ग्रामीण भारत अध्यक्ष बोले – तिरंगा यात्राओं में शहीद सम्मान की भावना गायब, महंगाई-बेरोजगारी से ध्यान भटकाने की साज़िश

“जब देश का प्रधानमंत्री ही वोट चोरी करके अवैध रूप से सत्ता पर कब्जा कर बैठे, तो लोकतंत्र कैसे सुरक्षित रह सकता है?” — वेदप्रकाश विद्रोही, अध्यक्ष, ग्रामीण भारत

चंडीगढ़/रेवाड़ी, 14 अगस्त। स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने आरोप लगाया कि आजादी के 78 साल बाद देश एक बार फिर लोकतंत्र, संविधान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संवैधानिक संस्थाओं पर फासीज़म के खतरे से जूझ रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले 11 वर्षों में लोकतंत्र के नाम पर “संघी फासीज़म” थोपा जा रहा है।

विद्रोही ने कहा कि हरियाणा में ‘आजादी अमृत महोत्सव’ के नाम पर भाजपा कथित तिरंगा यात्राएं निकाल रही है, लेकिन इनमें शहीदों के सम्मान की भावना कहीं दिखाई नहीं देती। इसके बजाय इनका उद्देश्य जनता को बरगला कर महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, किसान आंदोलन, पेगासस जासूसी और पेट्रोल-डीजल-गैस की बढ़ती कीमतों जैसे असली मुद्दों से ध्यान हटाना है।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी तीखा हमला करते हुए कहा कि विपक्ष के जनमुद्दों को काले जादू जैसी अंधविश्वासी बातें बताना जनता के साथ क्रूर मज़ाक है। संसद के मानसून सत्र का उल्लेख करते हुए विद्रोही ने कहा कि प्रधानमंत्री सवालों से बचते हैं और लोकतांत्रिक परंपराओं की धज्जियां उड़ाते हैं।

विद्रोही ने 2024 लोकसभा चुनाव में ‘वोट चोरी’ का आरोप दोहराते हुए कहा कि राहुल गांधी दस्तावेजों के साथ यह साबित कर चुके हैं कि मोदी वोट चोरी कर प्रधानमंत्री बने हैं, लेकिन चुनाव आयोग आरोपों की जांच करने के बजाय उन्हें दबा रहा है।

उन्होंने अपील की कि स्वतंत्रता दिवस पर लोग संकल्प लें कि जब तक शुद्ध मतदाता सूची तैयार नहीं हो जाती और वोट चोरी का खेल बंद नहीं होता, तब तक इस कुप्रथा के खिलाफ सामूहिक संघर्ष जारी रखा जाएगा।

राजनीतिक प्रभाव विश्लेषण

वेदप्रकाश विद्रोही का यह बयान सीधे तौर पर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला है, जिसमें ‘फासीज़म’, ‘वोट चोरी’ और ‘लोकतांत्रिक संस्थाओं पर खतरा’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। ऐसे आरोप विपक्षी खेमे में सरकार विरोधी नैरेटिव को और तेज करेंगे।

हरियाणा में आने वाले चुनावों को देखते हुए यह बयान भाजपा की तिरंगा यात्रा जैसी प्रतीकात्मक गतिविधियों के राजनीतिक मकसद पर सवाल उठाता है, जिससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बहस छिड़ सकती है।

राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ आरोप का समर्थन करते हुए विद्रोही ने चुनाव आयोग को भी कठघरे में खड़ा किया है, जो राजनीतिक माहौल को और गरमा सकता है। इससे भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के बीच एक साझा मुद्दा तैयार हो सकता है, जबकि सत्ता पक्ष इसे राष्ट्रवाद और देशभक्ति के खिलाफ बयान के रूप में पेश करने की कोशिश कर सकता है।

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