कब जागेगा शासन प्रशासन, कब करेगा शिक्षा माफिया को खत्म? गुरिंदरजीत सिंह

निजी स्कूलो में शुल्क नियंत्रण हेतु कठोर नियम बनाए सरकार। गुरिंदरजीत सिंह

गुरुग्राम, 14 जून: – गुरुग्राम के समाजसेवी इंजीनियर गुरिंदरजीत सिंह अर्जुन नगर ने शिक्षा में बढ़ती असमानता पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि शिक्षा में बढ़ती असमानता, कैसे गरीब पढ़ेगा?

गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि किसी राष्ट्र की प्रगति का मूल आधार उसकी शिक्षा व्यवस्था होती है, जो केवल रोजगार तक सीमित नहीं, बल्कि नागरिक बौद्धिकता, चेतना और संस्कार का आधार होती है। परंतु आज देश में शिक्षा विशेषकर निजी विद्यालयों के चलते एक महंगा सौदा बनती जा रही है। निजी स्कूल जहाँ भारी-भरकम शुल्क वसूल रहे हैं, वहीं सरकारी विद्यालय गुणवत्ता, संसाधनों और आकर्षण की दृष्टि से पिछड़ते जा रहे हैं।

निजी विद्यालयों में फीस वृद्धि का कोई ठोस मानक नहीं है। शिक्षण के साथ-साथ अतिरिक्त गतिविधियों और विकास शुल्क के नाम पर अभिभावकों पर आर्थिक बोझ डाला जा रहा है। कोचिंग, ट्यूशन और अन्य खर्चों से मध्यमवर्गीय व गरीब परिवारों की कमर टूट रही है। इसका परिणाम यह है कि शिक्षा अब समान अवसर का नहीं, बल्कि सामाजिक असमानता का कारण बनती जा रही है।

सरकारी स्कूलों की गिरती साख का मुख्य कारण शिक्षकों की कमी, अधोसंरचना का अभाव और शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाना है। एक लाख से अधिक प्राथमिक विद्यालयों में एक ही शिक्षक कार्यरत है, और करीब 8 लाख पद रिक्त हैं। जबकि निजी स्कूलों में संसाधन व अध्यापन प्रणाली अपेक्षाकृत बेहतर है, जिससे अभिभावकों का झुकाव उनकी ओर अधिक है।

सरकार को चाहिए कि वह निजी विद्यालयों में शुल्क नियंत्रण हेतु कठोर नियम बनाए। राज्य स्तर पर एक स्वतंत्र शुल्क नियामक आयोग की स्थापना की जानी चाहिए, जो प्रत्येक शुल्क वृद्धि की समीक्षा करे और आवश्यकतानुसार अनुमति दे। साथ ही, ‘योगदान’ और ‘विकास शुल्क’ जैसी मदों की सीमा भी तय की जाए।

इसके अलावा, सरकारी विद्यालयों में स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोगशाला, कौशल विकास व नवाचार जैसे घटकों को मजबूत करने की आवश्यकता है। नवोदय व केंद्रीय विद्यालयों की संख्या व सीटों में बढ़ोतरी, तथा राज्य स्तरीय नवोदय मॉडल को अपनाकर शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों को फिर से आकर्षक बनाया जा सकता है।

यदि सरकार ने समय रहते शिक्षा के क्षेत्र में असमानता को नियंत्रित करने के उपाय नहीं किए, तो भविष्य में बौद्धिक हीनता और सामाजिक विषमता का संकट और गहरा हो जाएगा।

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