नगर निगम चुनाव के पांच महीने बाद भी एक भी बैठक नहीं, गंदगी बनी अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय

गुरुग्राम। देश के सबसे अधिक राजस्व देने वाले शहरों में शुमार गुरुग्राम इन दिनों गंदगी और अव्यवस्था के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी झेल रहा है। नगर निगम चुनाव हुए पांच महीने बीत चुके हैं, लेकिन अब तक निगम पार्षदों की एक भी बैठक नहीं बुलाई गई है। इस कारण ना सिर्फ सफाई व्यवस्था गड़बड़ा गई है, बल्कि आमजन की समस्याएं भी लगातार अनसुनी हो रही हैं।
सेक्टर तीन, पांच और छह के पूर्व आरडब्ल्यूए अध्यक्ष दिनेश वशिष्ठ ने नगर निगम की लापरवाही पर कड़ा रोष जताते हुए कहा कि सेक्टरों की सड़कें और ग्रीन बेल्ट कचरे से अटी पड़ी हैं। जगह-जगह प्लास्टिक, मलबा और घरेलू कचरे के ढेर लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि पार्षद चुने तो गए हैं, लेकिन बैठक ही न होने के कारण वे कोई ठोस कार्य नहीं कर पा रहे। ऐसे में गुरुग्राम की छवि दिन-ब-दिन धूमिल होती जा रही है।

दिनेश वशिष्ठ ने कहा, “गुरुग्राम आज मुख्यमंत्री, राज्यपाल और मंत्रियों की आरामगाह बन गया है, लेकिन आम नागरिक नारकीय स्थिति में जीवन जीने को मजबूर हैं। सफाई को लेकर हालात इतने बदतर हैं कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गुरुग्राम की गंदगी चर्चा का विषय बन चुकी है। क्या यही स्मार्ट सिटी का सपना था?”
उन्होंने सवाल उठाया कि अगर पार्षदों की बैठक होती, तो कम से कम वे अपने-अपने वार्डों की समस्याएं उठाकर प्रशासन को जगाने का प्रयास करते। लेकिन वर्तमान हालात में निगम प्रतिनिधि गूंगे-बहरे बनकर तमाशा देख रहे हैं। शहर की जनता ने उन्हें अपने मुद्दों के समाधान के लिए वोट दिया था, लेकिन अब वही जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है।
शहर की मेयर पर भी अनुभवहीनता का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि जन सरोकार के मुद्दों को लेकर वह अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा सकीं। ऐसे में गुरुग्राम के पास आज एक भी सशक्त आवाज नहीं है जो इन समस्याओं के खिलाफ बुलंद होकर खड़ी हो सके।
नगर निगम की निष्क्रियता और प्रशासनिक उपेक्षा के चलते शहर की सड़कों, सार्वजनिक स्थलों और रिहायशी इलाकों में साफ-सफाई की हालत बदतर हो चुकी है। नागरिकों ने चेताया है कि यदि जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया, तो वे जन आंदोलन का रास्ता अपनाने पर मजबूर होंगे।