चंडीगढ़, रेवाड़ी, 1 जून 2025 | स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही द्वारा उठाए गए सवालों ने एक बार फिर लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर विमर्श छेड़ दिया है। उनका दावा है कि देश और विशेषकर हरियाणा में इन दिनों एक प्रकार का अघोषित आपातकाल व्याप्त है, जिसमें संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का निरंतर हनन हो रहा है।

विद्रोही का आरोप है कि भाजपा और संघ विरोधी विचारधारा रखने वाले व्यक्तियों, संगठनों और राजनैतिक दलों को प्रशासनिक और संस्थागत दबावों के माध्यम से प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके अनुसार, सत्ता का उपयोग केवल शासकीय संचालन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसे असहमति को कुचलने के उपकरण के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है।

वह दावा करते हैं कि हरियाणा में मीडिया की भूमिका भी चिंता का विषय बन गई है। विपक्षी दलों विशेषकर कांग्रेस को समाचारों में मिलने वाला स्थान नगण्य है, जबकि सत्ता पक्ष की गतिविधियों, दावों और नेताओं के भाषणों को अतिरंजना के साथ प्रस्तुत किया जाता है। विद्रोही के अनुसार, मीडिया की प्राथमिकता आमजन की समस्याओं को उठाना नहीं, बल्कि सरकार का महिमामंडन करना हो गया है। यह स्थिति लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की स्वायत्तता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।

यह कोई रहस्य नहीं कि हरियाणा की राजनीतिक परिस्थितियों में बीते वर्षों में सत्ता और संस्थाओं के संबंधों को लेकर सवाल उठते रहे हैं। कई बार यह देखा गया है कि विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों को दरकिनार कर दिया जाता है, जबकि सत्ता पक्ष से जुड़े विवादों को नज़रअंदाज़ किया जाता है। यदि यह प्रवृत्ति लगातार बनी रही, तो यह लोकतांत्रिक संवाद और आलोचना की स्वस्थ परंपरा को कमजोर कर सकती है।

विद्रोही ने विशेष रूप से यह संकेत दिया कि भाजपा-संघ से जुड़े नेताओं की संपत्तियों और जीवनशैली में आई अस्वाभाविक तेजी, इस बात का संकेत हो सकती है कि कहीं न कहीं सत्ता और भ्रष्टाचार के मध्य एक खतरनाक गठबंधन बन रहा है। उनका यह दावा, हालांकि कठोर प्रतीत होता है, परन्तु यह प्रशासन और निगरानी एजेंसियों के लिए एक आत्मावलोकन का अवसर अवश्य है।

इन सभी बातों के बीच यह भी सच है कि किसी भी लोकतंत्र की मजबूती विचारों की बहुलता और असहमति के सम्मान से ही आती है। यदि असहमति को दबाने के लिए संस्थाओं का दुरुपयोग किया जाता है, तो वह केवल एक पार्टी या विचारधारा की समस्या नहीं रह जाती, बल्कि वह पूरे लोकतंत्र की जड़ों को खोखला करने वाली स्थिति बन जाती है।

हरियाणा की जनता को यह समझने की ज़रूरत है कि लोकतंत्र केवल मतदान का अधिकार नहीं, बल्कि उसके साथ जुड़ी सूचना की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति का अधिकार और सत्ता के विरुद्ध आलोचना की जगह भी उसका अनिवार्य हिस्सा है। यदि इनमें से किसी एक पर भी खतरा उत्पन्न होता है, तो समझना चाहिए कि लोकतंत्र की मूल आत्मा को आघात पहुंचा है।

इसलिए आज आवश्यकता है एक जवाबदेह शासन व्यवस्था, स्वतंत्र मीडिया, और सक्रिय नागरिक चेतना की, जो यह सुनिश्चित कर सके कि कोई भी सरकार, कितनी भी लोकप्रिय क्यों न हो, संवैधानिक मर्यादाओं से ऊपर न हो

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