हरियाणा कैबिनेट ने हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधन) अधिनियम, 2014 में संशोधन को दी मंज़ूरी
संशोधित अधिनियम के तहत न्यायिक आयोग को पारदर्शी प्रशासन व विवाद समाधान के लिए सशक्त बनाया गया
चंडीगढ़, 1 अगस्त – हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी की अध्यक्षता में आज हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में सिख गुरुद्वारों के प्रबंधन से जुड़े कानूनी ढांचे को और अधिक सुदृढ़ करने हेतु हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधन) अधिनियम, 2014 में संशोधन के प्रस्ताव को मंज़ूरी प्रदान की गई। इन संशोधनों का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना, न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करना और गुरुद्वारा संपत्तियों की घोषणा एवं प्रशासन के लिए स्पष्ट संरचना उपलब्ध कराना है।
मुख्य बदलावों में अधिनियम की धारा 17(2)(c) को हटाया गया है, जो पहले गुरुद्वारा समिति को अपने ही सदस्यों को हटाने का अधिकार देती थी। अब यह अधिकार धारा 46 के अंतर्गत गठित न्यायिक आयोग के पास होगा।
इसके अतिरिक्त धारा 44 और 45 को प्रतिस्थापित करते हुए यह प्रावधान किया गया है कि मतदाता पात्रता, अयोग्यता, गुरुद्वारा कर्मचारियों से संबंधित सेवा मामलों और समिति सदस्यों की नियुक्ति से जुड़े विवाद अब विशेष रूप से नवगठित न्यायिक आयोग द्वारा सुलझाए जाएंगे। आयोग के आदेशों के विरुद्ध 90 दिनों के भीतर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है, जिसमें परिसीमा अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।
इसकी भूमिका को और सुदृढ़ करते हुए, धारा 46 को संशोधित किया गया है ताकि आयोग को गुरुद्वारा संपत्ति, निधि और आंतरिक विवादों से संबंधित विवादों का निपटारा करने का अधिकार मिल सके। आयोग कदाचार के आधार पर समिति के सदस्यों को हटाने या निलंबित करने का अधिकार होगा, और वह गुरुद्वारा संपत्ति या निधि के दुरुपयोग या संभावित क्षति से संबंधित मामलों में स्वतः संज्ञान ले सकता है।
वह ऐसी परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा भी जारी कर सकेगा। इसकी विस्तारित भूमिका को समर्थन प्रदान करने के लिए, 46A से 46N तक नई धाराएं जोड़ी गई हैं। ये धाराएं न्यायिक आयोग को धारा 46B के अंतर्गत दीवानी न्यायालय के समतुल्य शक्तियां प्रदान करती हैं, धारा 46C के अंतर्गत ऐसे मामलों में दीवानी न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र पर रोक लगाती हैं और धारा 46D के अंतर्गत सद्भावनापूर्वक किए गए कार्यों के लिए आयोग के सदस्यों को संरक्षण प्रदान करती हैं। आयोग द्वारा पारित आदेश धारा 46G के अंतर्गत दीवानी न्यायालय के आदेशों के रूप में लागू होंगे, और धारा 46F के अंतर्गत इसके सदस्यों को लोक सेवक माना जाएगा।
इसके अतिरिक्त संशोधन में नई जोड़ी गई धाराओं 55 से 55N के अंतर्गत गुरुद्वारों की घोषणा और प्रबंधन के लिए एक व्यापक कानूनी प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है। गुरुद्वारों को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाएगा—ऐतिहासिक (अनुसूची I), अधिसूचित (अनुसूची II), जिनकी वार्षिक आय 20 लाख रुपये या उससे अधिक हो, और स्थानीय (अनुसूची III)। किसी गुरुद्वारे को सिख गुरुद्वारा घोषित करने के लिए कम से कम 100 सिख श्रद्धालुओं द्वारा याचिका दायर की जा सकती है। ऐसी याचिकाओं पर आपत्तियां किसी भी इच्छुक व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत की जा सकती हैं, जिसमें वंशानुगत पदधारी भी शामिल हैं, और अंतिमकानून गुरुद्वारा संपत्तियों के स्वामित्व और नियंत्रण को भी स्पष्ट करता है। स्वामित्व की धारणाएँ ऐतिहासिक भूमि अभिलेखों, आय उपयोग या रख-रखाव के इतिहास पर आधारित होंगी। आयोग को कब्जे का आदेश देने, राजस्व अभिलेखों में परिवर्तन करने, विभिन्न विवादों को समेकित करने और आवश्यकतानुसार लागत निर्धारण करने का अधिकार है। इसके अलावा, इन मामलों में दीवानी और राजस्व न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा और किसी भी चल रहे मामले को न्यायिक आयोग को स्थानांतरित कर दिया जाएगा। न्यायिक आयोग के अंतिम निर्णयों के विरुद्ध 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष अपील की जा सकेगी।
इन संशोधनों के माध्यम से हरियाणा सरकार का उद्देश्य राज्य में सिख गुरुद्वारों के प्रबंधन हेतु एक पारदर्शी, कुशल एवं कानूनी रूप से सुदृढ़ प्रणाली स्थापित करना है।
