ऋषि प्रकाश कौशिक
गुरुग्राम – इन दिनों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से सरकार और पार्टी संगठन दोनों स्तरों पर तिरंगा यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। तिरंगा—भारत की आन, बान और शान—सिर्फ एक राष्ट्रीय ध्वज नहीं, बल्कि संविधान में निहित हमारे आदर्शों और मूल्यों का प्रतीक है। यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम, त्याग और बलिदान की अमर कहानी कहता है।
परंतु इन भव्य आयोजनों के बीच एक गंभीर प्रश्न उभरता है—क्या तिरंगा यात्रा के दौरान वास्तव में तिरंगे के सम्मान का पूर्ण पालन हो रहा है? और क्या इन यात्राओं में शामिल लोग भारत के संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं?

तिरंगे का सम्मान: केवल प्रदर्शन नहीं, आचरण भी
भारत में तिरंगे के इस्तेमाल और उसके सम्मान से जुड़े स्पष्ट नियम हैं, जो भारतीय ध्वज संहिता (Flag Code of India) में निर्दिष्ट हैं। इसमें तिरंगे के सही तरीके से फहराने, थामने और उपयोग करने के मानक तय किए गए हैं।
इन्हीं मानकों में एक यह भी है कि तिरंगा हमेशा दाएँ हाथ में थामा जाना चाहिए, क्योंकि यह सम्मान और प्राथमिकता का प्रतीक है। हाल ही में कुछ तस्वीरें सामने आईं, जिनमें तिरंगा यात्रा का नेतृत्व करने वाले नेता बाएँ हाथ में झंडा थामे नज़र आए। यह न केवल ध्वज संहिता की भावना के विपरीत है, बल्कि जनमानस को गलत संदेश भी देता है।
दुर्भाग्य से कई बार आयोजनों में देखा जाता है कि तिरंगे को ज़मीन पर गिरा दिया जाता है, गलत तरीके से लपेटा जाता है या फिर यात्रा के बाद कहीं कोने में फेंक दिया जाता है। यह केवल नियमों का उल्लंघन ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव को ठेस पहुँचाने जैसा है।
संवैधानिक कर्तव्य और तिरंगा यात्रा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(क) के तहत प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है—
- राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।
- संविधान के आदर्शों का पालन करना।
- देश की एकता, अखंडता और भाईचारे की रक्षा करना।
अगर तिरंगा यात्रा केवल राजनीतिक प्रदर्शन या भीड़ जुटाने का साधन बन जाए, और उसमें सहभागी लोग खुद ही नियम तोड़ें, सड़क पर गंदगी फैलाएँ, नारेबाज़ी में मर्यादा भूल जाएँ या समाज में वैमनस्य बढ़ाएँ—तो यह संविधान की भावना के विपरीत होगा।
तिरंगा केवल उत्सव का नहीं, उत्तरदायित्व का प्रतीक
तिरंगा यात्रा का वास्तविक अर्थ तभी है, जब यह नागरिकों में देशभक्ति, भाईचारा और कर्तव्य पालन की प्रेरणा जगाए। यह हमें यह याद दिलाए कि हम सिर्फ अधिकारों के नहीं, बल्कि कर्तव्यों के भी धारक हैं। तिरंगे के नीचे हम सभी समान हैं—धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र से परे।
निष्कर्ष
राजनीतिक दलों को चाहिए कि ऐसे आयोजनों में तिरंगे के सम्मान और संवैधानिक मूल्यों के पालन को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। तिरंगा यात्रा का उद्देश्य केवल ध्वज लहराना नहीं, बल्कि उसके तीन रंगों में निहित सत्य, साहस और शांति को अपने जीवन और कार्य में उतारना होना चाहिए।
और सबसे ज़रूरी—तिरंगे को थामने से लेकर यात्रा के समापन तक, हर क्षण उसके सम्मान के नियमों का पालन करना, ताकि हमारे देश का यह गौरवशाली प्रतीक हमेशा उसी गरिमा के साथ लहराता रहे, जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिया।