मुख्यमंत्री के आदेश को बताया अव्यवहारिक, आमजन की सुविधा के लिए फैसले की समीक्षा की मांग

चंडीगढ़/ रेवाड़ी, 23 जून 2025 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी द्वारा सरकारी कार्यालयों में प्रतिदिन 5 मिनट के योग ब्रेक की घोषणा को अव्यवहारिक और जनविरोधी बताया है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से आमजन को मिलने वाली सरकारी सेवाओं में बाधा आएगी और कर्मचारियों की कार्यक्षमता पर कोई ठोस असर पड़ने की संभावना नहीं है।
“एक योग ब्रेक से 40-45 मिनट तक का काम प्रभावित”
विद्रोही ने कहा कि, “पांच मिनट के योग ब्रेक के नाम पर सरकारी कार्यालयों में अधिकारियों और कर्मचारियों को एक स्थान पर एकत्र करना, ब्रेक की तैयारी और फिर अपनी सीट पर लौटने की प्रक्रिया को मिलाकर कम से कम 40 से 45 मिनट का कार्य समय नष्ट होगा। इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ेगा जो पहले ही अधिकारियों के टरकाऊ रवैये और सीट से गायब रहने के कारण भारी परेशानी झेलते हैं।”
“योग को राजनीति या प्रचार का औजार न बनाएं”
उन्होंने स्पष्ट किया कि वे योग के विरोध में नहीं हैं, बल्कि योग को जीवनशैली का अंग बनाने के पक्षधर हैं। लेकिन उन्होंने सरकार की इस ‘योग-टोटका नीति’ को व्यावहारिकता से परे बताया। “योग व्यक्ति के जीवन में संतुलन लाता है, लेकिन जब इसे बिना योजना के लागू किया जाता है, तो यह प्रचार का माध्यम बनकर रह जाता है,” उन्होंने कहा।
“तुगलकी फरमानों से बढ़ेगी आमजन की परेशानी”
विद्रोही ने कहा कि पहले ही आमजन सरकारी दफ्तरों में घंटों इंतजार करने को मजबूर रहते हैं। अब यह नया फरमान उनके लिए और परेशानी खड़ी करेगा। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या मुख्यमंत्री के इस निर्णय से आमजन को लाभ होगा या केवल एक प्रशासनिक तमाशा खड़ा किया जाएगा?
मुख्यमंत्री से फैसले की व्यवहारिकता पर पुनर्विचार की मांग
उन्होंने मुख्यमंत्री सैनी से अपील करते हुए कहा कि, “इस फैसले की व्यवहारिकता का गंभीरता से अध्ययन किया जाए और यदि यह जनहित में नहीं है तो इसे तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए। सरकारी कार्यालयों में अधिकारी और कर्मचारी अपनी सीटों पर उपलब्ध रहें, समय पर फाइलें निपटाएं, यही सच्चा योग और जनसेवा है।”
“योग से कार्यक्षमता बढ़ानी है तो करें वैकल्पिक योजना”
विद्रोही ने सुझाव दिया कि यदि सरकार योग के माध्यम से कार्यक्षमता बढ़ाना चाहती है, तो उसके लिए सप्ताह में एक दिन सामूहिक योग सत्र, ऑनलाइन निर्देशित ध्यान सत्र, या स्वैच्छिक योग क्लब जैसे व्यावहारिक विकल्प अपनाए जा सकते हैं। इससे न तो आमजन प्रभावित होंगे और न ही कार्यालयीन कार्य बाधित होगा।
निष्कर्ष:
वेदप्रकाश विद्रोही का यह बयान स्पष्ट करता है कि सरकार को जनहित और प्रशासनिक व्यवस्था में संतुलन बनाए रखना चाहिए। योग एक सकारात्मक पहल है, लेकिन उसे प्रचार और प्रयोगात्मक आदेशों की भेंट नहीं चढ़ाना चाहिए। जनता को राहत और सेवा की उम्मीद है, प्रतीक्षा और परेशानी की नहीं।