ऋषि प्रकाश कौशिक

आंकड़े मुर्दा नहीं होते; आंकड़े बोलते हैं; जब बोलते हैं तो सच बोलते हैं और सच बोलने वाले आंकड़े पोल खोलते हैं। इन्हीं आँकड़ों ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की ‘सौगात’ के पीछे छिपी राजनीतिक हित साधने की रणनीति का असली चेहरा दिखा दिया है। आंकड़ों ने जो पोल खोली है उसका ब्योरा देने से पहले ‘सौगात’ की असलियत समझ लें। बीजेपी के छोटे बड़े सभी नेता 1170 करोड़ की परियोजनाओं को प्रदेश की जनता के लिए ‘सौगात’ कह कर मुख्यमंत्री का आभार जता रहे हैं। सभी नेता, जितनी जल्दी हो सके, अपने दिमाग से यह खयाल निकाल दें कि जनता को खैरात में ये परियोजनाएं दी गई हैं। जनता का पैसा जनता पर खर्च हो रहा है। इसे ‘सौगात’ कैसे कह सकते हैं। मुख्यमंत्री के निजी धन से या बीजेपी के खजाने से परियोजनाओं का निर्माण होता तो निश्चित तौर पर यह जनता को ‘सौगात’ होती। मुख्यमंत्री जनता के धन का संरक्षक होता है; मालिक नहीं। नई परियोजनाओं का मतलब है कि जनता का पैसा जनता के पास चला गया और वो जाना भी चाहिए। जनता भजन कीर्तन करने के लिए सरकार नहीं बनाती है; वह विकास कार्य करने के लिए नुमाइंदे चुनती है जो सरकार बनाते हैं। वे नई परियोजनाएं जनता को देते हैं तो कोई एहसान नहीं करते; वे सिर्फ अपना फर्ज पूरा करते हैं; जाहिर है अगला चुनाव जीतने के लिए फर्ज निभाना जरूरी होता है।
अब सच उजागर करने वाले आंकड़ों से रूबरू होते हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए 1170 करोड़ की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इस अवसर पर उन्होंने मीडिया को बताया कि कुल 98 परियोजनाएं हैं जिनमें दोनों तरह की परियोजनाएं (उद्घाटन और शिलान्यास वाली) आधी आधी हैं। मुख्यमंत्री के इस जवाब से क्या माना जाए? क्या 1170 करोड़ को भी आधा आधा कर लिया जाए यानी आधी रकम की वो परियोजना जिनका उद्घाटन किया है और आधी रकम की परियोजनाओं का शिलान्यास किया गया है। किसी भी प्रदेश का मुख्यमंत्री इस तरह का चलताऊ जवाब कभी नहीं देता है। इससे साबित होता है कि मुख्यमंत्री के पास पूरी जानकारी ही नहीं थी।
जैसे मुख्यमंत्री वैसे ही उनके अफसर हैं। मुख्यमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि प्रदेश सरकार ने 17 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है जबकि सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में 16 फ़सलें बताई गई हैं। कौन सही है, कहना मुश्किल है। लेकिन, यह सच है कि कोई एक अज्ञानी है और गलत सूचना दे रहा है।
हरियाणा सरकार का सूत्र वाक्य है- सबका साथ, सबका विकास। साथ ही, यह भी दावा किया जाता है कि क्षेत्रीय भेदभाव के बिना प्रदेश में विकास किया जा रहा है और किया जाएगा। सुनने में बड़ा अच्छा लगता है कि विकास के मामले में क्षेत्रीयता के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। लेकिन धरातल पर तस्वीर एकदम उलट है। मुख्यमंत्री की कथित ‘सौगात’ के आँकड़ों ने सूत्र वाक्य की पोल खोल दी है। मुख्यमंत्री ने 1170 करोड़ की परियोजनाओं में से 509 करोड़ की परियोजनाएं अपने गृह जिला करनाल को दी हैं यानी इस सौगात के केक का 43.5 प्रतिशत हिस्सा काट कर अपने गृह जिला करनाल को दे दिया। बाकी 661 करोड़ में 15 जिले हैं। इसे क्षेत्रीय भेदभाव नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे। यह तो एक पहेली हो गई है। प्रदेश के 22 जिलों में से छह जिलों को एक रुपए की भी ‘सौगात’ नहीं मिली। इन छह के साथ उपेक्षापूर्ण वजह तो मुख्यमंत्री ही बता सकते हैं। लेकिन, राजनीतिक विश्लेषक इस उपेक्षा की वजह किसान आंदोलन को मान रहे हैं। इन छह जिलों में किसान आंदोलन मजबूत नहीं है इसलिए उन्हें कुछ देने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। जिन जिलों में किसान आंदोलन सरकार के लिए चुनौती बन चुका है सरकार ने कथित सौगात के जरिए वहाँ की जनता का दिल जीतने प्रयास किया है ताकि उचित समय पर किसानों के खिलाफ जनभावनाओं को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।
परियोजनाओं की कथित ‘सौगात’ से एक गूढ़ ज्ञान भी सतह पर तैर रहा है। कोरोना की भयावह स्थिति में चिकित्सा संबंधी सुविधाएं प्रदेश की जनता को मुहैया कराना सरकार की पहली प्राथमिकता थी लेकिन तब खट्टर सरकार कॉर्पोरेट क्षेत्र का मुँह ताक रही थी और ऐसे दिखाया जा रहा था कि सरकार के खजाने धन ही नहीं है। सरकार को सीएसआर से धन मिला, उसके बाद कोरोना मरीजों के लिए सुविधाएं तैयार की गई। अब समझ आ रहा है कि सरकारी खजाने का पैसा कोरोना रोगियों के लिए क्यों नहीं खर्च किया जा रहा था। राजनीतिक स्वार्थ साधने देने के लिए ‘सौगात’ जो देनी थी।