विकास बराला की नियुक्ति रद्द कर हरियाणा सरकार ने जनदबाव तो मान लिया, मगर नैतिक जिम्मेदारी अब भी अधूरी है — क्या शिक्षा मंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे लोग ऐसे बयानों के बाद भी पद पर बने रह सकते हैं?
– ऋषिप्रकाश कौशिक
हरियाणा सरकार ने आखिरकार विपक्ष और जन आक्रोश के दबाव में आकर विवादास्पद नियुक्ति — विकास बराला को अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) बनाए जाने का आदेश वापिस ले लिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब आम जनता, सोशल मीडिया, और विशेष रूप से नवीन जयहिंद जैसे नेताओं ने सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था।
लेकिन क्या केवल नियुक्ति वापसी ही पर्याप्त है? क्या इससे व्यवस्था में पारदर्शिता और नैतिकता की पुनः स्थापना हो जाएगी? असली सवाल यही है कि जिन मंत्रियों ने इस निर्णय का बचाव किया, जिन्होंने अति आत्मविश्वास में आकर असंवेदनशील और गैरजिम्मेदाराना बयान दिए, उन पर क्या कार्रवाई होगी?
सबसे अधिक चिंता का विषय बना शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा का बयान, जिसमें उन्होंने कहा — “क्या नेताओं के छोरो को सात समंदर पार छोड़ आएं?” यह टिप्पणी न केवल अमर्यादित थी, बल्कि यह “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे संकल्पों को भी धूल में मिलाती है। क्या हरियाणा जैसे राज्य में, जहां महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता सबसे अधिक है, ऐसे व्यक्ति को शिक्षा मंत्रालय जैसे संवेदनशील विभाग में बने रहना चाहिए?
इस पूरे प्रकरण में कई सवाल मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा शीर्ष नेतृत्व तक से पूछे जा रहे हैं:
- क्या सुभाष बराला, जिन्होंने अपने पुत्र के लिए यह सिफारिश की, उनसे कोई जवाबदेही तय होगी?
- क्या शिक्षामंत्री को प्रदेश की महिलाओं से सार्वजनिक माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए?
- क्या भाजपा को अपने “पार्टी विद ए डिफरेंस” जैसे आदर्शों का मूल्यांकन अब नहीं करना चाहिए?
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की नियुक्ति का नहीं, बल्कि पूरे तंत्र में आई गिरावट और सत्ता में बैठे लोगों की नैतिकता के पतन का प्रतीक बन गया है।
दुखद यह है कि विपक्ष इस मुद्दे को एक बड़े नैतिक आंदोलन का रूप देने में विफल रहा है। इसका कारण ये भी हो सकता है कि सुभाष बराला की रिश्तेदारी पूर्व मंत्री सुखबीर कटारिया से है जो कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा का खास है, लेकिन ऐसे समय में जब राजनीति शिथिल है, समाज को, महिला संगठनों को, और जागरूक नागरिकों को आगे आना चाहिए — एक ठोस मांग के साथ कि न सिर्फ नियुक्ति रद्द हो, बल्कि इसके पक्ष में खड़े रहने वालों पर भी कार्रवाई हो।
अगर सरकार वाकई में सुधार की इच्छुक है, तो उसे केवल चेहरा नहीं, चरित्र भी बदलना होगा।