Category: देश

परदेस से मोहभंग: लौटता विश्वास, बदलती दिशा

विदेशी शिक्षा के सपनों से मोहभंग का यथार्थ और भारत में नवाचार की संभावनाएं ✍️ विजय गर्ग(सेवानिवृत्त प्रिंसिपल, मलोट, पंजाब) विदेश जाने की होड़ को लगा विराम बीते वर्ष (2024)…

दुनिया के अखाड़े में टैरिफ का महादंगल: चीन के 125% पर अमेरिका ने लगाया 245% शुल्क

दो आर्थिक महाशक्तियों की जंग में पिसती वैश्विक अर्थव्यवस्था टैरिफ़ वार से ग्लोबल सप्लाई चैन बाधित होने से पूरी दुनियाँ सांसत में!- जो सामान कई देशों के जॉइंट प्रोडक्ट से…

चॉक से चुभता शोषण: प्राइवेट स्कूल का मास्टर और उसकी गूंगी पीड़ा

“प्राइवेट स्कूल का मास्टर: सम्मान से दूर, सिस्टम का मज़दूर” प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों से उम्मीदें तो आसमान छूती हैं, लेकिन उन्हें न तो उचित वेतन मिलता है, न सम्मान,…

आधी सच्चाई का लाइव तमाशा: रिश्तों की मौत का नया मंच

आजकल लोग निजी झगड़ों और रिश्तों की परेशानियों को सोशल मीडिया पर लाइव आकर सार्वजनिक करने लगे हैं, जहां आधी-अधूरी सच्चाई दिखाकर सहानुभूति बटोरी जाती है। ‘सुट्टा आली’ और ‘मुक्का…

रामलला के दर्शन के साथ भक्त करेंगें अब तुलसीदास का भी दर्शन : चंपतराय

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक अयोध्या : श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का बयान, राम जन्मभूमि मंदिर का परिसर अपनी पूर्णता की ओर बढ़ रहा है।…

“गोबर, गुस्सा और विश्वविद्यालय की गिरती गरिमा” : गोबर का जवाब: जब शिक्षा की दीवारों पर गुस्सा पुता हो

दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा क्लासरूम और प्रिंसिपल के घर पर गोबर लिपने की घटना केवल अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि एक गहरी असंतोष की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति थी। इस विरोध ने सत्ता…

“क्लासरूम से कॉर्पोरेट तक : उच्च शिक्षा और उद्योग के बीच की दूरी”

“डिग्री से दक्षता तक: शिक्षा प्रणाली को उद्योग से जोड़ने की चुनौती” “डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें” “कुशल भारत की कुंजी: उद्योग अनुरूप विश्वविद्यालय शिक्षा” वर्तमान…

ईडी की कार्रवाई पर उठे सवाल: वेदप्रकाश विद्रोही बोले – नेशनल हेराल्ड मामला लोकतंत्र पर खतरे की घंटी

“बिना एफआईआर ईडी की चार्जशीट: लोकतंत्र पर गहराता संकट – विद्रोही” “नेशनल हेराल्ड केस में ईडी की कार्रवाई तानाशाही की मिसाल: वेदप्रकाश विद्रोही” नई दिल्ली, 16 अप्रैल 2025 – स्वयंसेवी…

“बदलते मौसम, टूटती औरतें”,”सूखे खेत, खाली रसोई और थकी औरतें”

गांव की औरतें, जलवायु की मार: बीजिंग रिपोर्ट की चेतावनी “पानी, पेट और पहचान की लड़ाई: ग्रामीण महिलाओं पर जलवायु की चोट” “जलवायु संकट की चुप्पी में दबी औरतों की…

रंगमंच पर जाति का खेल: कितना जायज़?

कला का काम समाज को जागरूक करना है, उसकी विविधताओं को सम्मान देना है, और उस आईने की तरह बनना है जिसमें हर वर्ग खुद को देख सके। लेकिन जब…