– पर्ल चौधरी, वरिष्ठ नेत्री, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पहलगाम में निर्दोष भारतीय पर्यटकों की हत्या सिर्फ एक आतंकी वारदात नहीं थी, यह भारत की खुफिया तंत्र की विफलता और भाजपा सरकार की संवेदनहीनता का भी पर्दाफाश है। पाकिस्तानी आतंकवादियों ने लोगों को धार्मिक पहचान के आधार पर मार डाला। इसके बाद सेना और वायुसेना ने मिलकर “ऑपरेशन सिंदूर” चलाया — लेकिन क्या कोई बता सकता है कि ये हमला होने ही क्यों दिया गया?
केंद्र सरकार ने आज तक यह जवाब नहीं दिया कि खुफिया इनपुट क्यों विफल हुए? सुरक्षा एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
क्या अब हम इतने असहाय हो चुके हैं कि केवल बदले की कार्रवाई से सन्तोष कर लेते हैं, लेकिन हमले की ज़िम्मेदारी तय करने से भागते हैं?
अब तुलना कीजिए एयर इंडिया फ्लाइट AI 177 की भयावह दुर्घटना से, जिसमें 240 से अधिक जानें चली गईं—यह संख्या पहलगाम त्रासदी से दस गुना अधिक है। लेकिन इस बार हत्यारा कोई आतंकी नहीं, बल्कि है मुनाफाखोरी का धर्म, जिसे बड़े कॉर्पोरेट और सरकारें समान श्रद्धा से मानती हैं।
एयरक्राफ्ट की मेंटेनेंस को लेकर लगातार चेतावनी दी जा रही थी। इस Dreamliner विमान को लेकर विमान यात्रियों और तकनीकी विशेषज्ञों ने समय-समय पर समस्याएं उजागर की थीं, लेकिन उन आवाज़ों को अनसुना कर दिया गया।
यह सरकार और निजी कंपनियों की संयुक्त आपराधिक लापरवाही है।
मैंने खुद दो दिन पहले दिल्ली से लंदन जाते वक्त वर्जिन अटलांटिक की फ्लाइट VS 303 में देखा—एयरकंडीशनर डक्ट में धूल की परतें थीं | जब मैंने क्रू से कहा, उन्होंने जवाब दिया: “हम रिपोर्ट कर देंगे”। यानी आपकी चिंता सिर्फ एक फॉर्मेलिटी है।
क्या यही मानक है हवाई सुरक्षा का?
आपने भी देखा होगा कि डोमेस्टिक फ्लाइट्स में अगर स्क्रीन खराब हो, या सीट हिली हुई हो, और आप शिकायत करें तो क्रू मेंबर्स आपको ऐसे घूरते हैं जैसे आपने कोई अपराध कर दिया हो।
लेकिन सवाल ये है: एक आम नागरिक, एक यात्री, और क्या कर सकता है? क्या वो विमान के इंजन खोलकर खुद मेंटेनेंस करेगा? सरकारें हमें राष्ट्रवाद के उपदेश देती हैं, मगर जब बात कॉर्पोरेट जवाबदेही की होती है, तो वही सरकारें चुप्पी साध लेती हैं।
> पहलगाम में धर्म के नाम पर मार दिया गया, एयर इंडिया में मुनाफे के धर्म ने मार डाला।
दोनों जगह धर्म ही कातिल है — एक मज़हबी, दूसरा मुनाफाखोर।
भाजपा सरकार से मेरा सीधा सवाल है:
क्या अब वो प्राइवेट मुनाफाखोर कंपनियों पर भी सर्जिकल स्ट्राइक करेगी, या फिर ये भी एक और “हवा हवाई” जुमला बनकर रह जाएगा?
जब तक देश का प्रशासन सामाजिक धर्म से ऊपर मानव धर्म और कर्तव्य धर्म नहीं निभाएगा, तब तक जनता की जान यूँ ही जाती रहेगी—कभी आतंकी हमले में, कभी तकनीकी लापरवाही में।
जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। जवाबदेही तय होनी चाहिए। और अगर नहीं हुई, तो कांग्रेस पार्टी जनता की आवाज़ बनकर
हर मंच से यह सवाल पूछेगी—हवा में उड़ते ताबूतों की कीमत कौन चुकाएगा?”