✍???? भारत सारथी | ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम के निकाय चुनावों में कांग्रेस की स्थिति लगभग नगण्य होती दिख रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस पाँच सीटों का आँकड़ा भी पार नहीं कर पाएगी, बल्कि यह भी संभव है कि न्यूनतम आंकड़ा छूने में भी असफल रहे। वहीं, भाजपा की आंतरिक कलह और असंतोष के चलते 36 में से सभी सीटों पर “कमल” नहीं खिलने वाला, जबकि भाजपा के जिला अध्यक्ष कमल यादव बार-बार दावा कर रहे हैं कि गुरुग्राम में “36 कमल खिलेंगे”

बीजेपी बनाम बीजेपी की लड़ाई

गुरुग्राम में असली लड़ाई भाजपा बनाम भाजपा बन चुकी है। अधिकांश सीटों पर भाजपा के ही लोग निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, और मज़ेदार बात यह है कि कांग्रेस की टिकट पर भी कई भाजपा के ही नेता मैदान में हैं। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि भाजपा के भीतर गहरा असंतोष व्याप्त है।

टिकट वितरण को लेकर भारी नाराजगी
भाजपा कार्यकर्ताओं में इस बात की व्यापक चर्चा है कि टिकट वितरण में घोर अनियमितताएँ हुई हैं
✅ पुराने निष्ठावान कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई।
✅ पार्टी में हाल ही में शामिल हुए अमीर उम्मीदवारों को तरजीह दी गई।
✅ “परिवारवाद” के नाम पर विपक्ष को घेरने वाली भाजपा ने दो महामंत्रियों, दो मीडिया प्रभारियों और कई मंडल अध्यक्षों के परिजनों को टिकट देकर खुद अपने ही सिद्धांतों का उल्लंघन कर दिया

मतदान में सुस्ती: 42% का आँकड़ा भी नहीं छू पाया

गुरुग्राम में मतदान 42% से भी कम रहा, जो दर्शाता है कि जनता इस चुनाव में अधिक रुचि नहीं ले रही थी। इसके पीछे प्रमुख कारण थे:
1️⃣ वैश्य समुदाय की नाराजगी – भाजपा ने वैश्य समुदाय को अपेक्षित प्रतिनिधित्व नहीं दिया। उन्हें केवल एक टिकट दी गई, वह भी कई अनुरोधों के बाद
2️⃣ दलित समाज की उपेक्षा – दलित वर्ग पहले से ही यह मांग कर रहा था कि गुरुग्राम में कम से कम 7 सीटें आरक्षित होनी चाहिएं, लेकिन केवल 3 सीटें ही दी गईं। दलित समाज ने पहले ही विरोध दर्ज कराया था कि यदि उनके अधिकारों की अनदेखी हुई, तो वे भाजपा के खिलाफ मतदान करेंगे।
3️⃣ कांग्रेस की निष्क्रियता – कांग्रेस ने इन नाराज समुदायों को जोड़ने का कोई विशेष प्रयास नहीं किया, जिससे इनका भी चुनाव के प्रति रुझान खत्म हो गया।

जनता के मन में गूंजते सवाल

???? आमजन में यह धारणा बन चुकी थी कि “पार्षद कोई भी बने, अंततः भाजपा में ही शामिल होगा।”
???? पिछले 10 वर्षों से “ट्रिपल इंजन सरकार” की कार्यशैली देखकर जनता को यह भरोसा नहीं था कि कोई भी बदलाव संभव है।
???? भाजपा पदाधिकारी केवल घोषणाएँ करने और अपनी उपलब्धियों का गुणगान करने में व्यस्त रहे, जनता की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया

भाजपा के लिए आत्ममंथन का समय

अब सवाल यह उठता है कि जिला अध्यक्ष कमल यादव यह जवाब दे पाएंगे कि अनुशासित पार्टी में इतनी बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता निर्दलीय कैसे बन गए?
???? विधानसभा चुनाव में हजारों कार्यकर्ता भाजपा से अलग हो गए थे, और वे अप्रत्यक्ष रूप से इस चुनाव में भी भूमिका निभाते रहे।
???? अगर भाजपा के साढ़े चार लाख से अधिक सदस्य गुरुग्राम में थे, तो क्या उन्होंने भी भाजपा को वोट नहीं दिया? अगर नहीं, तो क्यों?
???? गुरुग्राम निकाय चुनाव के प्रभारी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला, मुख्यमंत्री तक प्रचार कर चुके थे, तो फिर “हर बूथ पर पन्ना प्रमुख” होने के बावजूद वोटिंग इतनी कम क्यों हुई?

क्या भाजपा का अनुशासन सवालों के घेरे में?

गुरुग्राम निगम चुनाव में खड़े हो रहे ये सवाल भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं। पार्टी को इस चुनावी आकलन से सीख लेनी होगी, नहीं तो भविष्य में यह असंतोष और अधिक गहरा हो सकता है।

???? बाकी आगे लिखेंगे…! ????

Share via
Copy link