
गुरुग्राम, 2 अगस्त। समाजसेवी इंजीनियर गुरिंदरजीत सिंह ने जर्जर बुनियादी ढांचे को लेकर शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि जिस खतरे की जगह, रूप और समय सब पता है — जैसे जर्जर स्कूलों की छतें, टूटते पुल और गड्ढेदार सड़कें — उनसे बचाव के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई जाती। लेकिन जिन आपदाओं के बारे में कुछ पता नहीं, उनके लिए दिखावटी “मार्क ड्रिल” आयोजित की जाती हैं।
उन्होंने तीखा सवाल किया: “क्या इन हादसों को भी कुदरती आपदा कहेंगे, या शासन-प्रशासन की लापरवाही मानी जाएगी?”
गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि बारिश में सड़क और गड्ढे में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। हर साल हादसे होते हैं, लोगों की जान जाती है, लेकिन कोई जवाबदेही तय नहीं होती।
“क्या सिर्फ मीडिया की सुर्खियों में रहने और सियासी ड्रामा करने के लिए ही होती हैं ये ड्रिल?”
उन्होंने कहा कि अगर सरकार और प्रशासन को सचमुच जनता की सुरक्षा की चिंता होती, तो वे इन बुनियादी और वास्तविक खतरों पर ध्यान देते — जैसे:

- जर्जर स्कूलों की छतें, जो कभी भी गिर सकती हैं,
- अस्पताल जिनकी दीवारें दरक रही हैं,
- पुल जिन पर हर दिन हजारों लोग और वाहन गुजरते हैं,
- सड़कें जो गड्ढों से भरी पड़ी हैं, खासकर बारिश में जो जानलेवा हो जाती हैं।
गुरिंदरजीत सिंह ने कहा कि ये सब “मानव निर्मित आपदाएं” हैं — जिनसे बचा जा सकता है, अगर सरकार समय पर कार्रवाई करे।
उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक इन जमीनी समस्याओं पर फोकस नहीं किया जाता, तब तक सिर्फ “मार्क ड्रिल” और अलर्ट जारी करने से जनता की जान नहीं बचेगी।
“दिखावे की ड्रिल से नहीं, ज़मीन पर बदलाव से होगी सुरक्षा” – गुरिंदरजीत सिंह
उन्होंने यह मांग की कि प्रशासन को जवाबदेह बनाया जाए और ठोस, स्थायी योजना के तहत सभी जर्जर संरचनाओं का सर्वेक्षण कर उनकी तुरंत मरम्मत या पुनर्निर्माण करवाया जाए।