अशोक विहार में अवैध प्लॉटिंग और निर्माण पर क्यों है चुप्पी?
ऋषिप्रकाश कौशिक

गुरुग्राम, 03 अगस्त 2025 – गुरुग्राम में जिला नगर योजनाकार (DTP) आर.एस. बाठ द्वारा चलाए जा रहे तोड़फोड़ अभियान पर इन दिनों शहरवासियों के बीच कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं। सोशल मीडिया पर आए दिन DTP बाठ द्वारा साझा किए गए वीडियो में देखा जाता है कि वह सड़क किनारे गरीब दुकानदारों, महिलाओं और बच्चों की रोज़ी-रोटी पर बुलडोज़र चलवा रहे हैं। वीडियो में अक्सर भावुक दृश्य होते हैं — गरीब लोग अपनी दुकान बचाने की गुहार लगाते हैं, और अधिकारी सख्त लहजे में अपना “सिंघम” अवतार पेश करते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई सिर्फ गरीबों की दुकानों और रेहड़ी-पटरी तक ही सीमित है? क्या डीटीपी की नज़र अशोक विहार जैसे इलाकों में हो रही अवैध प्लॉटिंग और बहुमंज़िला निर्माण पर नहीं पड़ती?
अशोक विहार के करीब 900 मीटर के क्षेत्र में धड़ल्ले से प्लॉटिंग व निर्माण कार्य हो रहा है, जो स्पष्ट रूप से अवैध प्रतीत होता है। लेकिन इन पर न तो कोई कार्रवाई होती दिख रही है और न ही सोशल मीडिया पर ऐसी किसी सख्ती की झलक मिलती है। नागरिकों का कहना है कि इस इलाके में निर्माण कार्यों को स्थानीय पार्षद परमिंदर कटारिया का संरक्षण प्राप्त है।

यह पार्षद भले ही एक आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता हो, लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उसकी जीत में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का हाथ रहा है। यही कारण है कि विधायक मुकेश शर्मा का समर्थन भी उसे अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त है, क्योंकि दोनों ही नेता राव इंद्रजीत के करीबी माने जाते हैं।

सूत्रों के अनुसार, इन नेताओं का एक नज़दीकी व्यक्ति जो बीजेपी संगठन से जुड़ा हुआ है, उसकी अशोक विहार में प्रॉपर्टी डीलिंग की दुकान है और वह भी इन गतिविधियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संलिप्त बताया जाता है।
ऐसे में जनता और पत्रकारों का यह सीधा सवाल है कि क्या DTP बाठ पर भी राजनीतिक दबाव है? क्या यही वजह है कि तोड़फोड़ की कार्रवाई सिर्फ कमजोर और लाचार लोगों तक सीमित है, जबकि प्रभावशाली और संरक्षित निर्माणों पर कार्रवाई का साहस नहीं दिखता?
आज जब विधायक मुकेश शर्मा खुद सीआरपीएफ चौक से कृष्णा चौक तक की सड़क को अप्रूवल दिलवाने के प्रयास में लगे हैं, तो क्या यह इस अवैध निर्माण को वैध करवाने की कवायद है?
गुरुग्राम की जनता यह जानना चाहती है कि कब तक प्रशासनिक कार्यवाहियां दोहरे मापदंडों पर चलती रहेंगी? क्या आम जनता यूं ही सियासी ताकतों के हाथों शोषित होती रहेगी या कभी न्याय और समानता की बुनियाद पर प्रशासन खड़ा दिखाई देगा?