सुरेश गोयल धूप वाला

भारत विश्व की सबसे प्राचीन और गौरवशाली सभ्यताओं में से एक है। आजादी के बाद देश ने विज्ञान, तकनीक, कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। परंतु एक विडंबना यह भी है कि भ्रष्टाचार नामक बीमारी ने विकास की गति को बार-बार बाधित किया है। भ्रष्टाचार केवल रिश्वत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी मानसिकता का रूप ले चुका है जिसने समाज की जड़ों को खोखला कर दिया है।

भ्रष्टाचार: एक सामाजिक मानसिकता

देश में हर व्यक्ति भ्रष्ट नहीं है। आज भी असंख्य लोग ईमानदारी और निष्ठा से अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आमजन के मन में यह धारणा घर कर चुकी है कि बिना रिश्वत दिए कोई काम पूरा नहीं हो सकता। इस मानसिक ग्रंथि ने भ्रष्टाचार को सामाजिक मान्यता दे दी है। रिश्वत अब अपराध कम और “सुविधा शुल्क” अधिक मानी जाने लगी है। यही कारण है कि यदि कोई अधिकारी रिश्वत लेते पकड़ा भी जाता है, तो समाज इसे सामान्य घटना की तरह लेता है।

राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक तंत्र

भ्रष्टाचार का सबसे मजबूत आधार राजनीतिक संरक्षण है। कोई भी बड़ा घोटाला या अनियमितता तब तक संभव नहीं होती जब तक उसे उच्च स्तर से शह न मिले। प्रशासनिक तंत्र में भी भ्रष्टाचार बिना राजनीतिक सहारे के फल-फूल नहीं सकता। इसलिए जब तक राजनीति और शासन व्यवस्था में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व नहीं बढ़ेगा, तब तक भ्रष्टाचार पर काबू पाना असंभव है।

डिजिटल युग और नई संभावनाएँ

फिर भी स्थिति पूरी तरह निराशाजनक नहीं है। डिजिटल क्रांति और ऑनलाइन सेवाओं के बढ़ने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने के संकेत मिले हैं। जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, आयकर रिटर्न, रेलवे बुकिंग, हरियाणा प्रदेश की बात की जाए तो सरकारी नौकरियो व  तबादलो में पारदर्शिता आई हैं। पहले खर्ची पर्ची चलती थी अब ऐसा नहीं हैं। सेवाओं में ऑनलाइन व्यवस्था ने पारदर्शिता आई है।और दलाल संस्कृति को कमजोर किया है। भविष्य में यदि अधिकाधिक सेवाओं को ई-गवर्नेंस के दायरे में लाया जाए, तो भ्रष्टाचार की जड़ें और भी कमजोर होंगी।

निजीकरण: एक ठोस उपाय

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का एक और ठोस उपाय यह हो सकता है कि सरकार जनता से जुड़ी अनेक सार्वजनिक सेवाओं को निजी क्षेत्र में लाने का साहसिक कदम उठाए। निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और कार्यकुशलता के दबाव के कारण पारदर्शिता बनी रहती है। इससे न केवल भ्रष्टाचार  पर अंकुश लगेगा , बल्कि घाटे में चल रहे अनेक सार्वजनिक उपक्रम भी उबर सकेंगे।  यह बात इस उदाहरण से समझी जा सकती हैं की ज़ब दूरसंचार व्यवस्था पर केवल सरकारी नियंत्रण होता था तब कनेक्शन लेने में  वर्षो लगते थें  लाइने ख़राब रहती थी। भ्रष्टाचार का बोलबाला था।बिजली वितरण, और परिवहन जैसे  क्षेत्रों में  निजीकरण के सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।यदि इस दिशा में व्यापक कदम उठाए जाएँ, तो प्रशासनिक बोझ भी कम होगा और जनता को बेहतर सुविधाएँ मिलेंगी।

समाज की भूमिका

केवल कानून और नीतियाँ बनाकर भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता। जब तक समाज इस बुराई को स्वीकार करता रहेगा, तब तक इसमें कमी आना कठिन है। यदि आमजन यह निश्चय कर ले कि वह न रिश्वत देगा और न लेगा, तो माहौल अपने आप बदल जाएगा। ईमानदार अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रोत्साहन देना भी उतना ही जरूरी है, ताकि वे भ्रष्ट तंत्र से लड़ते हुए अकेलापन महसूस न करें।भ्रष्टाचार केवल प्रशासनिक समस्या नहीं है, यह एक नैतिक और सामाजिक चुनौती भी है। यदि भारत को विश्व शक्ति के रूप में उभरना है, तो भ्रष्टाचार पर निर्णायक प्रहार करना होगा। इसके लिए कठोर कानून, राजनीतिक इच्छाशक्ति, डिजिटल पारदर्शिता और निजीकरण जैसे ठोस कदम आवश्यक हैं। साथ ही, समाज को भी इस बुराई के प्रति असहिष्णु होना पड़ेगा।

निश्चित ही जिस दिन भारत भ्रष्टाचार की बेड़ियों से मुक्त होगा, उस दिन राष्ट्र की प्रगति को कोई नहीं रोक सकेगा।

सुरेश गोयल धूप वाला …… पूर्व भाजपा जिला महामंत्री, हिसार 

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