शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद की 119वीं जयंती पर विशेष श्रद्धांजलि

गुरुग्राम। भारत की आज़ादी की लड़ाई के इतिहास में जिन नामों को स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है, उनमें शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का नाम सर्वोपरि है। आज 23 जुलाई को राष्ट्र उनके 119वें जन्मदिवस पर श्रद्धा से नमन कर रहा है। देशभर में आज़ाद की वीरता, साहस और राष्ट्रभक्ति को याद करते हुए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

चन्द्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर ज़िले में हुआ था। किशोरावस्था में ही उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। महज 15 वर्ष की उम्र में जब उन्हें गिरफ़्तार कर अदालत में पेश किया गया, तो उन्होंने अपना नाम ‘आज़ाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और निवास ‘जेल’ बताया। तभी से वे ‘चन्द्रशेखर आज़ाद’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

अदम्य साहस और क्रांति की प्रेरणा

आज़ाद न सिर्फ़ एक निर्भीक क्रांतिकारी थे, बल्कि एक विचारधारा के वाहक भी थे। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के प्रमुख स्तंभ बने। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे युवाओं के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेज़ों को कड़ा जवाब दिया। काकोरी कांड, सांडर्स हत्याकांड और असेम्बली बम विस्फोट जैसे साहसी अभियानों में उनकी प्रमुख भूमिका रही।

शहादत: आत्मसमर्पण नहीं, आत्मगौरव

27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क) में पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। अंतिम क्षणों तक अंग्रेज़ों से लोहा लेते रहे, और जब एक ही गोली बची, तो उन्होंने स्वयं को गोली मार ली। उन्होंने अपने उस संकल्प को निभाया — “मैं आज़ाद था, आज़ाद हूं और आज़ाद ही मरूंगा।”

युवाओं के लिए प्रेरणा

आज जब देश नयी चुनौतियों से जूझ रहा है, तब चन्द्रशेखर आज़ाद जैसी शख्सियतें युवाओं के लिए प्रेरणा का अमर स्रोत हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है और इसके लिए समर्पण, बलिदान और निडरता आवश्यक है।

Share via
Copy link