स्वयं को माचिस की तीली नहीं, शांत सरोवर बनाएं,जिसमें कोई अंगारा भी फेंके तो स्वयं ही बुझ जाए
क्रोध व उत्तेजित स्वभाव,अपराध बोध प्रवृत्ति का मुख्य प्रवेश द्वार – अपराध मुक्त भारत के लिए मनीषियों को क्रोध त्यागना प्राथमिक उपाय
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया महाराष्ट्र- हमारा जीवन तभी सफल माना जा सकता है जब हम अपने स्वभाव में शांति और परोपकार को स्थान दें। माचिस की तीली के समान क्रोधित स्वभाव न रखें, बल्कि शांत सरोवर जैसे बनें, जहां क्रोध का अंगारा भी डालने पर बुझ जाए।
क्रोध: अपराध बोध प्रवृत्ति का मुख्य प्रवेश द्वार
क्रोध, उत्तेजना और लालच मनुष्य को अपराध की ओर ले जाने वाले मुख्य मार्ग हैं। यही कारण है कि व्यक्ति छोटे-छोटे उत्तेजनाओं में हिंसा, बेईमानी और भ्रष्टाचार के दलदल में फंसता चला जाता है।
- क्रोध से विवेक नष्ट होता है
- कुतर्क और दोषारोपण की प्रवृत्ति बढ़ती है
- जुनून की अवस्था में अपराध चरम पर पहुंचता है
इसलिए अपराध मुक्त समाज के निर्माण के लिए क्रोध का त्याग मनीषियों का पहला कर्तव्य होना चाहिए।
सतयुग की कल्पना: अपराध मुक्त और पारदर्शी समाज
हमारे बुजुर्गों द्वारा बताया गया सतयुग एक ऐसा युग था, जहां किसी को ताले लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी।
- जीवन में पारदर्शिता
- सभी में भाईचारा और प्रेम
- कोई छल, कुटिलता या भ्रष्टाचार नहीं
आज की तकनीकी भाषा में कहा जाए तो यह एक अपराध और भ्रष्टाचार मुक्त भारत की परिकल्पना है।
शांत और परोपकारी स्वभाव: जीवन का मूल मंत्र
बच्चों को शुरुआत से ही शांतिपूर्ण जीवन जीने की शिक्षा देना चाहिए।
- शिक्षकों और अभिभावकों की भूमिका अहम
- समाज को चाहिए कि वह स्वयं अनुकरणीय उदाहरण बने
- परोपकारी भाव से युक्त हृदय ही सच्चे संतुलन का आधार
यदि हम सभी में यह भाव समाहित हो जाए तो भारत फिर सतयुग जैसा बन सकता है।
क्रोध के दुष्परिणाम: स्वयं को ही होता है सबसे अधिक नुकसान
क्रोधी व्यक्ति अपने से अधिक स्वयं को नुकसान पहुंचाता है:
- बुद्धि और विवेक नष्ट हो जाते हैं
- अच्छे-बुरे का भेद नहीं रहता
- अपने ही जीवन को बर्बादी की ओर ले जाता है
इसलिए क्रोध हमारा सबसे बड़ा शत्रु है।
क्रोध प्रबंधन: आधुनिक उपाय और मनोवैज्ञानिक समाधान
आधुनिक युग में क्रोध पर नियंत्रण के लिए क्रोध प्रबंधन कार्यक्रम विकसित किए गए हैं।
- बच्चों के लिए क्रोध डायरी का प्रयोग
- ध्यान, एकांत और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से क्रोध पर नियंत्रण
- उदाहरणों से सीख और आत्म-जागरूकता का विकास
क्रोध से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
निष्कर्ष: क्रोध त्यागें, शांति अपनाएं – यही सच्चा सतयुग
यदि हम इस पूरे विवरण का गहराई से अध्ययन करें तो निष्कर्ष साफ है:
- शांत, परोपकारी स्वभाव सुखी जीवन का मूल मंत्र है
- स्वयं को माचिस की तीली न बनाकर, शांत सरोवर बनाएं
- क्रोध, अपराध का प्रवेशद्वार है – इसका त्याग अनिवार्य है
- अपराध मुक्त भारत के लिए मनीषियों को उदाहरण बनना होगा
संकलनकर्ता लेखक:क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा, सीए(एटीसी), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी – गोंदिया, महाराष्ट्र