वेदप्रकाश विद्रोही ने मंडियों की दुर्दशा पर उठाए गंभीर सवाल, कहा—“किसान की मेहनत सड़कों पर लुट रही है”

चंडीगढ़,गुरुग्राम,रेवाड़ी 19 अप्रैल 2025 | हरियाणा में रबी फसल की खरीद सीजन के बीच मंडियों में अव्यवस्था का आलम चरम पर है। स्वयंसेवी संस्था ‘ग्रामीण भारत’ के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने दक्षिण हरियाणा की प्रमुख अनाज मंडियों का दौरा कर ज़मीनी हकीकत सामने रखी है। उनका कहना है कि भाजपा सरकार के तमाम वादों के बावजूद किसानों को न तो एमएसपी का लाभ मिल पा रहा है और न ही मूलभूत सुविधाएं।

विद्रोही का आरोप है कि प्रदेश की 417 मंडियां गेहूं से लबालब भरी हुई हैं लेकिन उठान की व्यवस्था नाममात्र की है। “सरकारी एजेंसियों ने गेहूं तो खरीद लिया, पर उठान नहीं हो रहा। किसान मजबूरी में सड़क किनारे फसल रखने को विवश हैं—यह एक अत्यंत शर्मनाक स्थिति है,” उन्होंने कहा।

गर्मी में झुलसते किसान, न पानी, न छाया

विद्रोही ने मंडियों में किसानों के लिए बुनियादी सुविधाओं के अभाव को लेकर भी सरकार पर निशाना साधा। “भीषण गर्मी में किसान खुले आसमान के नीचे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं। न पीने का पानी है, न छाया, न शौचालय और न विश्राम स्थल। सरकार सिर्फ़ कागज़ों में व्यवस्थाएं दिखा रही है, धरातल पर कुछ नहीं है,” उन्होंने कहा।

आँकड़ों से साफ़ है बदइंतज़ामी

सरकारी आँकड़ों का हवाला देते हुए विद्रोही ने बताया कि अब तक मंडियों में 40 लाख टन गेहूं बिक्री के लिए आया है, जिसमें से करीब 34 लाख टन की खरीद हुई है। “मगर उठान व्यवस्था फेल हो जाने के कारण आधा अनाज अब भी खुले में पड़ा है। दो बार पहले भी फसल वर्षा में भीग चुकी है, अब मौसम विभाग फिर से बारिश की चेतावनी दे रहा है। नुकसान तय है—किसान भी भुगतेगा और सरकार भी,” उन्होंने चेतावनी दी।

नमी की शर्त अव्यवहारिक, भुगतान में देरी

विद्रोही ने 12 प्रतिशत नमी की शर्त को अव्यवहारिक बताते हुए इसे 14 प्रतिशत करने की मांग की। साथ ही उन्होंने सरकार के इस दावे को भी खारिज किया कि 48 से 72 घंटे में किसानों को भुगतान हो जाता है। “वास्तव में किसानों के खाते में पैसा 7 से 15 दिन में पहुंच रहा है। इस बीच किसान कर्ज, चिंता और परेशानी में डूबा रहता है,” उन्होंने कहा।

स्पष्ट मांगें, दो टूक सवाल

वेदप्रकाश विद्रोही ने सरकार से तीन प्रमुख मांगें रखी हैं:

  • मंडियों में खरीदे गए गेहूं व सरसों का शीघ्र उठान सुनिश्चित किया जाए।
  • किसानों को 72 घंटे के भीतर भुगतान दिया जाए।
  • मंडियों में किसानों के लिए छाया, पानी, शौचालय, विश्राम व भोजन की सुविधाएं तत्काल उपलब्ध कराई जाएं।

अंत में विद्रोही ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, “जो सरकार जान-बूझकर खरीदी गई फसल को वर्षा में सड़ाने पर तुली है, उसकी नीयत किसानों के हित में कैसे हो सकती है? अब वक्त आ गया है कि सरकार अपनी कथनी और करनी के फर्क को मिटाए।”

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