· लोकसभा में सांसद दीपेन्द्र हुड्डा के प्रश्न के जवाब से बीजेपी सरकार की लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उदासीनता हुई उजागर
· जब देश की राजधानी में छात्रसंघ चुनाव हो सकता है तो हरियाणा के विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं हो सकता – दीपेन्द्र हुड्डा
· छात्र संघ चुनाव पर लिंगदोह समिति की सिफ़ारिशों के पालन हेतु समयबद्ध और पारदर्शी प्रणाली लागू करे सरकार – दीपेन्द्र हुड्डा

चंडीगढ़, 14 अगस्त। सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने संसद में सरकार से पिछले एक दशक में विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनाव नहीं कराने पर सवाल किया कि संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं युवा नेतृत्व को मजबूत करने की घोषित प्रतिबद्धता के मद्देनज़र छात्र संघ चुनावों को लंबे समय तक टालने का औचित्य क्या है तथा लिंगदोह समिति की सिफ़ारिशों के अनुसार छात्र संघों के नियमित, पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव को संस्थागत बनाने के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं? उनके सवाल पर शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने चुनाव न कराने और लिंगदोह समिति की सिफ़ारिशों को लागू करने का दायित्व संबंधित विश्वविद्यालयों का बताते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया और कहा कि छात्र संघ चुनावों से संबंधित आँकड़े केंद्रीय स्तर पर नहीं रखे जाते।
दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि हरियाणा में लगातार विरोध प्रदर्शनों के बावजूद छात्रसंघ चुनाव नहीं कराए जा रहे। जबकि, छात्र लगातार अपनी मांगों को लेकर मुखर हैं। उन्होंने कहा कि जब देश की राजधानी में छात्रसंघ चुनाव हो सकता है तो हरियाणा के विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं हो सकता। अब समय आ गया है कि विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव कराये जाएं। अगर छात्र एकता की आवाज में ताकत होगी तो उनके साथ अन्याय नहीं होगा। इसका लोकतांत्रिक रास्ता छात्रसंघ चुनाव है। सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकती। सरकार छात्र संघ चुनाव पर लिंगदोह समिति की सिफ़ारिशों के पालन हेतु समयबद्ध और पारदर्शी प्रणाली लागू करे।
लोकसभा में सांसद दीपेन्द्र हुड्डा के प्रश्न के जवाब में सरकार की लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उदासीनता उजागर हो गई। शिक्षा मंत्रालय ने कहा कि वह विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव न होने के संबंध में कोई भी केंद्रीय आंकड़ा नहीं रखता। साथ ही, लिंगदोह समिति की सिफ़ारिशों के क्रियान्वयन को पूरी तरह विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी बताकर केंद्र सरकार ने अपनी भूमिका से पल्ला झाड़ लिया है। सरकार का ये रवैया संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने के सरकार के दावों के विपरीत है। छात्र संघ चुनाव केवल विश्वविद्यालयी राजनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह युवाओं में नेतृत्व क्षमता, जनभागीदारी और लोकतांत्रिक संस्कृति के विकास का प्रमुख आधार हैं। छात्र संघ चुनाव न कराना और आंकड़ों का अभाव दर्शाता है कि बीजेपी सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही से भाग रही है। चुनाव न होने से लाखों छात्रों का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार प्रभावित हो रहा है।