Category: साहित्य

लघुकथा : छलावा

डा. सुरेश वशिष्ठ, गुरुग्राम मुझे शास्त्र का ज्ञान नहीं परंतु अनुभव से समझता हूं–“परम-आत्मा जब देह सजाते हैं, तब सर्वप्रथम उसमें प्राण फूँकते हैं । अंतर्मन के भाव सूरत में…

हमारी मातृ भाषा हिंदी~जिस देश में हिंदी के लिए दबाव बनाना पड़ता है और 90% लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं..

बंटी शर्मा सुनारिया हर साल हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन ही देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया…

मनुमुक्त ‘मानव’ ट्रस्ट द्वारा ‌अंतरराष्ट्रीय हिंदी-संगोष्ठी आयोजित दस देशों के विद्वानों ने किया हिंदी की प्रासंगिकता पर विचार-मंथन

— डॉo सत्यवान सौरभ, आज हिंदी विश्व की जरूरत बन गई है तथा हर देश भारत के साथ मैत्री संबंधों की खिड़की हिंदी भाषा के माध्यम से ही खोलना चाहता…

‘हिन्दी-दिवस’ पर विशेष: चुनौतियों के बावजूद विश्व में बढ़ते हिंदी के कदम, दुनिया में लोकप्रिय हो रही है हिन्दी

युद्धवीर सिंह लांबा किसी भी देश की उन्नति में मातृभाषा, राष्ट्रीय भाषा या राजभाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह…

लघुकथा : बावरा

डा. सुरेश वशिष्ठ, गुरुग्राम मेरी आकांक्षाओं और पिपासित होठों को उसने शांत कर दिया । जीवन में खुशी का अविरल स्रोत बहने लगा । तूफान, उसे मिलने के बाद ठहर…

हिंदी दिवस विशेष : मातृभाषा सीखने से भविष्य की पीढ़ियों को अपने सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने के साथ संबंध बनाने में मदद मिलेगी

मातृभाषा में पढाई वैचारिक समझ के आधार पर एक घरेलू प्रणाली के साथ सीखने और परीक्षा-आधारित शिक्षा की रट विधि को बदलने में मदद करेगा। जिसका उद्देश्य छात्र के अपनी…

पंजाब में लेखकों की नयी पीढ़ी को प्रोत्साहन की कमी : डाॅ अजय शर्मा

–कमलेश भारतीय पंजाब की लेखकों की नयी पीढ़ी को वरिष्ठ लेखकों द्वारा प्रोत्साहन की कमी है । एक समय भीष्म साहनी , निर्मल वर्मा , यशपाल , मोहन राकेश और…

लघुकथा : छायाँजली

डा. सुरेश वशिष्ठ, गुरुग्राम छायाँजली बहुत दिनों से चुप थी । हृदयमित्र नवन्दु से किसी बात पर नाराजगी थी । बहस चली और दोनों में बातचीत बंद हो गई थी…

पेंटिंग से मिलता है सुकून : युक्ति धीर

–कमलेश भारतीय पेंटिंग बनाने से मुझे सुकून मिलता है और लाॅकडाउन में मेरे इस शौक ने मुझे अकेला नहीं रहने दिया । यह कहना है पंजाब के लुधियाना की पेंटर…

सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान दे पाऊं , बस इतना अरमान : जैनेंद्र सिंह

–कमलेश भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान दे पाऊं , बस इतना सा अरमान है । जो यात्रा तय की उसे पुस्तक रूप मे नयी पीढ़ी तक पहुंचा सकूं । यह…