“इंदिरा जी का सपना मत तोड़ो, बैंक जनता के हैं – पूंजीपतियों की जागीर नहीं!”
“19 जुलाई 1969: जब आमजन के हाथों में थमा था बैंक का अधिकार”
“इंदिरा गांधी ने बैंक गरीब को दिए, मोदी सरकार फिर अमीर को सौंपना चाहती है”
“जिसने हमें बैंक में पहुँचाया, उसे भूल जाएँ? नहीं, यह राष्ट्रविरोध होगा!”
‘ग्रामीण भारत’ के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने कहा — इंदिरा जी की भावना को जीवित रखना अब हर आम नागरिक की जिम्मेदारी है

चंडीगढ़/रेवाड़ी, 19 जुलाई 2025: आज से ठीक 56 वर्ष पहले, 19 जुलाई 1969 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक ऐसा ऐतिहासिक और साहसिक फैसला लिया था, जिसने भारत के आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया। निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके इंदिरा जी ने करोड़ों आम भारतीयों को वह आर्थिक अधिकार और सम्मान दिलाया, जिससे वे आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ सके।
इस ऐतिहासिक दिन की स्मृति में स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने भावुक स्वर में कहा, “बैंकों का राष्ट्रीयकरण केवल एक आर्थिक फैसला नहीं था, वह भारत के आमजन के सपनों को सींचने वाला संकल्प था। इंदिरा जी ने देश की उन करोड़ों मेहनतकश हथेलियों को थामा था, जो तब तक बैंक की दहलीज पर पहुंचने से भी डरती थीं।”
विद्रोही ने कहा कि 1969 का वह क्रांतिकारी कदम भारत के गरीब, किसान, मजदूर, महिलाएं, युवा, छोटे व्यापारी और वंचित वर्गों के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर आया था। यही वह नीति थी, जिसकी बदौलत गांव-गांव में बैंक पहुंचे, महिलाओं ने बचत की आदत डाली, किसान को ऋण मिला और एक नई आर्थिक चेतना का उदय हुआ। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीयकरण ने बैंक को पूंजीपतियों के मुनाफे की मशीन से निकालकर जनसेवा का माध्यम बनाया।”
लेकिन, आज की स्थिति पर चिन्ता प्रकट करते हुए विद्रोही ने कहा कि मोदी सरकार जिस तरह से बैंकों के निजीकरण की दिशा में बढ़ रही है, वह देश को फिर उसी पुराने दौर में धकेलने की साजिश है जहाँ बैंक केवल चंद अमीर घरानों की जागीर बनकर रह जाएँगे। उन्होंने कहा कि सरकार पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है, और आमजन की मेहनत की गाढ़ी कमाई को मुनाफे के खेल में झोंकना चाहती है।
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “आज जरूरत है कि हम सब इंदिरा जी के उस स्वप्न को टूटने न दें। देश के 85 प्रतिशत लोग – किसान, मजदूर, दलित, पिछड़े, आदिवासी, महिलाएं, युवा और छोटे व्यापारी – एकजुट होकर आवाज उठाएं कि हमारे बैंक हमारे रहेंगे, उन्हें फिर से पूंजीपतियों की गिरफ्त में नहीं जाने देंगे।”
विद्रोही ने यह भी कहा कि यदि बैंकों का निजीकरण होता है, तो सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता की जड़ें कमजोर पड़ जाएंगी। “हमारे बाप-दादाओं ने जिस लोकतंत्र और समानता की बुनियाद पर देश को खड़ा किया था, वह खतरे में पड़ जाएगी,” उन्होंने भावुक होकर कहा।
उन्होंने देशवासियों से अपील की कि इस ऐतिहासिक दिवस पर हम केवल अतीत को न नमन करें, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने का संकल्प भी लें। इंदिरा गांधी द्वारा 1969 में शुरू की गई आर्थिक क्रांति को बचाना, मजबूत करना और जनहित में बनाए रखना ही आज की सबसे बड़ी राष्ट्रसेवा है।