांग की कि जलभराव की स्थायी समस्या से निपटने के लिए तात्कालिक कार्ययोजना तैयार कर उसे सख्ती से लागू किया जाए।
साथ ही उन्होंने गुरुग्राम में फैले कचरे के ढेरों को भी एक गंभीर समस्या बताया और कहा कि नगर निगम को इसे प्राथमिकता से लेना चाहिए।
“सड़क किनारे लगे कचरे के ढेर, जाम, टूटी सड़कें और बदहाल नालियाँ – ये सब उस गुरुग्राम की पहचान बन गए हैं, जो कभी स्मार्ट सिटी कहलाता था,” उन्होंने कहा।
निष्कर्ष: सवाल जवाब माँगते हैं
गुरिंदरजीत सिंह का यह बयान केवल आक्रोश नहीं, बल्कि गुरुग्राम की जनता की आवाज़ है।
वह हर उस नागरिक की ओर से बोलते प्रतीत होते हैं जो हर बरसात में घर के बाहर पानी भर जाने से, हर दिन ट्रैफिक जाम में फँसने से और हर कोने में गंदगी से त्रस्त है।
अब सवाल यह है कि – क्या यह केवल अधिकारियों की नाकामी है, या फिर जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता और नीयत का नतीजा? और सबसे अहम – क्या इस बार केवल बैठकें होंगी या धरातल पर कुछ बदलेगा भी?