हरियाणा मंत्रिमंडल ने महिला एवं बाल विकास विभाग के ग्रुप बी सेवा नियमों में संशोधन को दी मंज़ूरी
चंडीगढ़, 1 अगस्त – हरियाणा मंत्रिमंडल की आज यहाँ मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी की अध्यक्षता में हुई बैठक में हरियाणा महिला एवं बाल विकास विभाग, ग्रुप बी सेवा नियम, 1997 में प्रमुख संशोधनों को मंज़ूरी दी गई, ताकि इन्हें वर्तमान प्रशासनिक और भर्ती आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जा सके। इन संशोधनों में पदों के नामकरण, वेतनमान, शैक्षणिक योग्यता में परिवर्तन तथा विभागीय सेवा नियमों में नवसृजित पदों को शामिल करना सम्मिलित है।
पूर्व सरकारी अधिसूचनाओं के अनुसार, बाल विकास परियोजना अधिकारी (महिला) और कार्यक्रम अधिकारी (महिला) के पदों का आधिकारिक नाम बदलकर क्रमशः महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी (महिला) और जिला कार्यक्रम अधिकारी (महिला) किया गया है। इसे दर्शाने हेतु विभागीय नियमों में आवश्यक संशोधन किए गए हैं।
इसके अतिरिक्त, विभागीय सेवा नियम, 1997 के नियम 14 को हरियाणा सिविल सेवा (दंड एवं अपील) नियम, 1987 के स्थान पर संशोधित 2016 नियमों से प्रतिस्थापित किया गया है।
चरखी दादरी जिले के लिए जिला कार्यक्रम अधिकारी एवं अधीक्षक, तथा पपलोहा (पिंजौर) स्थित पंजीरी प्लांट के प्रबंधक सहित नवसृजित पदों को भी सेवा नियमों में शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त, मौजूदा नियमों में वेतनमानों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप अद्यतन किया गया है।
भर्ती प्रक्रिया को अधिक सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से, हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) की आपत्तियों के बाद महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी (महिला) पद हेतु 50% कोटे के साथ दो अलग-अलग शैक्षणिक योग्यताओं के प्रावधान को हटा दिया गया है।
इसी प्रकार, उप निदेशक पद पर सीधी भर्ती के लिए यूजीसी-नेट उत्तीर्ण होने की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया गया है। यह निर्णय एचपीएससी द्वारा योग्यता मानदंडों को संशोधित करने की सिफारिश के अनुरूप लिया गया है। इसके अलावा, सभी पदों के लिए मैट्रिक या उच्च शिक्षा स्तर पर हिंदी या संस्कृत विषय अनिवार्य करने का प्रावधान भी जोड़ा गया है।
सीआईएसएफ यूनिट लाइन, पंजाब एवं हरियाणा सिविल सचिवालय, चंडीगढ़ में “जवान चौपाल” का उद्घाटन
चंडीगढ़,1 अगस्त- सैनिकों के कल्याण को बढ़ाने और तनावमुक्त पारस्परिक जुड़ाव को बढ़ावा देने की दिशा में एक सराहनीय कदम के रूप में, आज सीआईएसएफ यूनिट लाइन, पंजाब एवं हरियाणा सिविल सचिवालय, चंडीगढ़ में “जवान चौपाल” नामक एक नई पहल का उद्घाटन किया गया।
उद्घाटन समारोह में सभी रैंकों के सीआईएसएफ कर्मियों की सक्रिय भागीदारी देखी गई। उल्लेखनीय है कि उद्घाटन समारोह का रिबन पिछले महीने सेवानिवृत्त हुए कर्मियों द्वारा औपचारिक रूप से काटा गया, जो सेवा की पीढ़ियों के बीच एकता के बंधन का प्रतीक है।
सीआईएसएफ वेट कैंटीन के निकट रणनीतिक रूप से स्थित, जवान चौपाल को एक अनौपचारिक, समुदाय-अनुकूल स्थान के रूप में डिज़ाइन किया गया है जहाँ कर्मी जन्मदिन, अनौपचारिक चर्चा और विश्राम जैसे छोटे समारोहों के लिए एकत्र हो सकते हैं। “चौपाल” की सदियों पुरानी भारतीय परंपरा पर आधारित – एक ग्रामीण बैठक स्थल जो खुले संवाद को बढ़ावा देता है – यह पहल सुरक्षा बलों के भीतर उस भावना को पुनर्जीवित करने का प्रयास करती है।
यूनिट के कई कर्मियों ने जवानों के बीच सौहार्द, तनाव मुक्ति और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में इस तरह के अनौपचारिक आयोजनों के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि आज की तेज़-तर्रार, डिजिटल जीवनशैली में, सार्थक मानवीय जुड़ाव अक्सर खो जाता है, जिससे तनाव और अलगाव का स्तर बढ़ जाता है। उन्होंने कहा, “जवान चौपाल न केवल एक सामाजिक केंद्र के रूप में कार्य करेगा, बल्कि सीआईएसएफ के तनाव प्रबंधन कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी होगा।”
यह पहल सीआईएसएफ यूनिट पी एंड एचसीएस चंडीगढ़ के अपने कर्मियों के समग्र कल्याण को सुनिश्चित करने के निरंतर प्रयासों को रेखांकित करती है, चाहे वे ड्यूटी पर हों या ड्यूटी से बाहर।