वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 29 जून 2025। हरियाणा सरकार द्वारा पारदर्शिता और जवाबदेही के दावों के बीच जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग, कुरुक्षेत्र से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक आरटीआई एक्टिविस्ट से विभाग ने सूचना देने के नाम पर ₹80,000 की भारी भरकम राशि तो वसूल ली, लेकिन न तो पूरी सूचना दी और न ही यह रकम समय पर सरकारी खाते में जमा करवाई।

आरटीआई कार्यकर्ता पंकज अरोड़ा ने आरोप लगाया कि उन्होंने 30 जनवरी 2025 को विभाग से सूचना मांगने के लिए नियमानुसार पोस्टल ऑर्डर के साथ आरटीआई आवेदन किया था। विभाग ने 3 फरवरी को ही दो अलग-अलग पत्र जारी किए—एक में ₹85,000 मांगे गए और दूसरे में अधीनस्थ अधिकारियों को निर्देश दिए गए कि वे समय पर सूचना उपलब्ध कराएं।

अरोड़ा ने 14 फरवरी को ₹10,000 का डिमांड ड्राफ्ट और फिर 5 मार्च को ₹70,000 का बैंकर चेक विभाग को सौंप दिया। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि इस बड़ी राशि को विभाग के खाते में तय समय सीमा में जमा नहीं करवाया गया, जिसकी पुष्टि बैंक ने की है।

जब अधिकारी सुमित गर्ग की ओर से जानकारी नहीं दी गई तो अरोड़ा ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और अभियंता प्रमुख तक शिकायत पहुंचाई। लेकिन शिकायतों का असर न होता देख, उन्होंने यह मामला समाधान शिविर में भी उठाया, जिसके बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से कॉल आने पर 6 जून को आधी-अधूरी सूचना दी गई।

अरोड़ा का कहना है कि “विभाग पूरी सूचना नहीं देना चाहता, क्योंकि इससे विभाग में चल रहे घपलों का खुलासा हो सकता है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विभाग 37,000 पृष्ठों की सूचना देने का दावा कर रहा है, पर इसकी फोटोस्टेट फीस और वास्तविक देय जानकारी पर चुप्पी साधी जा रही है।

इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अरोड़ा ने मुख्य सूचना आयुक्त के समक्ष अपील दायर की है, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। अब इस पूरे प्रकरण की पारदर्शी जांच की माँग उठ रही है।

मुख्य प्रश्न जो उठते हैं:

  • ???? अगर विभाग को ₹80,000 की राशि सूचना के लिए नहीं लेनी थी, तो वह पत्र क्यों जारी किया गया?
  • ???? जब राशि ली गई, तो उसे विभागीय खाते में नियमानुसार क्यों नहीं जमा कराया गया?
  • ???? क्या अधूरी सूचना देना आरटीआई अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन नहीं है?
  • ???? क्या यह मामला विभागीय भ्रष्टाचार का स्पष्ट संकेत नहीं देता?

निष्कर्ष:
इस प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सूचना के अधिकार का उपयोग करने वाले नागरिकों को केवल शुल्क लेकर टरकाया जा रहा है, जो लोकतंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही की आत्मा के विपरीत है। अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच की जाए, तो यह जन स्वास्थ्य विभाग के भीतर गहरे भ्रष्टाचार की परतें खोल सकता है।

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