ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम, 19 जुलाई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जब-जब वीरता, बलिदान और देशभक्ति की गाथा गायी जाएगी, तब-तब क्रांतिकारी मंगल पांडे का नाम आदरपूर्वक लिया जाएगा। वे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली चिंगारी थे, जिन्होंने 1857 की क्रांति का सूत्रपात किया और अपने साहस से समूचे देश में विद्रोह की लहर दौड़ा दी।

प्रारंभिक जीवन

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे साहसी, जुझारू और राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती होकर उन्होंने 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में सिपाही के रूप में कार्य किया।

विद्रोह का कारण

1857 में कंपनी द्वारा इस्तेमाल की जा रही नई एनफील्ड राइफलों में उपयोग होने वाले कारतूसों को लेकर विद्रोह की चिंगारी भड़की। इन कारतूसों को दांत से काटना पड़ता था और इनमें गाय और सुअर की चर्बी लगे होने की बात सामने आई थी, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लिए अपवित्र था। यह धार्मिक अपमान सहन करना मंगल पांडे को स्वीकार नहीं था।

विद्रोह का उद्घोष

29 मार्च 1857 को बैरकपुर (कोलकाता के पास) में मंगल पांडे ने खुलेआम विद्रोह कर दिया। उन्होंने अपने अफसरों पर हमला किया और सैनिकों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उठ खड़े होने का आह्वान किया। यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला सशस्त्र विरोध था, जिसे इतिहासकारों ने “1857 की क्रांति का पहला बिगुल” कहा।

बलिदान

इस क्रांति के बाद मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई और 8 अप्रैल 1857 को बैरकपुर छावनी में उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। उनका यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया—जल्द ही पूरे भारत में सैनिकों, किसानों और आम जनता ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

मंगल पांडे की विरासत

मंगल पांडे भारतीय युवाओं के लिए साहस, त्याग और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक हैं। भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किए और फिल्मों, पुस्तकों तथा नाटकों में उनके जीवन पर आधारित अनेक प्रस्तुतियाँ की गईं। उनकी स्मृति में 2005 में एक बायोपिक फिल्म “मंगल पांडे: द राइजिंग” भी बनाई गई।

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