·        जिन मशीनों से पराली प्रबंधन का विकल्प दिया जा रहा वे या तो महँगी हैं या किसानों तक उनकी पहुँच ही नहीं है – दीपेन्द्र हुड्डा

·        बायो-डिकंपोज़र और फसल विविधीकरण जैसी घोषणाएँ केवल कागज़ों तक सीमित – दीपेन्द्र हुड्डा

·        प्रदूषण नियंत्रण के लिए पर्याप्त फंड के साथ योजनाएं और प्रभावी क्रियान्वयन करे सरकार – दीपेन्द्र हुड्डा

चंडीगढ़, 19 अगस्त। सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने लोकसभा में सरकार से पराली प्रबंधन की समस्या से निपटने के लिए बजट आवंटन और योजनाओं का ब्योरा मांगा। दीपेन्द्र हुड्डा ने पर कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री राम नाथ ठाकुर के जवाब से असहमति जताते हुए कहा कि केवल कोरी बयानबाजी से पराली का प्रबंधन नहीं होगा उसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे। दीपेन्द्र हुड्डा कहा कि पराली प्रबंधन पर सरकार के दावे खोखले दिखाई देते हैं क्योंकि, सरकार फसल अवशेष प्रबंधन योजना (CRM) के तहत करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा तो कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर किसानों को पर्याप्त मशीनें और सुविधाएँ नहीं मिल पा रही हैं। जिन मशीनों की मदद से पराली न जलाने का विकल्प दिया गया है, वे या तो काफी महँगी हैं या किसानों तक समय पर पहुँच ही नहीं रही हैं। सरकार किसानों पर पराली जलाने का दोष मढ़ देती हैं, जबकि असली समस्या यह है कि सरकार धान-गेहूँ के चक्र को तोड़ने और किसानों को व्यवहारिक विकल्प देने में असफल रही है। छोटे व मध्यम जोत वाले किसानों के पास महँगे विकल्प अपनाने की क्षमता नहीं होती। बायो-डिकंपोज़र और फसल विविधीकरण जैसी घोषणाएँ केवल कागज़ों तक सीमित रह गई हैं। दीपेन्द्र हुड्डा ने मांग करी कि किसानों को मुफ्त या बेहद सस्ती दरों पर समय से पराली प्रबंधन मशीनें उपलब्ध कराई जाएँ।

उन्होंने आगे कहा कि NCR और उत्तर भारत में प्रदूषण की विकराल होती समस्या को कम करने के लिए अस्थाई कदम उठाने की बजाय स्थायी और दीर्घकालिक योजना बनाई जाए और उन्हें पर्याप्त बजट दिया जाए। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी के तीन तरफ से लगे हरियाणा की बात करें तो यहाँ वायु प्रदूषण खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है, अधिकांश जिले गैस चेंबर में बन गए हैं। संसद में दिए गए सरकारी आंकड़े खुद यह साबित करते हैं कि सरकार अब तक इस समस्या का स्थायी समाधान खोजने में असफल रही है और ज्यादातर योजनाएं कागजी साबित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह एनसीआर प्लानिंग बोर्ड के तहत सड़कें, रेल, कॉलेज आदि के प्रोजेक्ट मिलते हैं और फंड भी मिलता है। उसी प्रकार प्रदूषण नियंत्रण के लिए भी सरकार को पर्याप्त फंड की व्यवस्था के साथ योजनाएं बनानी चाहिए ताकि उनका प्रभावी क्रियान्वयन हो सके। जब तक ये नहीं होगा, प्रदूषण नियंत्रण धरातल पर आगे नहीं बढ़ेगा।

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