संतों का अवतरण प्रकृति की मुस्कान, समाज के लिए वरदान – रामभद्र दास

गुरुग्राम, । साइबर सिटी गुरुग्राम स्थित इस्कॉन परिसर के सुदर्शन धाम आश्रम में आचार्य सुदर्शन महाराज का अवतरण दिवस बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर भव्य समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें देशभर से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया और महाराज के बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम के दौरान आश्रम के अध्यक्ष रामभद्र दास जी ने कहा — “संत का अवतरण स्वयं प्रकृति की पुकार होता है। संत यदि आचार्य सुदर्शन महाराज जैसे हों, तो उनका जीवन स्वयं समाज को दिशा देने वाला होता है। उनका होना ही इस संसार के लिए सौभाग्य है।”
उन्होंने कहा कि संत न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करते हैं, बल्कि सामाजिक समरसता, प्रेम और करुणा के बीज भी बोते हैं। आचार्य सुदर्शन महाराज भारतीय संस्कृति, वेद-पुराणों की मर्यादा, और मानवीय मूल्यों को जीवन में उतारने की प्रेरणा देते हैं। उनकी ज्ञानमयी वाणी से अनेक लोग तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक व्याधियों से मुक्ति पाते हैं।
“संत न होते जगत में, तो जल मरता संसार” – सच्चे मार्गदर्शक का उत्सव
इस अवसर पर रामभद्र दास जी ने संतों की महिमा पर एक मार्मिक भजन की पंक्ति भी उद्धृत की —
“भारी बदरिया पाप की, बरसन लगी अंगार,
संत न होते जगत में, तो जल मरता संसार।”
उन्होंने बताया कि आचार्य सुदर्शन महाराज सदैव कमजोर, वंचित और जरूरतमंद लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। उनके द्वारा चलाए जा रहे सेवा प्रकल्पों, यज्ञ, सत्संग, और ध्यान शिविरों से समाज में सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं।
हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति, भंडारा और पुष्पांजलि से समापन
समारोह के अंत में सुदर्शन महाराज की प्रतिमा पर पुष्प वर्षा की गई और उनके उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु की कामना की गई। इसके पश्चात विशाल भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।
इस कार्यक्रम ने यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया कि संत केवल धार्मिक आस्था के केंद्र नहीं होते, बल्कि वे समाज के पथ प्रदर्शक और संस्कृति के संरक्षक भी होते हैं।