भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम में निगम चुनाव की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं, जो सडक़ पर चलते हुए भी नजर आती हैं। जगह-जगह प्रत्याशियों के बोर्ड-होर्डिंग्स लगे नजर आ जाते हैं। एक तरफ तो निगम यह कहता है कि हम अवैध बोर्ड लगने नहीं देंगे लेकिन दूसरी ओर इन पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही। खैर छोडि़ए इस बात को, राजनैतिक दलों की बात करते हैं। कांग्रेस कहीं नजर आ नहीं रही, आप पार्टी भी प्रभाव नहीं बना रही और दिखाई भाजपा ही भाजपा देती है लेकिन भाजपा में भी निगम जीतने की शक्ति दिखाई नहीं देती।
कांग्रेस :
कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। यदि पिछले समय पर नजर डालें तो कांग्रेस अपनी पहचान दिखाती रही है परंतु इस बार कांग्रेस कहीं नजर आ नहीं रही। कुछ चर्चाकारों में चर्चा है कि इसका कारण कांग्रेस की आपसी कलह है। गुरुग्राम में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कैप्टन अजय सिंह यादव के खेमे अलग-अलग नजर आते हैं। इतने समय से कांग्रेस संगठन बनाने की बात कर रही है लेकिन उसके अभी कोई आसार नजर आ नहीं रहे। तो पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ता भी अब यह कहने लगे हैं कि बहुत करली राजनीति, अब अपने घर रहेंगे। तात्पर्य यह कि हाल-फिलहाल कांग्रेस का कोई आधार दिखाई नहीं दे रहा।
आप पार्टी :
आप पार्टी पंजाब जीतने के बाद बड़े जोर-शोर से आई थी परंतु आप की कार्यशैली हरियाणा के वातावरण में ठीक बैठती नजर नहीं आ रही। गुरुग्राम की देखें तो आरंभ में कई बड़े (नाम ना लिखें) जनाधार वाले लोगों को हरियाणा प्रभारी सुशील गुप्ता ने पार्टी में शामिल कराया था। किंतु वह अब कार्यक्रमों में नजर नहीं आते।
हरियाणा के प्रभारी और गुरुग्राम निगम चुनाव के प्रभारी सुशील गुप्ता यद्यपि यहां प्रयास कर रहे हैं लेकिन देखने में यह आ रहा है कि उनके प्रयासों को सफलता नहीं मिल रही। उनकी बैठकों में उनकी विज्ञप्ति के अनुसार सैकड़ों आदमी होते हैं और यह उचित भी है, क्योंकि सौ से अधिक होने पर सैकड़ों लिखा जा सकता है। यदि अभी पूछा जाए तो वह दावा तो करते हैं लेकिन 40 सीट जीतेंगे और मेयर भी अपना बनाएंगे लेकिन वास्तविकता यह लगती है कि उन्हें अभी गुरुग्राम की परिस्थिति और निगम की कार्यशैली का भी पूर्ण ज्ञान नहीं है। अत: ऐसी स्थिति में चर्चाकारों का यह कहना है कि अंतिम समय में भाजपा के जिन व्यक्तियों को टिकट ना मिलें, वे आप पार्टी की टिकट ले सकते हैं, जिससे आप पार्टी शायद उपस्थिति दिखाने में सफल हो जाए।
भाजपा :
वर्तमान में भाजपा ही भाजपा नजर आती है। भाजपा के एक-एक सीट दस-दस-पांच-पांच चुनाव लडऩे वाले हैं। इसी प्रकार मेयर के लिए भी दर्जनों उम्मीदवार हैं। ऐसी स्थिति में टिकट तो एक को ही मिलेगी और ऐसे ही मेयर तो एक को ही बनना है तो टिकट तो एक को ही मिलेगी। प्रश्न यह है कि क्या जिन्हें टिकट नहीं मिलेगी, वे टिकट वाले उम्मीदवार का साथ देंगे? संभव तो नहीं लगता।
कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं से बात हुई तो उनका कहना है कि भाजपा में टिकट का महत्व तो है लेकिन यदि टिकट नहीं मिली और निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है तो भाजपा उसे अपना लेती है, इसलिए अनेकों का कहना है कि टिकट नहीं मिली तो भी हम चुनाव लड़ेंगे।
यह चुनाव भाजपा के अनुशासन को जनता को दिखा देगा। वैसे वह तो अब भी दिख रहा है। कुछ लोग अभी भी अपनी मेयर की तैयारियों में जुट गए हैं और कुछ पार्षद की तैयारियों में जुटे हुए हैं। तो यह तो दिखाई दे रहा है कि वे प्रचार में अपने पैसे खर्च कर रहे हैं तो क्या वह चुनाव से पीछे हट जाएंगे?
पार्टी उम्मीदवार के साथ भाजपा का एकत्र होकर लडऩा संभव लग नहीं रहा, क्योंकि भाजपा में अलग-अलग नेता अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग तैयारियां करते नजर आ रहे हैं।
मजेदारी की बात यह है कि प्रदेश अध्यक्ष का निवास भी गुरुग्राम में है और वह सब देखते हुए भी आंखें मूंदे हुए हैं। अत: इन परिस्थितियों में यह कहना उचित नहीं लगता कि भाजपा ही निगम में बहुमत प्राप्त करेगी या अपना मेयर जिता पाएगी। हां, यह अवश्य लगता है कि भाजपा की गुटबंदी सामने आएगी और परिणाम समय बताएगा। उपरोक्त स्थितियों से अभी यह कहना बहुत कठिन नजर आ रहा है कि निगम में किसका वर्चस्व रहेगा, क्योंकि कांग्रेस पुरानी पार्टी है और उसके कार्यकर्ता बहुत हैं। यदि एकजुट हो गए तो बहुत भाजपा की फूट का लाभ उठा वह भी अपनी उपस्थिति सम्मानजनक ढंग से दर्ज करा सकती है।