स्वयंसेवी संस्था ‘ग्रामीण भारत’ के अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करने की मांग की

चंडीगढ़/रेवाड़ी, 9 जुलाई 2025। एसवाईएल नहर विवाद को लेकर स्वयंसेवी संस्था ‘ग्रामीण भारत’ के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने एक बार फिर तीखा रुख अपनाते हुए कहा है कि पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच होने वाली बैठकों से कोई सार्थक हल नहीं निकलने वाला। उन्होंने इसे “समय की बर्बादी” करार देते हुए कहा कि अब केवल सुप्रीम कोर्ट के जनवरी 2002 के आदेश के सख्त क्रियान्वयन से ही यह मुद्दा सुलझ सकता है।
विद्रोही ने कहा कि हरियाणा में एसवाईएल नहर का 93 किलोमीटर हिस्सा वर्ष 1976 में ही बन चुका है, लेकिन पंजाब में 123 किलोमीटर लंबा हिस्सा पिछले 50 वर्षों से अधर में लटका हुआ है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पंजाब में जो हिस्सा पहले निर्मित हुआ था, उसे नवंबर 2016 में अकाली-भाजपा सरकार ने खुद आड़ (नष्ट) दिया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी
विद्रोही ने याद दिलाया कि जनवरी 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि एक वर्ष के भीतर नहर निर्माण का कार्य पूरा किया जाए, और यदि ऐसा न हो तो सेना की निगरानी में केन्द्रीय सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) से निर्माण करवाया जाए। लेकिन, अब तक इस आदेश की न तो पंजाब सरकार और न ही केंद्र सरकार ने अनुपालना की।
उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब सरकार ने 2004 में ‘वाटर ट्रीटी टर्मिनेशन एक्ट’ लाकर इस मुद्दे को कानूनी पचड़ों में फंसा दिया, जबकि 16 नवंबर 2016 को राष्ट्रपति के अनुच्छेद 143 के तहत दिए गए रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फैसला दे दिया था। बावजूद इसके, 9 साल बीतने के बाद भी स्थिति जस की तस है।
“अब बातों से नहीं, सख्त कार्रवाई से बनेगा एसवाईएल”
विद्रोही ने साफ कहा कि अब मुख्यमंत्री स्तरीय वार्ताएं केवल दिखावा हैं। अगर समाधान निकलना है, तो सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार को निर्देश देना चाहिए कि वह सेना की निगरानी में, निश्चित समयसीमा में पंजाब क्षेत्र में अधूरी एसवाईएल नहर का निर्माण करवाए, और तब तक सुप्रीम कोर्ट स्वयं निगरानी रखे।
उन्होंने दो टूक कहा, “एसवाईएल निर्माण का अब इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। मुख्यमंत्रीयों की वार्ता एक निरर्थक कवायद बन चुकी है।”