रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक पर्व है

गुरुग्राम। श्री माता शीतला देवी श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य एवं आचार्य पुरोहित संघ के अध्यक्ष, प्रसिद्ध कथावाचक पं. अमर चन्द भारद्वाज ने कहा है कि रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम, सुरक्षा और विश्वास का प्रतीक है। यह पर्व न केवल पारिवारिक रिश्तों को प्रगाढ़ करता है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक परंपरा का भी गौरव है।
उन्होंने कहा कि राखी बांधने की परंपरा के पीछे कई पौराणिक कथाएँ हैं। महाभारत काल में जब भगवान श्रीकृष्ण युद्ध के दौरान घायल हो गए थे, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी कलाई पर बांधा था। यह प्रेम और कर्तव्य का अनुपम उदाहरण है।
एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग में सब कुछ मांग लिया, तब राजा बलि ने उन्हें अपने द्वार पर पहरेदार बनने का वरदान में आग्रह किया। जब लक्ष्मी जी को यह ज्ञात हुआ कि उनके पति विष्णु जी बलि के साथ हैं, तो उन्होंने राजा बलि को राखी बांधी और बदले में विष्णु जी को मांगा। तभी से रक्षाबंधन का पर्व बहन द्वारा भाई को रक्षा सूत्र बांधने और भाई द्वारा उसकी रक्षा का संकल्प लेने की परंपरा बन गया।
रक्षाबंधन का धार्मिक विधि-विधान
पं. अमरचन्द भारद्वाज ने बताया कि रक्षाबंधन पर भाई-बहन प्रातः स्नानादि कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं। भाई पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठे और बहन पहले रोली-कुमकुम से तिलक लगाकर अक्षत (चावल) लगाए। फिर दाहिने हाथ में राखी बांधे, जिसमें तीन या पांच गांठ अवश्य होनी चाहिए। काले या नीले रंग की राखी या वस्त्र अशुभ माने जाते हैं, अतः इनसे परहेज करें। लाल रंग की राखी शुभ मानी जाती है। राखी के साथ बहन भाई की आरती उतारें और भाई दक्षिणा (धनराशि या उपहार) प्रदान करे।
शुभ मुहूर्त और भद्रा का समय
पं. भारद्वाज ने बताया कि वर्ष 2025 में श्रावण पूर्णिमा तिथि 8 अगस्त को दोपहर 2:14 बजे से प्रारंभ होकर 9 अगस्त को दोपहर 1:26 बजे तक रहेगी। पूर्णिमा व्रत 8 अगस्त को रखा जाएगा, क्योंकि उस दिन रात्रि में चंद्रदर्शन संभव होगा। लेकिन रक्षाबंधन उदयातिथि के अनुसार 9 अगस्त शनिवार को मनाया जाएगा।
भद्रा काल:
8 अगस्त को दोपहर 2:12 बजे से प्रारंभ होकर 9 अगस्त दोपहर 1:52 बजे तक रहेगा। भद्रा काल में राखी बांधना वर्जित माना गया है।
राहुकाल:
9 अगस्त को प्रातः 9:06 से 10:46 तक राहुकाल रहेगा, जो अशुभ समय है।
राखी बांधने के दो शुभ मुहूर्त
- प्रातः 5:46 (सूर्योदय) से 9:05 बजे तक
- प्रातः 10:47 बजे से दोपहर 1:26 बजे तक
जो बहनें इन मुहूर्तों में नहीं पहुंच पातीं, वे 9 अगस्त शनिवार को सूर्यास्त तक उदयातिथि मानकर राखी बांध सकती हैं।
पं. अमरचंद भारद्वाज ने सभी भाई-बहनों से अपील की कि वे इस पवित्र पर्व को पूरी श्रद्धा, आस्था और पारंपरिक विधि-विधान से मनाएं।