
24 मई 2025, चंडीगढ़, रेवाड़ी, – स्वयंसेवी संस्था ‘ग्रामीण भारत’ के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने हरियाणा सरकार की 11 जून 2019 की उस अधिसूचना को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा रद्द किए जाने पर गहरी चिंता जताई है, जिसके तहत सामाजिक-आर्थिक आधार पर 10 अतिरिक्त अंक देकर अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरियों में चयनित किया गया था।
विद्रोही ने कहा कि हाईकोर्ट के इस फैसले के चलते लगभग 10 हजार नियुक्त कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटक गई है, जिससे राज्य के हजारों परिवारों पर आर्थिक संकट का पहाड़ टूट सकता है। उन्होंने आशंका जताई कि यदि सरकार ने इस निर्णय पर शीघ्र सुप्रीम कोर्ट से स्टे नहीं लिया, तो 10 हजार घरों में अंधकार छा जाएगा।
उन्होंने कहा, “जिसकी नौकरी जाती है, दर्द उसी को होता है। यह केवल एक कागजी आदेश नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी और भविष्य का सवाल है।”
विद्रोही ने भाजपा सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि वोट बैंक की राजनीति के चलते सरकार ने बिना पर्याप्त कानूनी सोच-विचार के इस अधिसूचना को लागू किया था। आज जब यह आदेश न्यायिक जांच में टिक नहीं पाया, तो उसकी कीमत आम युवा चुका रहा है।
उन्होंने बताया कि ग्रुप C और D की नौकरियों में लगभग 25 हजार अभ्यर्थियों को ये अतिरिक्त अंक दिए गए थे। अब हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) को तीन माह के भीतर उन सभी भर्तियों के परिणामों की पुनर्समीक्षा करनी होगी। इसका सीधा असर उन दस हजार कर्मचारियों पर पड़ेगा, जो पिछले पांच वर्षों से नौकरी कर रहे हैं।
विद्रोही ने आगे आरोप लगाया कि भाजपा सरकार रोजगार के नाम पर घिनौनी राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा, *”जहां एक ओर ग्रुप C और D की भर्तियों में युवाओं को नियमों के मकड़जाल में उलझाया जा रहा है, वहीं प्रथम और द्वितीय श्रेणी की नौकरियाँ *बड़ी रकम लेकर बाहरी राज्यों के युवाओं को बेची जा रही हैं।”
उन्होंने दावा किया कि पिछले 10 वर्षों में हरियाणा के युवाओं को मात्र 40% उच्च श्रेणी की नौकरियाँ मिलीं, जबकि बाकी नौकरियाँ संघी पर्ची-खर्ची के माध्यम से प्रदेश से बाहर के लोगों को दी गईं।
अंत में विद्रोही ने मांग की कि हरियाणा सरकार इस मामले में शीघ्र सुप्रीम कोर्ट से स्थगन आदेश लेकर नियुक्त कर्मचारियों की नौकरियों को बचाए और भविष्य में युवाओं के हितों के साथ ऐसा खिलवाड़ न हो।